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Sunday, March 23, 2025 10:16:00 AM

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बोलना हो तो अभी कुछ बोल

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कोटा में कवि नंद चतुर्वेदी जन्म शताब्दी समारोह

कोटा। नंद चतुर्वेदी मनुष्यता के पक्ष में संसारिकता के बड़े कवि हैं जो ब्रज भाषा की कविता से भूमण्डलीकरण के दौर की कविता के हमकदम रहे। उनका समस्त लेखन हमारे समय की क्रूर सच्चाइयों को उघाड़ने के साथ साथ आशा के जबरदस्त प्रहरी हैं। युवा आलोचक और दिल्ली के हिन्दू कॉलेज में अध्यापक डा पल्लव ने उक्त विचार वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, कोटा में आयोजित नंद चतुर्वेदी जन्म शताब्दी समारोह में व्यक्त किए। डा पल्लव ने कहा कि स्पष्ट वैचारिक प्रतिबद्धता के बावजूद नन्द बाबू की कविता में शिल्प सजगता उन्हें महत्त्वपूर्ण बनाती है। राजस्थान साहित्य अकादमी के सहयोग से आयोजित समारोह में कवि अम्बिका दत्त ने बीज वक्तव्य में कहा कि नंद बाबू के लिए किए जा रहे जनसंघर्ष का सांस्कृतिक हथियार तो है किन्तु वे इसे सामयिक राजनीति की प्रतिक्रिया होने से बचाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि संघर्ष, आस्था और मानवीय कोमलताओं के क्षण नंद बाबू के साहित्य में बार-बार आते हैं। आयोजन में अतुल चतुर्वेदी ने नंद चतुर्वेदी के गद्य लेखन पर पत्र वाचन किया। उन्होंने बताया कि अतीत राग में नंद बाबू ने संस्मरणों का सृजन किया है जिन्हें पढ़कर विगत दिनों के साहित्य समाज की जीवंतता को जाना जा सकता है। प्रसिद्ध कवि और अभिव्यक्ति के सम्पादक महेंद्र नेह ने अपने उद्बोधन में नंद बाबू के काव्य के दो पड़ाव बताए। पहला आजादी से पहले का भारत जहां स्वाधीनता और बेहतर जीवन का स्वप्न है, दूसरे में अपने समय का क्रूर यथार्थ। उन्होंने कहा कि नन्द बाबू समाज के दुःख से लड़ने के लिए समाजवाद का रास्ता अख्तियार करते हैं। नेह ने उनके गीत की पंक्तियों से अपना वक्तव्य समाप्त किया, बोलना हो तो अभी कुछ बोल,भूख के मारे हुए हैं लोग, देख कुछ इतिहास कुछ भूगोल।

पत्रकार और गद्यकार पुरुषोत्तम पंचोली ने नंद बाबू के अनेक संस्मरण सुनाए जो नन्द बाबू के जीवंत और उन्मुक्त व्यक्तित्व का परिचय देने वाले थे।

नन्द चतुर्वेदी फाउंडेशन की ओर से प्रो अरुण चतुर्वेदी ने कोटा में इस आयोजन का महत्त्व बताते हुए कहा कि नंद बाबू के व्यक्तित्व को बनाने में कोटा के समाजवादी वातावरण का गहरा योगदान है। उन्होंने नंद बाबू के मित्रों अभिन्न हरि, कवि सुधींद्र और हीरालाल जैन का स्मरण भी किया।

अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो कैलाश सोडानी ने अपने उद्बोधन में नंद बाबू से हुई अपनी मुलाक़ातों को याद करते हुए उनके सरल स्वभाव को रेखांकित किया। प्रो सोडानी ने कहा कि हमारा विश्वविद्यालय साहित्यकारों के लिए सदैव खुला है और हम साहित्यकारों के सहयोग से अकादमिक वातावरण को बेहतर बना सकेंगे।

विश्वविद्यालय के अकादमिक निदेशक प्रो बी अरुण कुमार ने आभार व्यक्त किया। संयोजन प्राणिशास्त्र विभाग के डा संदीप हुडा ने किया।

आयोजन में कोटा के साहित्यकार भगवती प्रसाद गौतम, रामनारायण हलधर, नरेंद्रनाथ चतुर्वेदी, हितेश व्यास, डा मंजू चतुर्वेदी, प्रो रंजन माहेश्वरी, सुयश चतुर्वेदी सहित बड़ी संख्या में शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित थे।

 

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