Breaking News

आवश्यकता है “बेखौफ खबर” हिन्दी वेब न्यूज़ चैनल को रिपोटर्स और विज्ञापन प्रतिनिधियों की इच्छुक व्यक्ति जुड़ने के लिए सम्पर्क करे –Email : [email protected] , [email protected] whatsapp : 9451304748 * निःशुल्क ज्वाइनिंग शुरू * १- आपको मिलेगा खबरों को तुरंत लाइव करने के लिए user id /password * २- आपकी बेस्ट रिपोर्ट पर मिलेगी प्रोत्साहन धनराशि * ३- आपकी रिपोर्ट पर दर्शक हिट्स के अनुसार भी मिलेगी प्रोत्साहन धनराशि * ४- आपकी रिपोर्ट पर होगा आपका फोटो और नाम *५- विज्ञापन पर मिलेगा 50 प्रतिशत प्रोत्साहन धनराशि *जल्द ही आपकी टेलीविजन स्क्रीन पर होंगी हमारी टीम की “स्पेशल रिपोर्ट”

Sunday, March 23, 2025 7:36:38 PM

वीडियो देखें

बैंकॉक जाकर जागे, हिन्दू छोड़ आर्य को धावे!

बैंकॉक जाकर जागे, हिन्दू छोड़ आर्य को धावे!

रिपोर्ट : बादल सरोज

 

हिन्दू धर्म की धार्मिक परंपराओं में से एक यह भी है कि जब किसी तीर्थ स्थल पर जाया जाता है या किसी को गुरु बनाया जाता है, तब किसी एक वस्तु का त्याग कर दिया जाता है । जैसे जो भी गंगा नहाने जाते है, वे कुछ न कुछ हमेशा के लिए छोड़ने का संकल्प लेकर आते हैं, कुछ न कुछ सिरा कर आते हैं। खुद को हिन्दू धर्म के स्वयंभू ठेकेदार मानने वाले आरएसएस ने इस परम्परा का निर्वाह करने में इस बार कुछ ज्यादा ही प्रयोगधर्मिता दिखाई और गंगा, यमुना, सरस्वती की बजाय थाईलैंड की नदी चाओ फ्राया के किनारे बैठ कर हिन्दू धर्म का ही परित्याग करके उसे सिराने का ऐलान कर दिया।u

 

संघ की अगुआई वाले इसके आनुषंगिक संगठन – वर्ल्ड हिन्दू कांग्रेस 2023 – के बैंकॉक में हुए तीसरे सम्मेलन के पहले दिन शुक्रवार 24 नवम्बर को पारित एक प्रस्ताव में हिंदू और हिंदूइज्म शब्द को यह तर्क देते हुए त्यागने की घोषणा की गयी कि यह शब्द दमनकारी और भेदभावपूर्ण है। इसमें पारित एक घोषणा में कहा गया है कि हिंदुत्व शब्द अधिक सटीक है, क्योंकि इसमें ‘हिंदू’ शब्द के सभी अर्थ शामिल हैं।

 

इस घोषणा के अनुसार :

“हिंदू एक असीमित शब्द है। यह उन सभी को दर्शाता है, जो सनातन या शाश्वत है। इसके विपरीत, हिंदू धर्म पूरी तरह से अलग है, क्योंकि इसमें “इज़्म” जुड़ा हुआ है, जो एक दमनकारी और भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण या विश्वास के रूप में परिभाषित शब्द है।”

इस घोषणा में दावा किया गया कि “इसीलिए हमारे कई बुजुर्गों ने हिंदू धर्म की तुलना में “हिंदुत्व” शब्द को प्राथमिकता दी, क्योंकि यह अधिक सटीक शब्द है, क्योंकि इसमें “हिंदू” शब्द के सभी अर्थ शामिल हैं। हम उनसे (उन बुजुर्गों से) सहमत हैं और हमें भी ऐसा ही करना चाहिए ।”

