रिपोर्ट : राजेंद्र शर्मा
मोदी जी के साथ जरूर धोखा हुआ है। धोखा क्या, फर्जीवाड़ा हुआ है फर्जीवाड़ा। अमृत काल के राम पर बेचारों को लोगों ने राहुकाल टाइप कुछ भेड़ दिया गया लगता है। वर्ना अमृत काल और ये हाल! कुछ भी तो ठीक नहीं चल रहा है। अमृत वर्ष में इतनी मुश्किल से महाराष्ट्र में एक सरकार चुनाव के बिना कमायी थी, पर अमृत काल से मुश्किल से हफ्ते भर पहले बिहार में अपनी गांठ की सरकार गंवा दी। एक फालतू सरकार कमायी और एक गांठ की गंवायी यानी स्कोर जहां का तहां! पर बात सिर्फ टोटल स्कोर की होती, तो फिर भी अमृत काल के अमृत काल होने का भरोसा बना रहता। पर यहां तो ऐसा लग रहा है कि बिहार के साथ बेचारों का गलत टाइम ही शुरू हो गया है। बिहार वालों ने बड़े-बड़े चाणक्यों की चाणक्यगीरी फेल कर दी, पर बात फिर भी समझ में आती है। आखिरकार, चाणक्य था तो बिहारी ही। बिहारियों के सामने गुजराती या कहीं और के भी चाणक्य छोटे पड़ ही सकते थे। पर अब तो पिद्दी सी दिल्ली से लेकर, गरीब झारखंड तक, जहां भी देखो, जिसे भी देखो, दिल्ली तख्त वाले चाणक्य भाई को अंगूठा दिखा-दिखा के जा रहा है। ये अमृतकाल की पैकिंग में मोदी जी को बुरे दिन भेड़ दिए जाने का मामला नहीं, तो और क्या है?
अब बताइए, दिल्ली में महाराष्ट्र रिपीट होने में क्या मुश्किल थी। इतनी छोटी सी तो है कि लैफ्टीनेंट गवर्नर हर वक्त, चुनी हुई सरकार पर सवारी गांठने के चक्कर में रहता है। ऊपर से पुलिस शाह साहब की। नौकरशाही, सीधे मोटा भाई की। फिर भी, सीबीआइ खुद फेल हुई तो हुई, बीस-बीस करोड़ के हिसाब से, 800 करोड़ के रेवड़ी पार्क के ऑफर को भी साथ में ले डूबी। बेचारे ऑपरेशन कमल की बदनामी हुई, सो ऊपर से। वह तो कमल पर कीचड़ के छींटों से फर्क नहीं पड़ता है, क्योंकि वह तो उगता, बढ़ता ही कीचड़ में है। वर्ना कोई और निशान होता, तो बेचारे का मुंह परमानेंटली कीचड़ से काला और शर्म से लाल हो गया होता!
पर ये खराब टैम दिल्ली पर भी तो नहीं रुक रहा है। यहां तो खरबूजे को देखकर, दूसरे खरबूजों ने भी रंग बदलना शुरू कर दिया है। बिहार और दिल्ली के बाद, अब तो कम पढ़ा और गरीब झारखंड भी, दिल्ली के तख्त वाले चाणक्य भाई को फेल करने पर तुला हुआ है। पहले समर्थक पार्टी के विधायक खरीदने का इंतजाम किया, पर चोरी पकड़ी गयी। फिर सीधे सीएम पर झपट्टा मारा। गवर्नर अपना, चुनाव आयोग अपना, टीवी-अखबार सब अपना, पर कुछ भी काम आता नजर नहीं आ रहा है। उल्टे झारखंडी आदिवासी सीएम, दिल्ली सल्तनत वाले चाणक्य भाई को खुद उन्हीं के दांव से छका रहा है। तू डाल-डाल, मैं पात-पात का खेल खिला रहा है। और दीदा दिलेरी देखिए, बंदा अपने समर्थक विधायकों को झारखंड में ही रखकर गैस्ट-हाउस के मजे करा रहा है और शिकारियों को धता बता रहा है। खर्चा भी कम और काम भी मजबूत। फिर ये तो शुरूआत है। आगे-आगे देखिए, दिल्ली सल्तनत के चाणक्यों को छकाता है और कौन-कौन?
मोटा भाई-छोटा भाई, अमृत काल की इस उल्टी चाल को चलते नहीं रहने दे सकते! या तो विधायकों/ सांसदों वगैरह की नीलामी को कानूनी कर दें और कुर्सी, सबसे ऊंची बोली लगाने वाले के नाम करने का नियम बना दें। फिर देखते हैं कौन विपक्षी सरकार बनाता/ बचाता है। नहीं तो अमृत काल का ही नाम बदलकर, राहु काल कर दें। कम से कम अमृत काल में वक्त की उल्टी चाल तो नहीं देखनी पड़ेगी।
व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।
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