इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए) के संरक्षण और सांस्कृतिक अभिलेखागार विभाग ने अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस 2024 के अवसर पर उमंग सभागार में ‘‘संग्रहालय और अभिलेखागार: शिक्षा के लिये एक सार्वजनिक स्थान’’ विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया। संगोष्ठी की अध्यक्षता आईजीएनसीए, डीन (प्रशासन) और कला निधि विभाग प्रमुख प्रो. रमेश चंद्र गौड़ ने की।
कार्यक्रम का उद्देश्य आईजीएनसीए सांस्कृतिक अभिलेखागार के प्रति जागरूकता पैदा करना और अधिक आगंतुकों को आकर्षित करना है, जिससे छात्रों, कलाकारों और शोधकर्ताओं को लाभ होगा। संगोष्ठी में भाग लेने वाले प्रतिष्ठित वक्ताओं में एयूडी, दिल्ली में डिप्टी डीन (अकादमिक) डा. आनंद बुर्धन, अभिलेखविद् डॉ. के संजय झा, और आईजीएनसीए, मीडिया केन्द्र की उप-नियंत्रक सुश्री श्रुती नागपाल और आईजीएनसीए, सहायक प्रोफेसर, डा. वीरेन्द्र बांगरू शामिल थे।
डा. आनंद बुर्धन ने अपने संबोधन में इस बात को लेकर तर्क दिया कि एक औपनिवेशक निर्माण के तौर पर भारत में संग्रहालयों की अवधारणा दोषपूर्ण रही है। उन्होंने जोर देते हुये कहा कि भारत में प्राचीन काल से ही कला, संस्कृति, साहित्य और ज्ञान के भंडारों को सहेजे रखने की लंबी परंपरा रही है। उन्होंने संग्रहालय बनाने और आवास कलाकृतियों के लिये विभिन्न प्रावधानों को वर्गीकृत करने के नारद शिल्प जैसे ग्रंथों का हवाला देते हुये कहा कि यह दर्शाते हैं कि भारत में संग्रहालय विज्ञान को लेकर प्रचुर ज्ञान-संवाद पहले से ही मौजूद है। डा. बुर्धन ने संग्रहालय विज्ञान के क्षेत्र में भारतीय ज्ञान-विज्ञान प्रणाली को एकीकृत किये जाने की आवश्यकता दोहराई।
प्रो. रमेश चंद्र गौड़ ने अपने संबोधन में विरासत और संस्कृति को प्रदर्शित करने में संग्रहालयों के महत्व पर जोर दिया। इस संबंध में उन्होंने अपनी हाल की मंगोलिया यात्रा का जिक्र किया जहां वह राष्ट्रीय इतिहास और विरासत पर संग्रहालयों के रख रखाव को लेकर प्रभावित हुये। प्रो. गौड़ ने हम्पी को लेकर एक कहानी साझा की जिसमें उन्होंने डिजिटल संरक्षण के महत्व पर जोर दिया, विशेषतौर से जब किसी संस्कृति अथवा परंपरा के विलुप्त होने का खतरा होता है। उन्होंने संरक्षण में प्रौद्योगिकी की भूमिका पर जोर देते हुये कहा कि इससे अतीत जीवंत हो सकता है। संग्रहालय शिक्षा और इसके प्रौद्योगिकी के साथ एकीकरण के क्षेत्र में भारत के पीछे रहने पर चिंता व्यक्त करते हुये उन्होंने जीएलएएम (गैलरी, लाइब्रेरी, अभिलेखागार और संग्रहालय) को अलग-थलग मानने के बजाय उसके प्रति एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता जताई। उन्होंने इस क्षेत्र में समावेशी व्यवहारों और प्रशासनिक सिद्धांतों में बदलाव का आह्वान किया।
सहायक प्रोफेसर वीरेन्द्र बांगरू ने इस अवसर पर ‘‘शिक्षा और शोध के लिये संग्रहालयों पर फिर से विचार: आईजीएनसीए द्वारा समर्थित हिमालयी क्षेत्र में संग्रहालयों पर एक अध्ययन’’ शीर्षक से एक पत्र प्रस्तुत किया जिसमें हिमालयी क्षेत्र में स्वनिर्भर संग्रहालय मॉडल की आवश्यकता पर जोर दिया गया। डॉ. श्रुति नागपाल ने अपने प्रपत्र ‘‘फिल्म संस्कृति के आसपास अभ्यास, शोध और दस्तावेजीकरण’’ में आईजीएनसीए के फिल्म अभिलेखागार पर विशेष ध्यान देते हुये फिल्म अभिलेखागारों के विभिन्न पहलुओं की खोज की। उन्होंने अपने संबोधन में चर्चा की कि फिल्म अभिलेखागार क्या है और आईजीएनसीए का फिल्म अभिलेखागार किस प्रकार वैश्विक कार्य प्रणाली और अनुसंधान को प्रेरित कर सकता है।
अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस (आईएमडी) का उद्देश्य सांस्कृतिक आदान-प्रदान, सांस्कृतिक समृद्धि और आपसी समझ, सहयोग और शांति को बढ़ावा देने में एक महत्वपूर्ण साधन के तौर पर संग्रहालयों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। इस वर्ष की विषयवस्तु ‘शिक्षा और अनुसंधान के लिये संग्रहालय’ समग्र शैक्षिक अनुभव प्रदान करने और एक जागरूक, टिकाऊ और समावेशी दुनिया की वकालत करने में सांस्कृतिक संस्थानों की भूमिका पर जोर देती है। आईकॉम द्वारा उल्लिखित आईएमडी 2024 के लक्ष्य हैंः लक्ष्य 4: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा – समावेशी और न्यायसंगत गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना और सभी के लिये आजीवन सीखने के अवसरों को बढ़ावा देना, और लक्ष्य 9 : उद्योग, नवोन्मेष और अवसंरचना – लोचदार बुनियादी ढांचा बनाना, समावेशी और टिकाऊ औद्योगीकरण और नवोन्मेष को बढ़ावा देना। संगोष्ठी का उद्देश्य अनुप्रयुक्त संग्रहालय विज्ञान, कला इतिहास और भारतीय सौंदर्यशास्त्र के युवा विद्वानों, शोधकर्ताओं और छात्रों को आईजीएनसीए के अभिलेखागार संग्रहों के बारे में जानकारी देकर शिक्षित करना है जिससे भारतीय कला और संस्कृति के महत्व को लेकर युवा दिमाग में एक जगह बनाई जा सके।
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