नई दिल्ली। सुप्रसिद्ध आलोचक और मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो माधव हाड़ा की नयी पुस्तक ‘वैदहि ओखद जाणे : मीरां और पश्चिमी ज्ञान मीमांसा’ का लोकार्पण दिल्ली में चल रहे विश्व पुस्तक मेले में हुआ। राजकमल प्रकाशन के जलसाघर में आयोजित लोकार्पण सत्र में बनास जन के संपादक पल्लव ने लेखक हाड़ा से पुस्तक पर संवाद किया। संवाद में माधव हाड़ा ने कहा कि यूरोपियन शोध में अभी तक मीरां के जीवन और कवि कर्म के बारे सम्यक विवेचन का अभाव है जिसका कारण मीरां की अपनी सांस्कृतिक पारिस्थिकी से अलग पश्चिम के मानदंडों पर मूल्यांकन करना है। इस पुस्तक में पश्चिमी विद्वता के सांस्कृतिक मानकों पर मीरां के मूल्यांकन को समझने-परखने के प्रयासों की पड़ताल की गई है़। प्रो हाड़ा ने यहां जेम्स टॉड, हरमन गोएट्ज, विनांद कैलवर्त और स्ट्रेटन हौली जैसे पश्चिमी विद्वानों के मीराँ पर किए गए अध्ययन का विश्लेषण किया गया है। हाड़ा ने कहा कि भारतीय भक्ति आंदोलन के सहज विकास में मीराँ की भी कविता है जबकि पश्चिमी विद्वानों ने अपनी औपनिवेशिक दृष्टि और पश्चिमी सांस्कृतिक बोध से इसका मूल्यांकन किया है।
पल्लव ने कहा कि मीरां की कविता को देखने समझने का यह नया अध्याय मीरां की भूमि और भाषिक समाज से हुआ है तथापि भूलना नहीं चाहिए कि प्रो हाड़ा की दृष्टि आधुनिक तथा तर्कयुक्त है। उन्होंने पुस्तक के कुछ महत्त्वपूर्ण अंशों का पाठ भी किया।
लोकार्पण में प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो कृष्ण मोहन श्रीमाली, आलोचक प्रो शम्भु गुप्त, आलोचक वीरेंद्र यादव, डॉ कनक जैन, डॉ रेनु त्रिपाठी भी उपस्थित थे। संयोजन कर रहे कथाकार मनोज कुमार पांडेय ने लेखक परिचय दिया। अंत में राजकमल प्रकाशन के आमोद माहेश्वरी ने आभार ज्ञापित किया।
व्हाट्सएप पर शेयर करें
No Comments






