सिद्धार्थनगर। सनातन धर्म में गंगा दशहरा का महत्व धार्मिक परंपराओं और मान्यताओं वाले त्योहार के रूप में है। प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा मनाने की परंपरा चली आ रही है। इस साल यह तिथि 12 जून दिन बुधवार को पड़ रही है। मान्यता है कि गंगा दशहरा के दिन ही मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था और तभी से मां गंगा को पूजने की परंपरा शुरू हो गई। पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि भगीरथ ऋषि ने अपने पूर्वजों की मोक्ष प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या की थी और उसके बाद अपने अथक प्रयासों के बल पर मां गंगा को धरती पर लाने में सफल हुए थे। लेकिन मां गंगा का वेग इतना अधिक था कि अगर वह सीधे धरती पर आतीं तो पाताल में ही चलीं जातीं। भक्तों के विनती करने पर भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में भर लिया और उसके बाद मां गंगा कैलाश से होते हुए धरती पर पहुंची और भगीरथ के पूर्वजों का उद्धार किया। यह भी मान्यता है कि इस दिन गंगा में स्नान करने और दान करने से सभी पाप धुल जाते हैं और मुक्ति मिलती है।
गंगा दशहरे के दिन सुबह सूर्योदय से पहले जगना चाहिए और फिर हो सके तो निकट के गंगा तट पर जाकर स्नान करना चाहिए। अगर आप गंगा नदी में स्नान करने में असमर्थ हैं तो अपने शहर की ही किसी नदी में स्नान कर सकते हैं। यदि यह भी संभव न हो सके तो घर में नहाने के जल में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर स्नान कर लें।
गंगा दशहरा पर स्नान के दौरान ‘ऊँ नम: शिवाय नारायण्यै दशहराय गंगाय नम:’ मंत्र का जप करना चाहिए। इसके बाद ‘ ऊँ नमो भगवते एं ह्रीं श्रीं हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय स्वाहा’ मंत्र का भी जप करें और जप करते हुए 10 फूल अर्पित करें। पूजा में जिस भी सामग्री का प्रयोग वह संख्या में 10 होनी चाहिए। जैसे 10 दीये, 10 तरह के फूल, 10 दस तरह के फल आदि।
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