Breaking News

आवश्यकता है “बेखौफ खबर” हिन्दी वेब न्यूज़ चैनल को रिपोटर्स और विज्ञापन प्रतिनिधियों की इच्छुक व्यक्ति जुड़ने के लिए सम्पर्क करे –Email : [email protected] , [email protected] whatsapp : 9451304748 * निःशुल्क ज्वाइनिंग शुरू * १- आपको मिलेगा खबरों को तुरंत लाइव करने के लिए user id /password * २- आपकी बेस्ट रिपोर्ट पर मिलेगी प्रोत्साहन धनराशि * ३- आपकी रिपोर्ट पर दर्शक हिट्स के अनुसार भी मिलेगी प्रोत्साहन धनराशि * ४- आपकी रिपोर्ट पर होगा आपका फोटो और नाम *५- विज्ञापन पर मिलेगा 50 प्रतिशत प्रोत्साहन धनराशि *जल्द ही आपकी टेलीविजन स्क्रीन पर होंगी हमारी टीम की “स्पेशल रिपोर्ट”

Wednesday, May 14, 2025 4:32:21 AM

वीडियो देखें

गवर्नर व मुख्यमंत्री देंगे डॉ. राजाराम को डाक्टरेट!

गवर्नर व मुख्यमंत्री देंगे डॉ. राजाराम को डाक्टरेट!

गांडा-जनजाति पर देश का पहला शोध , 7- साल के कठोर परिश्रम से हुआ पूर्ण,

बहादुर, कला प्रवीण तथा गौरवशाली गांडा जाति अन्याय तथा पक्षपात के कारण आज हाशिए पर,

फिर से सिर उठाकर चलने का हौसला देने वाले डॉ राजाराम त्रिपाठी गांडा-समाज के सबसे बड़े हितैषी,(गांडा सामाजिक संगठन)

