Breaking News

आवश्यकता है “बेखौफ खबर” हिन्दी वेब न्यूज़ चैनल को रिपोटर्स और विज्ञापन प्रतिनिधियों की इच्छुक व्यक्ति जुड़ने के लिए सम्पर्क करे –Email : [email protected] , [email protected] whatsapp : 9451304748 * निःशुल्क ज्वाइनिंग शुरू * १- आपको मिलेगा खबरों को तुरंत लाइव करने के लिए user id /password * २- आपकी बेस्ट रिपोर्ट पर मिलेगी प्रोत्साहन धनराशि * ३- आपकी रिपोर्ट पर दर्शक हिट्स के अनुसार भी मिलेगी प्रोत्साहन धनराशि * ४- आपकी रिपोर्ट पर होगा आपका फोटो और नाम *५- विज्ञापन पर मिलेगा 50 प्रतिशत प्रोत्साहन धनराशि *जल्द ही आपकी टेलीविजन स्क्रीन पर होंगी हमारी टीम की “स्पेशल रिपोर्ट”

Sunday, April 27, 2025 2:57:45 AM

वीडियो देखें

श्रद्धालुओं की आस्था का राजनैतिक दोहन : राम तेरी गंगा मैली हो गई, पापियों के पाप ढोते-ढोते

श्रद्धालुओं की आस्था का राजनैतिक दोहन : राम तेरी गंगा मैली हो गई, पापियों के पाप ढोते-ढोते

रिपोर्ट : संजय पराते

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि गंगा की जिस पवित्रता का वर्णन हमारे धार्मिक ग्रंथों में किया गया है, महाकुंभ की गंगा अब पवित्र नहीं रह गई है। बोर्ड की रिपोर्ट में बताया गया है कि संगम घाट पर मल से उत्पन्न कोलीफॉर्म की मात्रा प्रति 100 मिलीलीटर पानी में 12,500 मिलियन और शास्त्री पुल पर वह प्रति 100 मिलीलीटर पानी में 10,150 है, जो निर्धारित मात्रा 2000 मिलियन से 5-6 गुना ज्यादा है। जिस पानी के पीने योग्य होने का दावा मोदी योगी की सरकार कर रही है, वह पीने तो क्या, नहाने योग्य भी नहीं है। बोर्ड की इस रिपोर्ट पर नेशनल ग्रीन टिब्यूनल ने भी अपनी मुहर लगा दी है और ये दोनों एजेंसियां सरकारी एजेंसियां ही हैं। जब भी कुंभ की व्यवस्था और प्रबंधन पर सवाल उठे हैं, सरकार ने ऐसे सवाल उठने वालों को हिंदुत्व विरोधी, सनातन विरोधी, धार्मिक आस्थाओं पर हमला करने वाले … और न जाने क्या क्या कहा है! अब मोदी-योगी सरकार को यह बताना चाहिए कि ये दोनों सरकारी निकाय क्या हिंदुत्व विरोधी और सनातन विरोधी हैं?

इस महाकुंभ के आयोजन पर घोषित रूप से 7,300 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। अघोषित रूप से भी लगभग इतनी है। तो यह सवाल पूछा ही जाना चाहिए कि क्या यह राशि इतनी कम है कि तीर्थ यात्रियों को नहाने और पीने के लिए स्वच्छ पानी भी उपलब्ध नहीं कराया जा सकता है? उल्लेखनीय है कि हमारे विज्ञान और तकनीक केन्द्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह ने यह दावा किया था कि ‘पानी की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए’ भारत के नाभिकीय अनुसंधान केन्द्रों द्वारा प्रयोग में लायी जा रही तकनीक का भी यहां इस्तेमाल करते हुए फिल्टरेशन प्लांट लगाए हैं। तो फिर ये तकनीक और प्लांट कहां गायब हो गए और लोगों को मल-प्रदूषित पानी में डुबकियां लगाकर पुण्य क्यों कमाना पड़ रहा है?

