नई दिल्ली। पटना में ‘नई धारा’ के राइटर्स रेज़िडेन्स में हुई यौन उत्पीड़न की जिस घटना का हवाला सोशल मीडिया पर बार-बार देखने को मिल रहा है, वह बेहद अफ़सोसनाक है। अगर यह सच है कि रेज़िडेन्ट कवि कृष्ण कल्पित ने, माफ़ी माँगकर या बिना माँगे, तत्काल प्रभाव से वह जगह छोड़ दी है, तो यह अपने आप में घटना के होने का सबूत है। लेकिन साथ ही यह इस बात का भी सबूत है कि यौन-उत्पीड़न के मामले में आयोजक मेज़बान को जिस तरह का हस्तक्षेप करना चाहिए था, उसके बजाये उन्होंने मामले को रफ़ा-दफ़ा करने का रवैया अपनाया। यह सीधे-सीधे उत्पीड़क का बचाव है।
जनवादी लेखक संघ कृष्ण कल्पित की हरकत और ‘नई धारा’ के इस रवैये की कठोर निंदा करता है। हमारी स्पष्ट राय है कि ‘नई धारा’ को खुद ज़िम्मेदारी लेकर यौन-उत्पीड़न की इस घटना की जाँच करानी चाहिए थी। ऐसा न होने की स्थिति में लेखक-समुदाय की कोशिश होनी चाहिए कि इस संस्था को भी श्री कल्पित के साथ-साथ क़ानून के दायरे में लाया जाए। हम पीड़िता को आश्वस्त करना चाहते हैं कि अगर वे इस मामले को क़ानूनी प्रक्रिया में ले जाना चाहें, तो हम उनका साथ देने के लिए कृतसंकल्पित हैं। ऐसे मामलों के जानकार किसी विधिवेत्ता से क़ानूनी सलाह लेकर इस दिशा में बढ़ा जा सकता है, लेकिन वह पूरी तरह से पीड़िता की इच्छा पर निर्भर होगा।
इस बीच जिन लोगों ने सोशल मीडिया पर पीड़िता का नाम उछाला है या उनकी तस्वीर साझा कर इशारों में उनकी पहचान ज़ाहिर करने की कोशिश की है, साथ ही जिन्होंने पीड़िता को अपने तौर-तरीक़ों में सुधार लाने का उपदेश दिया है, हम उनकी भी निंदा करते हैं। ये सार्वजनिक क्षेत्र में स्त्री की स्वतंत्र उपस्थिति को हतोत्साह करने वाले क़दम हैं जो उस उपस्थिति को नापसंद करनेवालों के द्वारा ऐसे सभी मौक़ों पर उठाये जाते हैं।
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