7 सालों के कठोर परिश्रम तथा तमाम कठिनाइयों के उपरान्त अंततः डॉ राजाराम त्रिपाठी को 5 मार्च को शहीद महेंद्र कर्मा शासकीय विश्वविद्यालय जगदलपुर में होने वाले दीक्षांत समारोह में माननीय गवर्नर महोदय तथा माननीय मुख्यमंत्री विष्णु देव साय एवं माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी की वर्चुअल उपस्थिति में डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान किया जाएगा। इस अवसर पर अपनी शोध यात्रा के अनुभव साझा करते हुए डॉक्टर त्रिपाठी ने बताया कि उन्हे भी समाचार पत्रों के माध्यम से यह पता चला है। अपने शोध के बारे में उन्होंने कहा कि अन्य जनजातीय एवं अनुसूचित जातियों पर देश में कई शोध हुए हैं किंतु मेरी जानकारी केअनुसार गांडा जनजाति पर यह अपने आप मे अनूठा,पहला व अब तक एक मात्र शोध है। ऐतिहासिक अध्ययन तथा शोध से पता चला कि गांडा जनजाति के साथ बहुत बड़ा संवैधानिक धोखा और पक्षपात हुआ है जिसके कारण इस जाति के लोगों की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक स्थिति में लगातार गिरावट आई है। सामाजिक स्थिति कि अगर हम बात करें कि वे आज यह समुदाय समाज के सबसे अंतिम पायदान पर खड़े हैं। अपनी हीन स्थिति को प्रदर्शित करने में शर्म तथा संकोच के कारण आज इस जनजाति के लोग मजबूरी में समाज में अपनी वास्तविक वस्तुस्थिति को छुपाने के लिए नाना प्रकार के साधन अपना रहे हैं। जबकि इतिहास बताता है कि पूर्व में यह जाति तरह-तरह के कलाओं में प्रवीण होने के साथ ही शूरवीर तथा युद्ध के मोर्चे पर सदैव अग्रिम पंक्ति में लड़ने वाली बहादुर व सम्मानित जनजाति मानी जाती थी। जनजातीय क्षेत्रों में लोकशिल्प, घड़वा शिल्प, बुनकर कार्य, मृदा शिल्प तथा लोक वाद्ययंत्रों जैसे कि देसी नंगरा, तुड़बुड़ी बाजा बजाने से लेकर इन बाजों को बजाने से लेकर इन बाजों को बनाने तक सभी शिल्पगत तथा कलागत कार्य इनके द्वारा ही किया जाता रहा है।व
एक और बड़ा तथा महत्वपूर्ण योगदान इस समुदाय का यह रहा है कि यह जनजाति गांव के अन्य सभी समुदायों के लोगों का सदियों से जड़ी बूटियां से तथा परपंरागत तरीकों से इलाज करते रहे हैं। इनके पास दर्जनों असाध्य बीमारियों के भी प्रभावी प्राकृतिक इलाज मौजूद रहे हैं, जबकि इन बीमारियों का विश्व में कहीं भी पूर्ण इलाज संभव नहीं है। हालांकि इस जाति को उपेक्षित किए जाने के उपरांत धीरे-धीरे इनका सदियों से संचित अनमोल ज्ञान का खजाना विलुप्त होते जा रहा है। गांडा जनजाति सदियों से ही जनजातीय समुदाय का अभिन्न अंग रहा है । यह सदियों से जंगलों में जनजातीय समुदाय के एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में साथ साथ रहते आए हैं इनके जाति उपनाम ,कुल गोत्र , टोटम आदि सभी स्थानीय जनजातीयों से शत प्रतिशत साम्यता पाई जाती है। इनके देवी देवता तथा उनकी पूजा अर्चना की विधि, तिथि त्यौहार जन्म विवाह तथा मरण के सभी संस्कार भी कमोवेश एक समान हैं। किंतु आजादी के बाद अज्ञानता, त्रुटिपूर्ण एवं गलत सर्वेक्षण के कारण इन्हें आदिम जनजाति की श्रेणी से हटकर अनुसूचित जाति तथा कहीं-कहीं पर अन्य पिछड़ा वर्ग में डाल दिया गया है। इसे एक तरफ तो इन्हें अपनी सदियों से काबिज कास्त की जमीनों पर अधिकार मिलने में बाधा आई, और यह भूमिहीन रह गए, शिक्षा तथा राजनीति के क्षेत्र में भी इसी कारण ये वंचित रह गए। कारखाने में मशीनों से तैयार की गई सस्ती वस्तुओं के गांव के बाजारों में आने के बाद इनका लोह शिल्प का, मिट्टी शिल्प का, कपड़े बुनने का गढ़वा शिल्प का काम तथा आमदनी दोनों ठप्प पड़ गई। दूसरी तरफ इस पक्षपात पूर्ण वर्गीकरण के कारण इनका सामाजिक स्थान की बहुत नीचे हो गया। डॉ त्रिपाठी ने इन सारे ऐतिहासिक तथ्यों को प्रमाण के साथ अपने शोध में प्रस्तुत किया है। निश्चित रूप से समूची गांडा जनजाति के लिए डॉ राजाराम त्रिपाठी का यह यह शोध अंधेरे में भटक रहे समुदाय के लिए एक मार्गदर्शक मशाल की तरह है। इस शोध के बारे में जानकर गांडा समाज के कई पढ़े लिखे विद्वतजनों ने तथा जनप्रतिनिधियों ने डॉक्टर राजाराम त्रिपाठी को गांडा समाज का सबसे बड़ा हितैषी घोषित करते हुए उनके शोध को मील का पत्थर माना है। इस समाज के सामाजिक संगठनों ने डॉक्टर त्रिपाठी को उनके शोध पर बधाई देते हुए उन्हें उनका सार्वजनिक अभिनंदन कर सम्मानित करने की बात भी कही है।

व्हाट्सएप पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *