नई दिल्ली। हिन्दी में भी धीरे धीरे फील्ड वर्क के आधार पर रचनात्मक लेखन की प्रवृत्ति बढ़ रही है। फील्ड वर्क का लेखन तभी प्रामाणिक और प्रभावशाली हो सकता है जब रचनाकार का अपना जीवन उससे अभिन्न हो। लोकबाबू के संग्रह जंगलगाथा की कहानियां इस मायने में विशिष्ट हैं कि यहां आ रहे जीवन में लोकबाबू स्वयं उपस्थित हैं। सुप्रसिद्ध आलोचक और महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो शम्भु गुप्त ने जंगलगाथा का लोकार्पण करते हुए कहा कि ऐसे लेखन के लिए नया सौंदर्यशास्त्र चाहिए क्योंकि पारंपरिक सौंदर्यशास्त्र से ऐसी रचनाओं का वास्तविक मूल्यांकन नहीं हो सकता। विश्व पुस्तक मेले में आयोजित इस लोकार्पण समारोह में प्रो गुप्त ने कहा कि बस्तर बस्तर के बाद जंगलगाथा लोकबाबू की रचनाशीलता का नया सोपान है।
वरिष्ठ आलोचक प्रो जीवन सिंह ने इस अवसर पर कहा कि हमारा लेखन संसार मध्यवर्गीय इलाकों से घिर गया है और भीतर से आ रहे वास्तविक जीवन से हम बेखबर हैं। ऐसे माहौल में लोकबाबू जैसे लेखकों का महत्त्व बहुत बढ़ जाता है जो मध्यवर्गीय दायरों को तोड़कर अपने रचना संसार को गढ़ते हैं। सिंह ने लोकबाबू के लेखन को फणीश्वरनाथ रेणु और रांगेय राघव की परंपरा का विकास बताया। उदयपुर से आए आलोचक प्रो माधव हाड़ा ने लोकबाबू के लेखन को नये दौर का प्रतिनिधि लेखन बताते हुए कहा कि वे हाशिए के जीवन को गहराई से अंकित करते हैं। आयोजन में बनास जन के संपादक पल्लव ने कहा कि इस संग्रह में मुजरिम जैसी कहानी है जो किसान आत्महत्या के एक सर्वथा भिन्न और त्रासद अनुभव को उजागर करती है। पल्लव ने कहा कि हिंदी का रचना संसार लोकबाबू जैसे लेखकों की सक्रियता से और समृद्ध हुआ है।
संयोजन कर रहे डॉ कनक जैन ने लोकबाबू का परिचय दिया और संग्रह की कहानियों का संक्षिप्त विवरण भी दिया। इससे पहले प्रकाशक राजपाल एंड संज के निदेशक प्रणव जौहरी ने अतिथियों का स्वागत किया और अपने प्रकाशन गृह से आ रहे कथा सहित्य की जानकारी दी। अंत में चंद्रशेखर चतुर्वेदी ने सभी का आभार व्यक्त किया।
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