घोषणा इससे और आगे बढ़ती है और 1920 सावरकर द्वारा दिए गए “हिंदुत्व” की भी नयी व्याख्या करते हुए कहती है कि “हिंदुत्व कोई जटिल शब्द नहीं है और इसका सीधा सा मतलब हिंदूपन है।” इस कुनबे के शब्दकोश में यह हिन्दूपन एकदम नयी बात है।

घोषणा यह भी कहती है कि “सनातन” धर्म को संदर्भित करने के लिए हिंदुत्व और हिंदू धर्म को अपनाया गया है।” इतना ही नहीं, शब्दों के नए मायने और सन्दर्भ खोजने के चक्कर में सनातन को भी संज्ञा के स्तर से नीचे गिराकर विशेषण में बदल दिया गया और कहा कि “अन्य लोगों ने (हिन्दू शर्म या हिंदुत्व के) विकल्प के रूप में सनातन धर्म का उपयोग किया है, जिसे अक्सर “सनातन” के रूप में संक्षिप्त किया जाता है। यहां “सनातन” शब्द हिंदू धर्म की शाश्वत प्रकृति को इंगित करने वाले विशेषण के रूप में काम करता है।”

मतलब यह कि सिर्फ हिन्दू धर्म को ही नहीं सिराया गया, काफी हद तक सनातन को भी पुनर्परिभाषित कर दिया गया है। घोषणा में कहा गया है कि “कई शिक्षाविद और बुद्धिजीवी अज्ञानतावश हिंदुत्व को हिंदू धर्म के विपरीत के रूप में चित्रित करते हैं।“ इसलिए ऐसा करना जरूरी हो जाता है।

 

शब्दों के साथ खिलवाड़ और परिभाषाओं और व्याख्याओं के साथ लुकाछुपी खेलने की इस भूलभुलैया का पता सिरा ढूँढने की अभी जल्दबाजी मत कीजिये। अभी ठहरिये, अभी सरसंघचालक की एक नयी यलगार और सुन लीजिये। इस वर्ल्ड हिन्दू कांग्रेस का उदघाटन करते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हिन्दू, हिंदुत्व और सनातन से भी आगे जाकर पूरी दुनिया को “आर्य बनाने” की अपनी महती परियोजना का एलान किया।

 

उन्होंने कहा कि “दुनिया एक परिवार है। हम सभी को, पूरी दुनिया को, आर्य बनायेंगे ; आर्य यानी एक संस्कृति बनाएंगे। हालांकि संस्कृति शब्द काफी नहीं है, लेकिन एक बेहतर दुनिया के लिए मुझे संस्कृति कहना होगा।” मामला फिर उलझ गया न! एक तो खुद उनके मुताबिक़ ही हिन्दू और हिन्दू धर्मं की जगह हिन्दूपना होना था – उस पर उन्होंने उस हिंदुत्व को ही बुजुर्गों का पुराना शब्द कह दिया, जो महज सौ साल पुराना है। इन को भी छोड़ वे आर्य पर आ गए !!

 

अब आर्य कौन हैं?

उनके हिसाब से वे तो नहीं ही हो सकते, जो कुछ हजार वर्ष पहले यूरेशिया से आल्प्स पर्वत और कुभा, क्रमु जैसी दर्जनों नदियाँ और पहाड़ियाँ लांघते-फांदते धरती के इस हिस्से पर आये थे? नहीं, संघियों के आर्य अलग है। ये वे हैं, जो संस्कारी है, जो धर्मानुशासित हैं, जो सनातनी परम्पराओं का पालन करते हैं ।

मगर यहाँ भी एक लोचा है : कृण्वन्तो विश्वमार्यम् यानि दुनिया को आर्य बनाने का लक्ष्य तो मूर्तिपूजा के विरोधी, पुरोहिती पाखंड और जातिप्रथा के निर्मूलन के लिए आर्य समाज की स्थापना करने वाले स्वामी दयानंद सरस्वती ने दिया था। वेदों के आधार पर समाज को चलाने के हामी दयानंद सरस्वती ने इसे ऋग्वेद के श्लोक “ओम इन्द्रं वर्धनतो अप्तुरः कृण्वन्तो विश्वमार्यम्। अपघ्नन्तो अरव्नः” से लिया था। जिसका मोटा अर्थ है कि मनुष्य को अपनी दुःख-बुराइयों की वृत्तियों को हटाकर ‘इन्द्र’ अर्थात् आत्मा की समृद्धि और अपने सद्कर्मों की वृद्धि करनी चाहिए। इससे न केवल उसे अपने जीवन को बेहतर बनाने में मदद मिलती है बल्कि दूसरों की भलाई में योगदान करने में भी मदद मिलती है।