यह भी नहीं भूलना चाहिए कि वर्ष 2014 से मोदी सरकार द्वारा शुरू की गयी नमामि गंगे परियोजना में, विगत एक दशक में हजारों करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। गंगा शुद्धिकरण का काम भी कॉरपोरेट घरानों को ही सौंपा गया है, जिसके बारे में भाजपा-आरएसएस का सामान्य दृष्टिकोण यही है कि सरकारी क्षेत्र से निजी क्षेत्र कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से काम करते हैं और संभव हो, तो सरकार चलाने का ठेका भी सीधे इन्हीं लोगों को सौंप दिया जाना चाहिए, (वैसे अप्रत्यक्ष रूप से अभी भी सरकार ठेके पर ही चल रही है!)। तब दस सालों में भी गंगा साफ क्यों नहीं हो पाई और परियोजना की हजारों करोड़ की राशि कहां गायब हो गई?

सरकार का यह दावा अतिशयोक्तिपूर्ण है कि महाकुंभ में 35 करोड़ लोग पहुंचे हैं। लेकिन इतना तो सही है कि इस कुंभ का भी जिस प्रकार नफरत फैलाने और ध्रुवीकरण करने की राजनीति के लिए उपयोग किया गया है, यदि सरकारी दावे के आधा, 15 करोड़ भी इस कुंभ में पहुंचे हों, तो सरकारी खर्च प्रति व्यक्ति औसतन 500 रूपये बैठता है और किसी भी तीर्थ यात्री को स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने के लिए यह राशि कम नहीं होती। कहीं ऐसा तो नहीं कि महाकुंभ में 50 करोड़ तीर्थयात्रियों के पहुंचने का दावा, जिसकी किसी भी तरह से पुष्टि नहीं होती, इस भारी भरकम आबंटन में सेंधमारी करने की सुनियोजित साजिश है?

ऐसा नहीं है कि गंगा के इस भीषण प्रदूषण की जानकारी राजनेताओं, सरकार और उसके अधिकारियों की नहीं थी। यदि ऐसा होता, तो प्रधानमंत्री एक साधारण तीर्थ यात्री की तरह डुबकी लगाते नजर आते, न कि विशेष सूट-बूट पहनकर। डुबकी लगाने में उनकी कायरता टीवी चैनलों पर साफ दिख रही थी कि सिर पानी में ही नहीं डूब रहा था! लेकिन सवाल दिल्ली और यूपी के चुनावों को अपनी डुबकी से प्रभावित करने का था, सो उन्होंने किया। प्रधानमंत्री की इस अर्थपूर्ण डुबकी का राष्ट्रपति सहित भाजपा-संघ के अन्य नेताओं ने भी इसी तरह अनुसरण किया। आम जनता की धार्मिक आस्थाओं का राजनैतिक दोहन करने के लिए संघ-भाजपा ने उन्हें “नरक के कुंभ” में भी डुबाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, क्योंकि श्रद्धालुओं की हर डुबकी से उनके पेट में कोलीफॉर्म (वास्तव में मल) के कुछ कीटाणु उनके पेट में जा रहे हैं, वरना इस वैज्ञानिक युग में पीने और नहाने के लिए स्वच्छ पानी की व्यवस्था करना कोई मुश्किल काम नहीं है। आखिरकार, किसी भी मेले में स्वच्छता का प्रबंध करना सरकार का प्राथमिक दायित्व होता है, जिसे पूरा करने में मोदी की केंद्र सरकार और योगी की राज्य सरकार, दोनों विफल रही है।

अपनी इस विफलता को छिपाने के लिए वह दो काम कर रही है। पहला, संघ-भाजपा का आईटी सेल इस अवैज्ञानिक तर्क का प्रचार कर रहा है कि गंगा के पानी में अपने-आपको शुद्ध करने की क्षमता है। यदि ऐसा ही है, तो फिर नमामि गंगे परियोजना पर ही प्रश्नचिन्ह लग जाता है। दूसरा, किसी अंजान विशेषज्ञ, जिसकी विद्वत्ता के बारे में किसी को कुछ नहीं मालूम, के अनुसंधान के हवाले से गंगा के पानी के कीटाणु रहित और शुद्ध होने का सर्टिफिकेट बांटा जा रहा है और अपनी ही सरकारी संस्था केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट पर प्रश्नचिन्ह लगाया जा रहा है।

क्या मोदी-योगी की सरकार ने आम जनता की धार्मिक आस्थाओं के साथ खिलवाड़ करने के साथ ही केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और नेशनल ग्रीन टिब्यूनल जैसी विशेषज्ञ संस्थाओं के खिलाफ भी युद्ध छेड़ने का फैसला कर लिया है?

लेखक अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं।

व्हाट्सएप पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *