पीलीभीत। इसे एक पिता का दुर्भाग्य ही कहेंगे। पिता अपने बड़े बेटे के साथ कोरोना के लॉकडाउन में फंस गया। इस बीच उसके छोटे बेटे की बिहार में मौत हो गई। जैसे ही पिता को बेटे की मौत की सूचना मिली तो वह शेल्टर होम में दहाड़ें मारकर रोने लगा। पिता को सबसे बड़ा दुख इस बात का है कि वह अपने बेटे का आखिरी बार चेहरा भी नहीं देख पाएगा। परिवार के साथ उसके अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो पाएंगे। बिहार के जिला मधुवनी के गांव बहरा का रहने वाला सनी अपने दो बेटों के साथ अलीगढ़ में मजदूरी करने गए थे। छोटे पुत्र रामदेव की हालत खराब होने पर उसे लॉकडाउन से पहले ही घर भेज दिया। दूसरा बेटा ब्रह्देव उनके साथ है। लॉकडाउन के बाद जब जो जहां था, उसे वहीं रोक दिया गया तो सनी अलीगढ़ से बिहार को पैदल ही रवाना हो गए। रास्ता भटकते हुए वह पूरनपुर पहुंच गए, वहां असम हाईवे पर उन्हें पकड़ लिया गया। इसके बाद उन्हें बेटे ब्रह्मदेव के साथ पूरनपुर के लकी चिल्ड्रेन स्कूल में बने शेल्टर होम में क्वारंटीन कर दिया गया।
उधर लॉकडाउन से कुछ दिन पहले ही बीमार चल रहे छोटे बेटे रामदेव को फैक्ट्री मालिक घर भेज दिया था। बाद में उसी फैक्ट्री में लॉकडाउन के कारण ताले लगने पर बिहार के 16 लोग अलीगढ़ से पैदल ही रवाना हुए तो उसमें सनी बेटेेे ब्रह्मदेव के साथ शामिल हो गए। ये लोग जब असम हाईवे से पैदल जा रहे थे कि पूरनपुर में पुलिस ने सबको पकड़ने के बाद डीसीएम में भरकर अस्पताल भेज दिया। वहां उनकी स्वास्थ्य जांच हुई। सब कुछ ठीक होने के बाद भी सभी को शेल्टर होम पहुंचा दिया गया। शुक्रवार को सनी के बीमार बेटे रामदेव का निधन हो गया। इसकी सूचना उसके मोबाइल पर परिवार वालों से मिली तो वह शेल्टर होम में ही रोने लगे। उनका दुख यह था कि लॉकडाउन में फंसे होने ने पर वह अपने पुत्र रामदेव को आखिरी विदाई भी नहीं दे पाएंगे। उनका दर्द देखकर शेल्टर होम में रहने वाले बाकी लोगों को भी मन द्रवित हो गया।
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