बहराइच।पिछले कई वर्षो का मेरा अनुभव है कि हर चुनाव और किसी वीवीआईपी के आगमन पर जब प्रेस पास जारी करने का अवसर आता है तो सूचना विभाग की नौटंकी देखने लायक होती है।
जिनसे डरते है उनके घर और आफिस पास पहुंच जाता है।जिनके लिए कहा उसका जारी हो जाता है।फिर धीरे-धीरे बारी आती है आम पत्रकारो की तो उनसे बहस होती है।इतने लोगो का बनेगा और नही बन पाएगा।फिर उसी मे नियम कानून की भी बात आ जाती है।
यह सब नौटंकी एक दिन पहले होती है।उसके बाद जब पत्रकारो की भीड़ बढती है।तो धीरे-धीरे अधिकारी व कर्मचारी कार्यालय से गायब हो जाते है।इसके बाद फिर रात तक पास बनने का सिलसिला जारी रहता है।
सवाल यह है कि पास जारी करने की कोई पालिसी पहले से क्यों तय नही है।
पत्रकारो को दौड़ाया क्यों जाता है।
सरकार की छवि क्यों खराब की जाती है।
सूचना विभाग व प्रशासन के सीधे सीधे यह समझ मे नही आता है कि अगर अखबार का पत्रकार है या चैनल व पोर्टल से है।रोजाना प्रशासन की खबरे हाईलाइट होती है।
इसके बाद जब पास बनने का अवसर आता है तो ऐसी नौटंकी होती है और इतना आनाकानी की जाती है जैसे पत्रकारो के नाम किसी प्रापर्टी का बैनामा किया जा रहा है।इस प्रकार जब सूचना विभाग ही पत्रकारो के साथ खेल करेगा तो फिर आगे जो हो रहा है वह सबके सामने है।
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