देश में हर राजनीतिक दल खुद को किसानों का हितैषी बताने में कोई कसर नहीं छोड़ता. किसानों के कर्ज माफ़ी जैसे फैसलों को चुनावों में भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती. लेकिन ज़मीनी स्तर पर किसानों की क्या हालत है, ये किसी को जानना है तो महाराष्ट्र में सूखे की चपेट में आए पुणे ज़िले की 7 तहसीलों (तालुका) में आकर देखे. यहां करीब 100 गांव के लोगों को पानी की बूंद बूंद के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है. कुएं सूखे पड़े हैं. ज़मीन की 300 फीट गहराई तक पर भी पानी नहीं है. यहां पिछले छह महीने से ही हालात बदतर हैं. टैंकरों से पानी यहां पहुंचाया जा रहा है.
पानी के संकट को इसी से समझा जा सकता है कि पशुओं को किसान गंदा पानी पिलाने को मजबूर हैं. इंसानों के नहाने के बाद गंदे पानी को ही इकट्ठा कर पशुओं को पिलाया जा रहा है. महाराष्ट्र के विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्रों में हर साल ही सूखे की मार के समाचार आते रहते हैं. लेकिन इस बार सूखे ने राज्य के पश्चिमी हिस्से को भी चपेट में ले लिया है. पुणे की सूखाग्रस्त 7 तहसीलों में जहां तक नज़र जाती है, बुरा हाल नज़र आता है. सूखी फ़सलें, सूखे कुएं, बेकार हैंडपम्प, ज़मीन में दरारें. किसानों को बस एक ही इंतज़ार कि कब टैंकर आए और उन्हें कुछ पानी मिले.
बीते 5 साल में ये पहली बार हुआ है कि पुणे के इन 100 गावों को अकाल का सामना करना पड़ रहा है. पिछले पांच सालो में ये पहली बार हुआ है के पुणे जिले के सात तालुका में 100 ऐसे गांव है जहां अकाल पड़ा हुआ है. पुणे के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट नवल किशोर राम ने भी पानी के संकट को गंभीर माना है. पुणे शहर से 80 किलोमीटर दूर मड़गुड़वाड़ी गांव में आजतक/इंडिया टुडे ने पहुंच कर ज़मीनी स्थिति का जायज़ा लिया. यहां प्रशासन की ओर से भेजे पानी के टैंकर के पास लोगों के जमावड़े को देखकर ही समझा जा सकता है कि पानी की समस्या कितनी विकट है.
महिला ने पहले पानी से बच्चे को नहलाया और फिर उसी पानी को जानवर को पिलाया (ये फोटो हमारे संवाददाता पंकज खेलकर ने एक महीने पहले क्लिक की थी)
गाँव के सरपंच गणेश मिड्गुले के मुताबिक इस बार का अकाल 1972 से भी बड़ा हो सकता है. मिडगुले ने बताया कि तब जमीन में थोड़ा पानी बचा था लेकिन इस साल दोनों मौसम में बारिश नहीं हुई. सरपंच ने बताया के पहले साल के पांच महीनों में ही टैंकर की ज़रूरत होती थी लेकिन इस साल 8 महीने टैंकर की आवश्यकता पड़ने वाली है. बारिश की एक बून्द पानी नहीं पड़ने से लोगों को खेती से हटना पड़ा है. उन्हें सुबह ही 30-40 किलोमीटर दूर जाकर मेहनत-मशक्कत करनी पड़ रही है. जिससे कुछ पैसा कमाया जा सके और घरवालों का पेट भरने के लिए अनाज लाया जा सके.
गांव की एक महिला ने बताया कि पानी को बचाने के लिए वो इसका कम से कम इस्तेमाल कर रहे हैं. यहां तक कि लोग पानी भी बहुत कम पी रहे हैं. इस वजह से यूरिनरी ट्रैक इंफेक्शन, पथरी और कब्ज़ जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं. गांव के एक बुजुर्ग के मुताबिक हर परिवार को दो दिन में एक बैरल पानी मिलता है. बुजुर्ग ने बताया कि उनके खेत में 40 पशु हैं और उन्हें इन बेजुबान जानवरो के लिए हर दो दिन बाद जेब से डेढ़ हजार रुपए खर्च कर पानी का टैंकर बुलाना पड़ रहा है. ये सिलसिला पिछले कई महीनों से बदस्तूर जारी है.
मड़गुड़वाड़ी के एक सामाजिक कार्यकर्ता के मुताबिक़ डिम्बे बांध से एक नहर निकलती है. पहले ये नदी मड़गुड़वाड़ी गांव के पास से गुजरती थी. लेकिन नहर का निर्माण गांव से दूर किया गया. इसे पास किया गया होता तो गांव में भरपूर पानी होता. शिऊर तहसील के एक प्रशासनिक अधिकारी के मुताबिक गांव वालों की मांग पर उन्हें टैंकर से नियमित पानी उपलब्ध कराया जा रहा है. अधिकारी के मुताबिक अगर नहर को गांव के पास लाने का प्रस्ताव आता है तो उसे सरकार के पास भेजा जाएगा. अधिकारी ने माना कि अगर ऐसा कदम उठाया जाता है तो इससे इलाके के 15 गांवों की पानी की समस्या सुलझ सकती है.
पुणे के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट नवल किशोर राम ने बताया कि जिले की 14 में से 7 तहसीलों को अकाल का सामना करना पड़ रहा है. राम ने माना कि कम बारिश की वजह से फसल 33 % से 50 % तक बर्बाद हो गई. कुएं सूख गए हैं और पानी 300 फुट से ज्यादा नीचे चला गया है. जुलाई महीने से ही टैंकर से पानी पहुंचाया जा रहा है.
डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने बताया, “पहली बार हुआ है कि पुणे जिले के करीब 100 गांवों को पीने के पानी की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है. प्रशासन की ओर से टैंकर से पानी पहुंचाने के लिए पर्याप्त इंतज़ाम किए गए हैं. अप्रैल-जून में संकट और गहराएगा क्योंकि तब सूखे का प्रकोप बढ़ेगा.” सूखे की दस्तक इस बार नए साल की शुरुआत के साथ ही होने पर प्रशासन ने जानवरों के लिए चारे का इंतजाम भी जनवरी के आखिर तक के लिए किया हुआ है.
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