राजसमंद। आज संस्थान के माध्यम से समलैंगिक व्यक्तियों के विवाह को विधि मान्यता दिए जाने के प्रयास के विरोध में जिला कलेक्टर के माध्यम से महामहिम राष्ट्रपति, माननीय प्रधानमंत्री, महामहिम राज्यपाल और संविधान पीठ के पांचों जजों को ज्ञापन भिजवाया गया। इस विरोध प्रदर्शन में एडवोकेट वर्षा जी पालीवाल के नेतृत्व में एडवोकेट राजकुमारी ,प्रेम हाड़ा, सीता राजपूत, पवन देवी शर्मा, शांता चोरडिया, मधु चोरडिया, सुमन जोशी, युक्ता पालीवाल एवम् विभिन्न समाज की कई बहनो ने भाग लिया। वर्षा जी पालीवाल ने बताया कि समलैंगिकता को विधि मान्यता दे कर भारतीय संस्कृति को नष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है। समान लेंगीको के विवाह को विधि मान्यता दिए जाने की मांग उनका मौलिक अधिकार ना होकर वैधानिक अधिकार हो सकता है। जो केवल भारत की संसद द्वारा कानून बनाकर ही संरक्षित किया जा सकता है। वैसे भी हर एक व्यक्ति के अधिकार की देखभाल/ संरक्षण विधायिका द्वारा किया जा रहा है और इसीलिए उक्त कथित समुदाय के व्यक्तियों को यह दावा या मांग करने का मौलिक अधिकार भी नहीं है कि उनके विवाह को विशेष विवाह अधिनियम 1954 के अंतर्गत पंजीकृत एवं मान्यता दी जाए। पूरे विश्व में सबसे पुरातन संस्कृति भारतीय संस्कृति है। भारतीय संस्कृति की सबसे महत्वपूर्ण इकाई परिवार व्यवस्था है। भारत में विवाह का सभ्यतागत महत्व है। यहां शताब्दियों से केवल जैविक पुरुष और जैविक महिला के मध्य विवाह को मान्यता दी है। सभी धर्मों में केवल विपरीत लिंग के दो व्यक्तियों के विवाह का उल्लेख मिलता है। वर्तमान दौर में कुछ समाजविरोधी घटकों द्वारा समलैंगिक विवाह को विधिक मान्यता दिलाए जाने और भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात करने के भरसक प्रयास किए जा रहे हैं। भारत में समलैंगिकता का विषय उठाया जाना ही दुर्भाग्यपूर्ण है। यह हमारे देश और समाज के लिए अभिशाप है। भारत की महान और पुरातन वैवाहिक संस्था के स्वरूप को विकृत करने के किसी भी दुस्साहस का भारतीय समाज द्वारा मुखर विरोध किया जाना चाहिए। इस अवसर पर विभिन्न सामाजिक संगठनों की भी कई बहने उपस्थित थी।
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