रिपोर्ट : राजेंद्र शर्मा
भाई ये तो विरोधियों की हद्द है। फौज को भी चुनावी पॉलिटिक्स में खींचने से बाज नहीं आ रहे हैं। बताइए, हिमाचल में अपनी पार्टी के लिए वोट मांगने के लिए प्रियंका गांधी ने कह दिया कि कांग्रेस की सरकार आयी, तो अग्निवीर योजना को खत्म कर देंगे और पहले की तरह फौज में पक्की भर्ती शुरू करा देंगे। पहले कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन, अब नौजवानों के लिए फौज में पुरानी भर्ती! इनका बस चले, तो मोदी जी विरोधी उन्हें नया इंडिया कभी बनाने ही नहीं देेंगे। आखिरकार, आरएसएस वाले इंद्रेश कुमार को ही अग्निवीर योजना लाने का असली राज खोलना पड़ गया। मोदी जी की मेहरबानी ही है कि शौकिया, सिर्फ परेड-वरेड के लिए ठेके के फौजी भी रखवा रहे हैं। वर्ना नये इंडिया को किसी फौज-वौज की जरूरत ही कहां है? जब 130 करोड़ भारतीयों की प्रार्थनाओं से पाकिस्तान के 75 साल के कब्जे से कश्मीर और चीन के उससे भी पुराने कब्जे से कैलाश-मानसरोवर छुड़ा सकते हैं, तो फौज पर भारी खर्चा करने की जरूरत ही क्या है?
वैसे भी पक्की भर्ती वाली फौज भी रखकर तो हमने देख ही लिया, उधर से बचा हुआ कश्मीर नहीं ले पाए, तो नहीं ही ले पाए। और इधर से कैलाश-मानसरोवर लेना तो छोड़ो, गलवान के लाले और पड़ गए। राम-राम कर के बड़ी मुश्किल से बहला-फुसला के चीनियों को पीछे हटवाया है। वैसे कवि रहीम दास तो पहले ही कह गए थे — जहां काम आवे सुई, कहा करे तलवार! बल्कि इसमें तो सुई का भी खर्चा नहीं है : बस प्रार्थनाएं ही काफी हैं! बाकी समझदार के लिए आरएसएस नेता का इशारा ही काफी है। चार साल वाले अग्निवीरों की भर्ती भी बस जब तक है, तभी तक है। वर्ना परेड दिखाने के लिए फौजियों पर इतना खर्चा कौन करता है जी! फिर इसमें तो बचत की बचत है और गांधी जी के अहिंसा और सत्याग्रह के रास्ते पर चलने का ठप्पा भी।
अब प्लीज ये मत कहने लगिएगा कि इंद्रेश जी आरएसएस के बहुत बड़े नेता सही, पर मोदी जी ने तो एक बार भी अपने मुंह से नहीं कहा है कि अमृतकाल में, प्रार्थनाएं ही फौज का काम करेंगी? मोदी जी और इंद्रेश जी में भेद ही क्या है? मोदी जी बिला नागा अपने मन की बात कहते हैं तो क्या हुआ, उनके मन की एकाध बात तो उनके संघ-भाई भी कह ही सकते हैं। फिर मोदी जी ने तो कोरोना के खिलाफ युद्घ के टैम पर ही बता दिया था कि असली ताकत तो भजन-पूजन में ही है। जब कोरोना जैसे अदृश्य शत्रु को दिया-बाती, घंटा-थाली से हराया जा सकता है, तो साक्षात दिखाई देने वाले शत्रुओं को प्रार्थनाओं से क्यों नहीं हराया जा सकता। और सच पूछिए तो पीछे कोविड के टैम तक जाने की भी जरूरत नहीं है। मोदी जी ने अभी हाल में बताया था कि भजन-पूजन से भूख को घटाया जा सकता है। जिस भजन-प्रार्थना से भूख जैसे अदृश्य राक्षस को हराया जा सकता है, उससे दृश्य शत्रुओं को हराना क्या मुश्किल होगा? वैसे भी मोदी जी कहने में नहीं, करने में विश्वास करते हैं। वह जो नहीं कहते हैं, वह तो जरूर ही करते हैं।
पर एक बात समझ में नहीं आयी : मोदी जी रुपए के नोट पर लक्ष्मी-गणेश की तस्वीर छपवाने में देरी क्यों कर रहे हैं? क्या सिर्फ इसलिए कि यह डिमांड केजरीवाल ने की है, नागपुरियों ने नहीं? धर्म में यूं पॉलिटिक्स को घुसाना तो ठीक नहीं है। और हां! जब ओरेवा के प्रतिनिधियों ने जांच कर के बता दिया है कि मोरबी का झूला पुल हरि-इच्छा से गिरा है, उसके बाद भी पकड़-धकड़, जांच-वांच का शोर क्यों? सत्तर साल जो हुआ — सो हुआ, अब हरि इच्छा का सम्मान होगा। पक्की भर्ती की फौज जो नहीं कर सकी, पूजा-प्रार्थनाओं से ऐसा हरेक काम होगा।
व्यंग्यकार प्रतिष्ठित पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।
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