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Sunday, March 23, 2025 7:08:01 PM

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गिनती में क्या रखा है?

गिनती में क्या रखा है?

रिपोर्ट : राजेंद्र शर्मा

 

मोदी जी बिल्कुल सही कहते हैं। गिनती में कुछ नहीं धरा है। उनसे पहले वालों ने गिनती करने-कराने में ही देश का कितना सारा टैम बर्बाद कर दिया। टैम का टैम — पूरे सत्तर साल बर्बाद कर दिए, जी हां सत्तर साल। बताइए, आदिवासियों की गिनती करायी तो करायी, सबसे पिछड़े आदिवासियों तक की गिनती कराने में ही लगे रहे। सबसे पिछड़े आदिवासियों को भी पीएम के नाम से अपने लिए एक योजना के एलान के लिए मोदी जी के आने का, अमृतकाल लाने का और बिरसा मुंडा की जयंती पर, तीसरी बार जनजातीय गौरव दिवस मनाने का, इंतजार करना पड़ा। मोदी जी भी अगर पहले वालों की तरह गिनती में ही अटके रहते, तब ये आदिवासी क्या अब भी इंतजार ही नहीं कर रहे होते!

 

सारी गड़बड़ी नेहरू जी की थी। उन्हें गिनती कराने का कुछ ज्यादा ही शौक था। कुछ भी करते बाद में थे, उसकी गिनती पहले मांगते थे और गिनती नहीं हो, तो पहले गिनती ही कराते थे। गरीबों की गिनती। भूखों को गिनती। दलितों की गिनती। आदिवासियों की गिनती। बेघरों की गिनती। घरों की गिनती। किसानों की गिनती। मजदूरों की गिनती। कल-कारखानों की गिनती। पैदावार की गिनती। पैदावार में बढ़ोतरी की गिनती। आबादी की गिनती। आबादी में बढ़ोतरी की भी गिनती। हिंदुओं, मुसलमानों वगैरह की गिनती। यानी गिनती ही गिनती। अनगिनत गिनतियां। भारत कहने को ही कृषि प्रधान देश था, असल में तो बंदों ने भारत को एक गिनती प्रधान देश बनाकर रख दिया था। बाद में जो आए, वे भी लकीर के फकीर बनकर गिनतियां कराते रहे और गिनतियों में से और-और गिनतियां निकालते रहे। मोदी जी नहीं आते और अमृतकाल में हमें जनगणना समेत, एक-एक कर के तमाम गिनतियों से मुक्ति नहीं दिलाते, तो आज भी हम हिसाब-किताब में ही अटके रहते। और मोदी जी से हर साल की दो करोड़ के हिसाब से नौकरियां मांगते रहते। अब न रहेगी बेरोजगारों की गिनती और न होगी नौकरियों की हाय-हाय!

 

फिर भी, नेहरू जी ने लाख गिनतियां करायी हों, पर एक गिनती नेहरू जी ने भी नहीं करायी — जातियों की गिनती। पर खुद को नेहरू जी के वारिस बताने वाले, अब जातियों की गिनती भी कराने की जिद पकड़े हुए हैं। क्या भारत अमृतकाल में भी गिनती मुक्त नहीं हो पाएगा? मोदी जी का हरेक दावा कब तक गिन-गिनकर झूठा साबित किया जाता रहेगा!

 

व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।

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