रिपोर्ट : राजेन्द्र शर्मा
तीसरे चरण का चुनाव प्रचार थमने के फौरन बाद प्रधानमंत्री मोदी का अयोध्या में रामलला के दर्शन करने के लिए पहुंचना, न तो अकस्मात था और न संयोग। नरेंद्र मोदी को 22 जनवरी के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद, रामलला की याद इसी समय पर क्यों आई, इस पर बेशक अनुमान ही लगाए जा सकते हैं। लेकिन, इस तथ्य को अनेक प्रेक्षकों ने दर्ज किया है कि आधे से ज्यादा चुनाव का प्रचार खत्म हो जाने के बाद, प्रधानमंत्री का रामलला की शरण जाना सिर्फ आस्था का मामला भर नजर नहीं आता है। इसकी सीधी-सी वजह यह है कि इस बार के चुनाव प्रचार के दौरान ही राम नवमी भी निकली है, जो अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद पहली ही राम नवमी थी। वास्तव में खुद नरेंद्र मोदी ने, इस राम नवमी के दिन, विशेष रूप से ‘राम लला के सूर्यतिलक’ के बहाने, इस मौके की जोर-शोर से याद दिलाई थी। वास्तव में उन्होंने उस समय असम में अपनी चुनाव सभा में लोगों से सैलफोन टॉर्च की रौशनी कर के, इस सूर्य तिलक में भागीदारी का हास्यास्पद टोटका भी कराया था। बहरहाल, राम नवमी पर नरेंद्र मोदी अयोध्या में रामलला के दर्शन करने के लिए नहीं गए। वह अयोध्या पहुंचे तो तीसरे चरण की 93 सीटों के लिए भी प्रचार खत्म हो जाने यानी व्यावहारिक मानों में आधा चुनाव खत्म हो जाने के बाद।
जाहिर है कि नरेंद्र मोदी का यह कार्यक्रम कोई अचानक नहीं बन गया होगा। इसलिए, इस संभावना को आसानी से नकारा नहीं जा सकता है कि पहले से नरेंद्र मोदी का कार्यक्रम इस तरह बनाया गया होगा, जिसमें चुनाव के बीचों-बीच मंदिर में अपने साष्टांग दंडवत और उसके बाद के रोड शो से, वह खासतौर पर मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा और आम तौर पर मंदिर निर्माण के श्रेय के अपने दावे की याद ताजा कर सकें। ‘जो लाए हैं राम को, हम उनको लाएंगे’ के नारों के लिए एक बार फिर मौका बना सकें। लेकिन, अगर वाकई ऐसा हो तब भी, सब कुछ मोदी की स्क्रिप्ट के हिसाब नहीं चल रहा लगता है। इसलिए, असंभव नहीं है कि राम नवमी को मिस करने के बाद, चुनाव के बीचों-बीच मोदी के अयोध्या दौरे की योजना बाद में, कुछ हड़बड़ी में बनाई गई हो।
वैसे सब कुछ पूर्व-योजना के ही अनुसार हुआ हो तब भी, मोदी के अयोध्या में ढोग लगाने की अर्जेंसी कितनी बढ़ गई थी, इसका कुछ अंदाजा तीसरे चरण के चुनाव प्रचार के आखिर तक आते-आते, विपक्ष के खिलाफ हिंदुओं को भड़काने के लिए खुद मोदी और उनकी देखा-देखी अन्य सभी भाजपा नेताओं के, सबसे बढ़कर राम और राम मंदिर की दुहाई का सहारा लेने से लग जाता है। यह कोई संयोग ही नहीं है कि तीसरे चरण के प्रचार के आखिर तक आते-आते, उनके प्रचार से मोदी की गारंटियां तक गायब हो गई हैं और प्रचार के केंद्र में इसके दावे आ गए हैं कि मोदी और उनके गठजोड़ के विरोधी, राम-विरोधी हैं। उन्होंने प्राण-प्रतिष्ठा समारोह का आमंत्रण ठुकरा कर राम का अपमान किया था और अब, कांग्रेस से दलबदल करा कर भाजपा में शामिल किए गए, उसके एक-दो प्रवक्ताओं के बयानों के बहाने से यह भी कि विरोधी तो, रामलला के दर्शन करने जाने वालों को दंडित कर रहे हैं। और आदित्यनाथ की एकदम ताजातरीन खोज यह भी कि अगर इंडिया गठबंधन वाले सत्ता में आ गए, तो ये राम मंदिर के निर्माण को ही पलटवा देंगे! हैरानी नहीं होगी कि कल को इससे एक कदम आगे जाकर, वे यह प्रचार करना शुरू दें कि उनके विरोधियों की सरकार आ गई तो, राम मंदिर को तुड़वा कर दोबारा वहां बाबरी मस्जिद बनवा देेंगे!
किसी से छुपा हुआ नहीं है कि पूरी तरह से राम भरोसे हो जाने की मंजिल तक मोदी की भाजपा का प्रचार अभियान, इस बार का चुनाव जैसे-जैसे आगे बढ़ता गया है, वैसे-वैसे पहुंचा है। अलबत्ता, उसका प्रचार अभियान चुनाव के हरेक चरण के साथ, ज्यादा से ज्यादा राम भरोसे होता गया है। जाहिर है कि पहले चरण के मतदान से पहले तक राम मंदिर बनाने की दुहाई थी जरूर, लेकिन उससे ज्यादा नहीं, तो उतना ही शोर मोदी की गारंटियों का और पांच साल में भारत को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना देने से लेकर, 2047 तक विकसित भारत बनाने के दावों/वादों का भी था। लेकिन, पहले चरण के मतदान में, 2019 के मुकाबले करीब 6 फीसद की कमी की खबर आते ही (हालांकि चुनाव आयोग ने कई दिन बाद मतदान का आंकड़ा बढ़ाने हुए इस कमी को आधा ही कर दिया) और यह साफ होते ही सब कुछ के बाद भी कम-से-कम मोदी के हक में इकतरफा वोट नहीं पड़ रहा है, बल्कि मोदी का रंग पिछले आम चुनाव के मुकाबले उतार …
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