इस श्लोक में जिस “आर्य” की बात की गयी है, उस शब्द का तात्पर्य किसी विशेष जाति या ‘पंथ’ से नहीं है; बल्कि, इसका मतलब एक गुणी व्यक्ति है।

क्या संघ दुनिया को इसी तरह का आर्य बनाना चाहता है या वशिष्ठ स्मृति की तरह “कर्त्तव्यमनाचरण कर्म, अकृतव्यमनाचरण। विष्ठति प्रकृतिचारे ये स आर्य स्मृतिः” ( जो व्यक्ति केवल प्रशंसनीय कार्य करता है, परंपराओं को उच्च सम्मान देता है और उनका पालन करता है, हानिकारक आदतों और कार्यों को नहीं अपनाता है, बल्कि उनसे छुटकारा पाता है, और, अपने स्वभाव से, देखभाल करने वाला व्यक्ति है, वह ही और सिर्फ वही, अकेला वही आर्य कहा जाता है)। इसका मतलब साफ़ है कि वे स्मृतियों और संहिताओं की “परम्पराओं में जकड़े” मनुष्य को आर्य मानते हैं और पूरी दुनिया को इसी तरह का आर्य बनाना चाहते हैं ।

 

सन्दर्भ के साथ पढ़ने से यह बात और ठीक तरह से समझी जा सकती है। इसी कांग्रेस के उदघाटन भाषण में भागवत कहते हैं कि “इस समय भौतिकवादी, साम्यवादी और पूंजीवादी आदि-इत्यादि के चलते धन विजय, असुर विजय के झंझावातों से दुनिया हिली हुयी है, अस्थिर है, इसलिए उसे आर्य बनाकर स्थिर करना होगा।” यह कैसे होगा, के बारे में बताते- बताते भागवत जी दुनिया से अचानक स्वदेश वापस आ जाते हैं और कहते हैं कि “अनुशासन का पालन करने के लिए भारत के सभी संप्रदायों को शुद्ध करने की जरूरत है।” कुल मिलाकर यह कि हिन्दू धर्म, हिंदुत्व या सनातन, मुखौटा कोई भी हो,लक्ष्य एक ही है — “भारत के सभी संप्रदायों को शुद्ध और अनुशासित करना है।”

 

शब्दों के साथ खिलवाड़ की भूलभुलैया अंतत: उसी ठीये पर पहुंचाती है, जिसे सावरकर ने हिंदुत्व शब्द में मंत्रबद्ध, मुसोलिनी से सीख कर आये डॉ मुंजे ने अपनी संगठन संरचना और कार्यशैली में सूत्रबद्ध और संघ के गुरु जी गोलवलकर ने अपने विचार नवनीत में लिपिबद्ध किया है । बैंकाक में हुई तीसरी वर्ल्ड हिन्दू कांग्रेस उसे सिर्फ नयी वर्तनी देने की असफल कोशिश कर रही थी। अरक्षणीय को रक्षणीय बनाने के लिए शब्दों की मरीचिका रच रही थी।

 

यह आशंका तथ्यहीन या निराधार नहीं है। एक तो इसलिए कि आर्यों पर इतना ज्यादा जोर देने के बाद भी समावेश वर्ल्ड आर्य कांग्रेस नहीं हुई, वर्ल्ड हिन्दू कांग्रेस ही रही – इसमें अलग-अलग चले कोई 50 सत्रों की थीम के नाम भी नहीं बदले। वे हिन्दू अर्थव्यवस्था, हिन्दू शिक्षा, हिन्दू मीडिया, हिन्दू राजनीति, हिन्दू महिला, हिन्दू युवा और हिन्दू संगठन ही रहे : उनके नामों के आगे या पीछे आर्य नत्थी नहीं हुआ।

 

फिर अचानक हिन्दू धर्म – हिंदूइज्म – को सिराकर आर्य लाने की जरूरत कहाँ से और क्यों कर सामने आ गयी? इसके लिए पिछले कुछ महीनों पहले के घटनाक्रम की याद करना मददगार होगा । हिन्दू शब्द की व्युत्पत्ति और उसके बाद इसकी वर्णाश्रम आधारित अनिवार्यता के चलते उसकी व्यापकता के सिकुड़ने से बचाव के रूप में सनातन धर्म को प्रोडक्ट की तरह लांच किया गया था। यह बाजार में उतरने से पहले ही विवादित हो गया ; इसके प्रति सख्त असहमति सिर्फ तामिलनाडू से नहीं आयी बल्कि कुछ हजार वर्ष से इस सनातनी जड़ता के विरुद्ध धर्म और दर्शन, समाज और जीवन मूल्यों में चली मजबूत धाराओं से भी आयी। बहस की एक झड़ी लग गयी – इस उबाल को ढांपने के लिए ताजा जुमला आर्य शब्द के रूप में आया है। पुराने ब्रांड की नयी बोतल में भांग, वही पुरानी घुटी हुई भांग है।

 

खुद उनकी कतारों में भी यह जिज्ञासा है कि जब धरा के सारे हिन्दुओं की एकछत्र स्वयंभू प्रतिनिधि विश्व हिन्दू परिषद पहले से ही थी, तब अचानक से ये वर्ल्ड हिन्दू कांग्रेस कहाँ से आ गयी? अभी तरीके से इसे बने नौ वर्ष भी नहीं हुए हैं।

मोदी सरकार बनने के बाद 2014 में इस नए संगठन का नाम पहली बार तब सुनने में आया, जब इसका पहला जमावड़ा दिल्ली में हुआ था। इसी में तब के विश्व हिन्दू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय महासचिव अशोक सिंहल ने “800 वर्षों में पहली बार कोई हिन्दू देश की सत्ता में बैठा है” वाला बयान दिया था।

इसका दूसरा सम्मेलन 2018 में अमरीका के शिकागो शहर में हुआ था – इस हिसाब से 24, 25, 26 नवम्बर को बैंकाक में हुआ सम्मेलन तीसरा था।   

बैंकाक की इस डब्लू एच सी में कितने देश के कितने लोग शामिल हुए इस बारे में खुद आयोजक अभी तक स्पष्ट नहीं है उनकी खबरों में ही कभी 50, कभी 55 तो एक बार 61 देश बताये गए, यही स्थिति इसमें भागीदार प्रतिनिधियों की रही – उनकी संख्या भी 2100 से 3000 के बीच झूलती रही।  

विहिप के संयुक्त महासचिव स्वामी विज्ञानानंद इस संगठन के संस्थापक भी हैं, सर्वेसर्वा भी हैं । इनका दावा है कि इन्होने दुनिया के 60 देशों के 12 हजार कारोबारियों का नेटवर्क तैयार किया है ; इनका काम अपने-अपने देशों में हिन्दुओं तक पहुंचना, उनसे संवाद करना, उन्हें संगठित करना, हिन्दू धर्म के बारे में फ़ैली, फैलाई गयी भ्रांतियों का निराकरण करना और इन देशों में हिन्दू शिक्षा बोर्ड्स का गठन करवाना है।

ध्यान रहे, अभी तक इनके कामों में पूरी दुनिया को आर्य बनाने का काम नहीं जुड़ा था – उम्मीद है, भागवत जी के सदुपदेश के बाद अब यह काम भी जुड़ेगा। हालांकि समापन सत्र में आर्य उल्लेख में भी नहीं आये, संघ के सर कार्यवाह दत्तात्रय होसबोले ने दुनिया भर के हिन्दुओं से संपर्क बनाने का ही आव्हान किया, उन्हें आर्य बनाने के सरसंघचालक के लक्ष्य को नहीं दोहराया। अपने समापन भाषण में माता अमृतानन्दमयी देवी ने भी धर्म की पुनर्बहाली का आव्हान किया। यह एक तरह से इस कांग्रेस के ध्येय वाक्य “जयस्य आयतनम धर्मः” (धर्म ही विजय का आधार है) का दोहराया जाना था।

 

मगर कुलमिलाकर नयी बात वही थी, जो उदघाटन करते हुए सरसंघचालक मोहन भागवत ने कही ; पूरी दुनिया को आर्य बनाने की बात!! इस मंच से यह भले पहली बार कहा जा रहा था, किन्तु दुनिया के हिसाब से ऐसा कोई पहली बार नहीं हो रहा था – भागवत जी के पहले पूरी दुनिया को आर्य वर्चस्व के नीचे लाने और समूचे विश्व की आबादी का शुद्धिकरण करने की एक योजना अडोल्फ़ हिटलर नाम के व्यक्ति द्वारा अमल में लाने की कोशिश की जा चुकी है। उसका मानना था कि आर्य ही सबसे शुद्ध नस्ल है और उसमे भी शुद्धतम आर्य जर्मन आर्य हैं। उसका भी मानना था कि दुनिया भौतिकवाद, साम्यवाद और पूंजीवाद से त्रस्त हो चुकी है, उसे संस्कारवान बनाने के लिए उसका आर्यीकरण करने और जब तक ऐसा होता है, तब तक उसे आर्याश्रित बनाने की सख्त जरूरत है।

इसके लिए शुद्ध आर्य हिटलर ने जो किया-धरा, उसके इस धरा को क्या नतीजे भुगतने पड़े, यह दुनिया जानती है। इसे उन्हें दोबारा दोहराने या गिनाने की जरूरत नहीं है। इस पृष्ठभूमि के लिहाज से विश्व को आर्य बनाने की भागवत उक्ति अतिरिक्त सांघातिकता और गंभीरता ग्रहण कर लेती है।

 

बहरहाल दर्ज किये जाने वाली बात। यदि उधर एनआरआई – भारत से भागे भारतवासियों – के बीच बैठकर कभी इस कभी उस नाम पर, अब आर्य के नाम पर विभाजनकारी एजेंडे को नई वर्तनी, नयी धार और नए आयाम देने के मंसूबे साधे जाने की थी, तो इधर देश की सभी राजधानियों के राजभवनों के सामने दसियों हजार किसान और मजदूर डटे थे। इस देश की मेहनती जनता के गारे और सीमेंट से देश की एकता में डाली जा रही दरकनों को पूरने और एकता को फौलादी बनाने की जी तोड़ मुहिम मे लगे थे। इस बार उनकी मांगों में सिर्फ फौरी राहत या विपदाओं से बाहर लाने के कदम उठाये जाने की कातर गुहार नहीं थी, बल्कि इस दशा के लिए जिम्मेदार कॉर्पोरेट पूँजी और उसके साथ गलबहियाँ डाले बैठी हिन्दुत्ववादी साम्प्रदायिकता की देश और समाज की एकता तोड़ने की साजिशों के विरुद्ध हुंकार भी थी।

 

साढ़े नौ वर्षों से सत्ता में बैठा साम्प्रदायिक गिरोह अपने नुचते मुखौटे में पैबंद लगाने के लिए कारपोरेट की परोक्ष-अपरोक्ष स्पोंसरशिप पर बैंकाक के होटलों में रफूगर तलाश रहा था, तो इधर भारत में मेहनतकश अवाम बिना किसी भ्रम के असली दुश्मनों की पहचान कर रहे थे ; भारत दैट इज इंडिया की एकता मजबूत करने के रास्तों पर चल रहे थे।

 

लेखक पाक्षिक ‘लोकजतन ‘ के संपादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं।

व्हाट्सएप पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *