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Monday, March 24, 2025 3:08:32 AM

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आदिवासियों-दलितों पर भारी पड़ रहीं सरकार की आर्थिक नीतियां

आदिवासियों-दलितों पर भारी पड़ रहीं सरकार की आर्थिक नीतियां

समस्याओं को लेकर जयपुर के शहीद स्मारक पर धरना-प्रदर्शन

आदिवासी जनाधिकार एका मंच राज्य कमेटी राजस्थान ने राज्यपाल के नाम सौंपा ज्ञापन

जयपुर/ कोटा। आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच के राष्ट्रव्यापी आह्वान पर सोमवार को आदिवासी जनाधिकार एका मंच राज्य कमेटी राजस्थान की ओर से आदिवासियों को रोजगार से वंचित करने सहित कई समस्याओं को लेकर जयपुर के शहीद स्मारक पर धरना प्रदर्शन कर राज्यपाल के नाम ज्ञापन सौंपा गया।
सीटू महामंत्री मुरारीलाल बैरवा ने बताया कि सोमवार को आदिवासी जनाधिकार एका मंच राजस्थान की राज्य कमेटी की ओर से आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच (AARM) के राष्ट्रव्यापी आह्वान पर आदिवासियों को रोजगार से वंचित करने सहित कई समस्याओं को लेकर शहीद स्मारक पर धरना-प्रदर्शन किया गया।
गौरतलब है कि नई दिल्ली में आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच द्वारा आदिवासियों को रोजगार से वंचित करने के खिलाफ हुए अखिल भारतीय कन्वेंशन के राष्ट्रीय आह्वान पर और साथ ही राजस्थान के आदिवासियों की स्थानीय मांगों को लेकर सभी राज्यों के राजभवन पर धरना-प्रदर्शन करने का निर्णय लिया गया था। इसी के तहत आदिवासी जनाधिकार एका मंच राजस्थान राज्य कमेटी की ओर से धरना प्रदर्शन किया गया। धरने पर आमसभा को सम्बोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि केन्द्र व राज्य सरकार की आर्थिक नीतियों की वजह से आदिवासियों और दलितों के रोजगार पर लगातार हमले हो रहे हैं। केन्द्र सरकार की नौकरियों में 10 लाख से अधिक पदों की रिक्तियां पड़ी है। जिसकी वजह से आदिवासी भी केन्द्र सरकार की नौकरियों से वंचित हो रहे हैं।
सरकारी संस्थाओं के निजीकरण व ठेकाकरण से की जाने वाली भर्तियों में आरक्षण का प्रावधान नहीं होने से बड़ी संख्या में दलित-आदिवासी रोजगार से वंचित हो रहे हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार देश में अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या 8.6% है, जबकि केन्द्र और राज्य सरकार की भर्तियों में 7.5% ही आरक्षण दिया जा रहा है। जिसकी वजह से 1.1% का नुकसान हो रहा है। निजीकरण व ठेकाकरण के परिणामस्वरुप केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति की 25169 आरक्षित नौकरियां खत्म हो गई हैं। बीमा और बैंकिंग क्षेत्र और अन्य वित्तीय संस्थानों में आरक्षण के लागू करने के बाद के कोई व्यापक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। शिक्षा पर एकीकृत जिला सूचना प्रणाली के आंकड़ों के अनुसार सरकारी और निजी स्कूलों में अनुसूचित जनजाति शिक्षक 7.6% ही रह गए हैं। जिससे आदिवासी शिक्षकों को कुल संख्या में 35000 की कमी आई है। उच्च शिक्षा में शिक्षकों के रूप में आदिवासियों की नियुक्ति का रिकॉर्ड और भी खराब है। अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण के अनुसार 2021 में उच्च शिक्षण संस्थानों में केवल 2.6% अनुसूचित जनजाति के शिक्षक हैं। केन्द्र सरकार के तहत सिर्फ नौ मंत्रालयों में संसदीय पैनल की रिपोर्ट अगस्त 2023 में कहा गया है कि अनुसूचित जनजाति के 12,167 पद खाली थे।
रिपोर्ट में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों को मिलाकर 22.3% आरक्षण दिया गया है। निदेशक और उससे ऊपर के स्तर के 928 पदों में से 208 आरक्षित कोटे में से केवल 120 यानि 13% अनुसूचित जाति, जनजाति के हैं। केन्द्र में 87 सचिवों में से मंत्रालयों और विभागों में अनुसूचित जाति, जनजाति श्रेणी से केवल 4 सचिव स्तर के अधिकारी हैं जो कि मात्र 4.3% है। इसी तरह 90 स्वीकृत आरक्षित पदों के बजाय सिर्फ 12 अतिरिक्त सचिव हैं। एससी, एसटी वर्ग से 242 स्वीकृत पदों के मुकाबले सिर्फ 25 संयुक्त सचिव हैं। उप सचिव, निदेशक स्तर पर 507 पदों के मुकाबले एससी, एसटी से 79 अधिकारी हैं। जो मात्र 15.52% है।
विभिन्न परियोजनाओं, योजनाओं के कर्मी जैसे आंगनबाड़ी, आशा, मिड-डे-मील व अन्य की भर्ती स्थानीय स्तर पर होती है। जिसकी वजह से आदिवासी रोजगार से वंचित हो रहा है। राज्य सरकार के रोजगार में भी यही स्थिति है। आदिवासी जनाधिकार एका मंत्र राजस्थान अपनी स्थापना से लगातार आदिवासियों की विभिन्न मांगों को लेकर संघर्षरत है।

