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Sunday, July 6, 2025 11:11:53 AM

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साहित्यिक लेखन मनुष्य बने रहने की कसौटी है : डॉ.जयप्रकाश कर्दम

साहित्यिक लेखन मनुष्य बने रहने की कसौटी है : डॉ.जयप्रकाश कर्दम

दलित लेखक संघ का कर्दम पर आयोजन

रिपोर्ट : आकाश मिश्र

दिल्ली। लोकप्रिय वरिष्ठ दलित साहित्यकार डॉ. जयप्रकाश कर्दम के 68वें जन्मदिवस पर दलित लेखक संघ(दलेस) ने उनके विपुल रचना संसार पर एक विशेष प्रस्तुति के रूप में ‘चर्चा-संवाद’ का आभासी माध्यम से आयोजन किया। जिसमें देश भर के विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं अनेक संस्थानों से बहुतायत में लेखक,आलोचक, प्राध्यापक, शोधार्थी एवं पाठक जुड़े।
वरिष्ठ लेखक डॉ. जयप्रकाश कर्दम ने आयोजन में कहा कि दलित समाज को जागृत करना,सजग करना और ग़ैर-दलित समाज को संवेदनशील बनाना सदैव ही संपूर्ण दलित साहित्य का उद्देश्य रहा है, जो उनके लेखन का भी ध्येय है । उन्होंने कहा कि साहित्यिक लेखन उनके लिए मनुष्य बने रहने की सबसे बड़ी कसौटी रही है।
कर्दम ने आगे कहा कि पहले उनका ध्यान अधिक से अधिक लिखने पर केंद्रित था तब दलित साहित्य अपने शैशवावस्था में था किंतु अब दलित साहित्य एक वृहद आंदोलन का रूप ले चुका है। नए-नए युवा लेखक नई चेतना के साथ अब बहुत उत्कृष्ट लेखन कर रहे हैं जिससे दलित साहित्य नई ऊंचाईयों को छू रहा है।
आयोजन के विशिष्ट वक्ता रहे सुपरिचित आलोचक डॉ.पल्लव ने कहा कि अस्मिता लेखन का प्रदेय इसी बात में है कि वह ज्यादा से ज्यादा ऐसे पाठक वर्ग के पास पहुंचे जो दलित जीवन और साहित्य की चुनौतियों से अनभिज्ञ है। इस उद्देश्य को कर्दम जी जैसे लेखक सतत् आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। दलित लेखक संघ भी सन 1997 से निरंतर इसी दिशा में प्रयासरत है। डॉ. पल्लव ने यह भी कहा कि ओमप्रकाश वाल्मीकि और जयप्रकाश कर्दम ने दुराग्रहों से मुक्त होकर व्यापक प्रगतिशील दृष्टि यानी पूरे समाज को ध्यान में रखकर लिखा है। उन्होंने कहा कि जयप्रकाश कर्दम के लेखन का महत्व इस वजह से नहीं है कि वे दलित लेखक हैं बल्कि इस वजह से है कि उन्होंने अपने जीवनानुभावोंं को कलात्मक रूप में समाज के समक्ष रखा। डॉ. पल्लव ने कर्दम के कथाकार और कवि व्यक्तित्व की चर्चा करते हुए ‘दलित वार्षिकी’ के संपादन की मुक्त कंठ से सराहना की। उन्होंने कहा कि कर्दम जी ने ‘दलित वार्षिकी’ के माध्यम से बड़ी संख्या में पाठकों को दलित लेखन एवं पठन पाठन से जोड़ा। डॉ. पल्लव ने अपने वक्तव्य का समापन कर्दम की कविता ‘आदमी और कविता’ के सस्वर पाठ के साथ किया।
कार्यक्रम की विशिष्ट वक्ता वरिष्ठ लेखिका सुशीला टाकभौरे ने डॉ. कर्दम ने व्यापक रचना संसार को रेखांकित करते हुए कहा कि यह समूचे साहित्य जगत के लिए अत्यंत गौरव की बात है कि कर्दम जी ने अत्यंत कम समय में दलित लेखन को एक विशालकाय रचना संसार दिया जिसमें साठ से अधित पुस्तकें हैं,अनेक कहानी और कविता संग्रह हैं और न जाने कितने पत्र-पत्रिकाओं में लिखे गए कॉलम हैं। कर्दम की कहानी ‘नो बार’ पर फिल्म बनना भी किसी गौरव से कम नहीं। फिल्म के माध्यम से लेखक की विचार दृष्टि लाखों लोगों तक पहुंच जाती है। टाकभौरे ने उनकी रचना ‘राहुल’, ‘तराश’, ‘ख़रोच’, ‘उधार की जिंदगी’ पर विस्तार से चर्चा की। स्त्रीवादी दृष्टि से लिखी गई उनकी कहानी ‘पगड़ी’ की सराहना भी किया। वहीं आज भी समाज में व्याप्त सवर्णवादी मानसिकता, छुआछूत,जातिगत भेदभाव पर शोक व्यक्त किया। और इसे समाज के लिए घातक बताया।
अध्यक्षीय भाषण देते हुए दलित लेखन संघ के अध्यक्ष प्रो.नामदेव ने डॉ. जयप्रकाश कर्दम के विपुल रचना संसार को दलित जगत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थ से मुक्त रहकर लिखना कर्दम जी की खूबी रही है।
प्रश्नोत्तर सत्र में सुशीला टाकभौरे ने कर्दम जी से अनेक प्रश्न किए जो कि उनके लेखन और वक्तव्य से संबंधित थे। इसके पश्चात कार्यक्रम में मौजूद अनेक जिज्ञासुओं के प्रश्नों का एक-एक कर कर्दम जी ने और डॉ पल्लव ने समाधान प्रस्तुत कर श्रोताओं की मानसिक व्याकुलता को शांत किया। वहीं कार्यक्रम का संचालन कर रहे प्रो.महेंद्र सिंह बेनीवाल इससे पहले वक्ताओं का परिचय दिया और कर्दम जी से आत्मकथा लिखने का आग्रह भी किया। जिसका जवाब देते हुए कर्दम जी ने कहा कि हर एक दलित लेखक की आत्मकथा मेरी भी आत्मकथा है। कर्दम जी ने अपने लेखन में,अपनी बहुत-सी रचनाओं में अपने जीवनानुभावोंं को अभिव्यक्त किया है किन्तु अभी तक उन्होंने आत्मकथा के रूप में अपना समग्र जीवन चित्रित नहीं किया है। हालांकि पाठकों एवं श्रोताओं के विशेष आग्रहों पर उन्होंने अपनी आत्मकथा लिखने पर विचार करने को कहा है।
कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन दलेस के महासचिव डॉ.सनोज कुमार ने किया। दलेस द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम अत्यंत सफल रहा। और इस मंच के माध्यम से अनेक श्रोता लाभान्वित हुए। इस कार्यक्रम में अनेक ऐसे विद्यार्थी और शोधार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।

 

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