Breaking News

आवश्यकता है “बेखौफ खबर” हिन्दी वेब न्यूज़ चैनल को रिपोटर्स और विज्ञापन प्रतिनिधियों की इच्छुक व्यक्ति जुड़ने के लिए सम्पर्क करे –Email : [email protected] , [email protected] whatsapp : 9451304748 * निःशुल्क ज्वाइनिंग शुरू * १- आपको मिलेगा खबरों को तुरंत लाइव करने के लिए user id /password * २- आपकी बेस्ट रिपोर्ट पर मिलेगी प्रोत्साहन धनराशि * ३- आपकी रिपोर्ट पर दर्शक हिट्स के अनुसार भी मिलेगी प्रोत्साहन धनराशि * ४- आपकी रिपोर्ट पर होगा आपका फोटो और नाम *५- विज्ञापन पर मिलेगा 50 प्रतिशत प्रोत्साहन धनराशि *जल्द ही आपकी टेलीविजन स्क्रीन पर होंगी हमारी टीम की “स्पेशल रिपोर्ट”

Saturday, April 26, 2025 10:14:55 AM

वीडियो देखें

सिद्धार्थनगर। सर्वेश शुक्ल प्रकरण बिखरते रिश्तों के बचे आखरी दाने को बटोरता एक मासूम…

सिद्धार्थनगर। सर्वेश शुक्ल प्रकरण बिखरते रिश्तों के बचे आखरी दाने को बटोरता एक मासूम…
/ / से बेखौफ खबर के लिए स्वतंत्र पत्रकार विकास शुक्ल की रिपोर्ट

सिद्धार्थनगर। उसकी मासूम आँखे आज बार-बार बादलों की ओर देखे जा रही थी। उसके सीने के अंदर गुबार उठ-उठ कर शांत होता जा रहा था।
वह अनाथ महज़ 17 साल का एक मासूम बच्चा है। जिसके चेहरे पर बेचैनी उस माँ की तरह साफ़ झलक रही है जो अपने छोटे बच्चे को अकेला छोड़ कर दिहाड़ी मजदूरी करने चली आयी है।
उसको बार-बार इस बात का डर सता रहा है कि अगर बारिश हो गयी तो उसका विकलांग बड़ा भाई कैसे किसी छत का सहारा ले सकेगा,क्यों कि उसके पास घर के नाम पर सिर्फ चार दीवार है जो अपने हाथों को खड़ा कर के इंतजार कर रहें है किसी चमत्कार का,जो उस पर एक छत का इंतजाम कर दे।
चमत्कार इस लिए कह रहा हूं क्यों कि उस छत को लगाने में अभी उसके मासूम हाथों में वो दम नहीं आया है,पर वह अभी हारा नहीं है।

अपने माथे के पसीने को मटमैले हो चुके शर्ट के आस्तीन में पोछते हुए वह अपने जेब को टटोलता है, उसमें महज़ चंद सिक्के उसको खनकते हुये सुनाई पड़ते है।
उसकी आवाज सुन कर उसकी धमनियों में रक्त तेजी से दौड़ने लगतें है,क्यों कि वह चंद सिक्के उसकी जरूरत के हिसाब से उसी तरह लगतें हैं जैसे किसी अथाह प्यासे को बस एक बूंद पानी ही मिला हो। उसके कोमल हाथ जो अभी किताबों को पकड़ने के लिए बनें हुए थे इसी उम्र में काम करने को मजबूर हैं। ।
आग उगलती दुपहरी हो,या कड़कती ठंड,वह अपनी और अपने विकलांग भाई के जद्दोजहद भरी जिंदगी से लड़ने के लिए कभी किसी स्कूल कभी किसी दूकान पर काम करने निकले जाता था। लेकिन भाई की बिमारी ने वह भी छुड़ा दिया।

बचपन में हम सब ने श्रवण कुमार की कहानी पढ़ी होंगी और पढ़ते हुए सब ने प्रण लिया होगा कि एक दिन हम सब भी उसी आदर्शों पर चल कर समाज में एक कीर्तिमान स्थापित करेंगे। अब उनके आदर्शों पर कितने लोगों ने चल कर कीर्तिमान स्थापित किया,यह बात की बात है
वह मात्र एक कहानी था या सच, यह भी बात की बात है।
पर ऊपर लिखी गईं सारी बातें कीसी फ़िल्म या कहानीं का अंश नहीं है,यह एक जीता जागता बदसूरत हक़ीक़त हैं। जो मात्र तीन घण्टे में खत्म नहीं होगा,वह चल रहा है पिछले 17 सालों से और न जानें कितने साल और ऐसे ही चलता रहेगा।
यह कहानीं है उस बच्चें की जिसका नाम सर्वेश शुक्ल है जो उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थ नगर जिले के खेसरहा विकास खण्ड देवगह गाँव का रहनें वाला है। जिसकी 'खुशी' जाने किस काल के गाल में समा कर बैठा हुआ है। महज़ 1 साल के उम्र से ही पिता का कोई पता नहीं चल रहा है। माँ ने किसी तरह पाल पोस कर जिंदगी की रफ्तार पकड़ाने की कोशिश में ही थी कि दो साल पहले ही बेचारी ने बीच रास्तें मे अपना हाथ छुड़ा लिया। और जाते-जाते दे दिया मानसिक और शारीरिक रूप से विकलांग बड़े भाई की जिम्म्मेदारी। बड़े भाई चंद्रशेखर शुक्ल उर्फ टिंकू की ज़िम्मेदारी अपने कोमल हाथों पर अपने मजबूत इरादों के साथ वह बखूबी निभा ही रहा था,कि फिर से उसके मनहूस वक्त ने एक और चुनौती उसके सामने ला कर रख दिया। अभी हाल ही में उसे पता चला है कि उसके भाई का किडनी फेल हो गया है।

वह हारा नहीं है,वह दौड़ रहा है, उस वक्त को बदलनें के लिए जो उसके सामने बुरे ख्वाब परोसे जा रहा है।

जहां एक ओर सरकारे विकास को भारत के आखिर व्यक्ति तक पहुँचनें की बातें करतीं हैं,वहीं उस आखिर व्यक्ति के अस्तित्व पर सवाल खड़ा होता है। आखिरी वह आखिरी व्यक्ति कौन है?,उस आखिरी व्यक्ति का पैमाना क्या होना चाहिए?
प्रधनमंत्री सहायता कोष,तमाम तरह की योजनाएं कहाँ है?,और किसको मिल रहे है?
चुनाव के दौरान धूल,मिट्टी को भी फाँकने वाले हमारे जन प्रतिनिध कहाँ है? जो इस तरह के लोगों का हाथ थाम सके।
आख़िर इस तरह के लोग लाभों से वंचित क्यों रह जाते है?
इसका जवाब कौन देगा,यह एक बड़ा सवाल है.।

व्हाट्सएप पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *