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Friday, March 28, 2025 5:54:15 AM

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बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर का राष्ट्रवाद असल में सामाजिक एकता की भावना से नाभिनालबद्ध है

बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर का राष्ट्रवाद असल में सामाजिक एकता की भावना से नाभिनालबद्ध है

रिपोर्ट : इंजी. डी. के. प्रभाकर

 

यहां यह भी कहना जरूरी है कि बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर का राष्ट्रवाद असल में सामाजिक एकता की भावना से नाभिनालबद्ध है। बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर मानते हैं कि कोई भी राष्ट्र तब तक मजबूत नहीं हो सकता जब तक कि वह सामाजिक रूप से एक ना हो। यहां यह बात और अधिक स्पष्ट होती है कि बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर राष्ट्रवाद और सामाजिक एकता को एक दूसरे का पूरक मानते हैं। राष्ट्रवाद के लिए सामाजिक एकता जरूरी है और सामाजिक एकता के लिए राष्ट्रवादी विचार भावना एक महत्वपूर्ण जरूरत है। दोनों एक दूसरे के बिना बहुत हद तक कमजोर है और अप्रासंगिक हैं और अस्वीकार्य है।

असल में बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर का राष्ट्रवाद उन सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक विषमताओं के प्रति सचेत व गंभीर राष्ट्रवाद है जो समय दर समय भारत की आम जनता की राष्ट्रीय चेतना को लील रहा था। यही कारण है कि बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर ने कहा भी है कि हमें अपने राजनीतिक लोकतंत्र को एक सामाजिक लोकतंत्र भी बनाना चाहिए। राजनीतिक लोकतंत्र तब तक नहीं चल सकता जब तक कि उसके मूल में सामाजिक लोकतंत्र निहित न हो।

बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर लोगों से यह अपेक्षा रखते थे कि वे व्यक्ति पूजा की भावना से परे गुणों की पूजा करें। वह नायक के निर्माण से अधिक नायकत्व का निर्माण करने वाले गुणों की पूजा करने को श्रेष्ठ मानते थे। यही कारण है कि जहां एक ओर बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर, गांधी के सामने भी अड़ जाते हैं और दूसरी ओर गांधी का सबसे ज्यादा आदर भी करते हैं। बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर का राष्ट्रवाद व्यक्ति पूजा पर आधारित राष्ट्रवाद नहीं है। असल में व्यक्ति पूजा पर आधारित राष्ट्रवाद दरअसल राष्ट्रवाद नहीं व्यक्तिवाद होता है और बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर इस सूक्ष्म तथ्य को बहुत अच्छी तरह समझते थे।

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