इन्होंने किया आमसभा को संबोधित

आमसभा को सम्बोधित करने वाले वक्ताओं में आदिवासी जनाधिकार एका मंच राजस्थान के
प्रदेश अध्यक्ष दुलीचन्द मीणा, डूंगरपुर जिलाध्यक्ष गौतम डामोर, उदयपुर जिलाध्यक्ष हाकर चन्द खराड़ी, बून्दी से खलील खां, चित्तौडगढ से परसराम भील, राजसमंद से केसर सिंह, सीपीआई (एम) राज्य सचिव किशन पारीक, महिला कामगार नेता सुमित्रा चौपड़ा, जनवादी महिला समिति की कुसुम सांईवाल, अखिल भारतीय खेत मजदूर यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष रामरतन बगडिया, एसएफआई के फाल्गुन बरांडा, भारत की जनवादी नौजवान सभा के रितांश आजाद, सीटू प्रदेश अध्यक्ष भंवर सिंह, प्रदेश महासचिव बीएस राणा, प्रभुलाल भगोरा और अखिल भारतीय किसान सभा राजस्थान के संयुक्त सचिव डाॅ. संजय माधव थे। अध्यक्षता प्रदेशाध्यक्ष दुलीचंद ने की। संचालन राज्य सचिव विमल भगोरा ने किया।

इन मांगों को लेकर सौंपा ज्ञापन

प्रदर्शन के बाद प्रतिनिधिमंडल में शामिल दुली चंद, विमल भगोरा, गौतम डामौर, प्रेम पारगी, हाकर चंद ने राजभवन में राज्यपाल की अनुपस्थिति में उनके एडीसी को ज्ञापन सौंपा। जिसमें आदिवासी आबादी के अनुपात में सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण सुनिश्चित करने, जनगणना 2011 के अनुसार वर्तमान में आदिवासी आबादी के राष्ट्रीय औसत के रूप में 8.6 प्रतिशत अनुमानित है, उसे आगामी जनगणना के आधार पर बढाए जाने, सभी सरकारी नौकरियों में चाहे वे कैजुअल हों, ठेके पर हों, वर्क चार्ज वाली हों या डेली वेजेज वाली सभी में आरक्षण कोटा लागू करने तथा
इस तरह की भर्ती के साथ डेपूटेशन पर दी जाने वाली छूट को खत्म करने, नौकरियों में आरक्षण को निजी क्षेत्र तक बढ़ाए जाने, सरकारी, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, शिक्षण पेशे और अन्य क्षेत्रों और संस्थानों में सभी बैकलॉग रिक्तियों को भरने, सरकारी मंत्रालयों और विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र के वित्तीय संस्थानों आदि द्वारा भर्ती और पदोन्नति में आरक्षण को लागू करने पर व्यापक डेटा नियमित रूप से प्रकाशित करने, केन्द्र व राज्य सरकारों केन्द्रीय व राज्य स्तरीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों, रेल्वे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों, शैक्षणिक संस्थानों और चिकित्सा संस्थानों सहित सभी सरकारी संगठनों में आरक्षण की स्थिति के साथ ग्रेडवार स्वीकृत और रिक्त पदों के पूरे आंकड़े सार्वजनिक किए जाने,
ठेका संविदा कर्मचारियों (ग्रेडवार) पैरा शिक्षकों, अन्य ठेका, संविदा कर्मचारियों और स्कीम वर्करों (आंगनबाड़ी, आशा और मिड-डे-मील कर्मी) के बीच अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधित्व पर आंकड़े सार्वजनिक करने, निजीकरण की नीतियों को समाप्त करने, पांचवी अनुसूचि के प्रावधान को ईमानदारी से लागू करने व इस कानून की पालना करने, जल, जंगल, जमीन व खनिज पर आदिवासियों को अधिकार देने, टीएसपी क्षेत्रों की भर्तियों में आदिवासियों की जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने, प्रशासनिक सेवा में टीएसपी क्षेत्र के आदिवासियों को पृथक आरक्षण देने,
राजस्थान में उप वर्गीकरण को लागू करने से पहले राज्य में आदिवासियों की आर्थिक, शैक्षणिक सहित सभी आवश्यक स्थितियों का अध्ययन करने, वनाधिकार कानून के तहत वनभूमि पर काबिज सभी आदिवासियों को पट्टे देने व किसी को बेदखल नहीं करने, छात्रावासों की संख्या बढाने, व्यवस्था में सुधार करने व छात्र वृत्तियों का भुगतान प्रतिमाह करने,
आदिवासियों के विकास के लिए केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा जनसंख्या के अनुपात में बजट का आवंटन करने, आदिवासी क्षेत्र सहित राज्य के विभिन्न विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में शिक्षकों व अन्य कर्मचारियों के रिक्त पदों पर तुरन्त भर्ती करने आदि मांगें रखी गईं।

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