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Sunday, June 29, 2025 5:37:21 PM

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श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है नेपालगंज का मां वागेश्वरी मंदिर,नवरात्रि में बड़ी संख्या में आते हैं भारतीय क्षेत्र से श्रद्वालु

श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है नेपालगंज का मां वागेश्वरी मंदिर,नवरात्रि में बड़ी संख्या में आते हैं भारतीय क्षेत्र से श्रद्वालु
_____________ से स्वतंत्र पत्रकार _____________ की रिपोर्ट

रिपोर्ट : वसीम अहमद

रुपईडीहा बहराइच। भारत नेपाल सीमा से मात्र 7 किलोमीटर दूर स्थित नेपाल के बांके जिले के‌ नेपालगंज में स्थित प्रसिद्ध मां वागेश्वरी मंदिर भारत व नेपाल दोनों देशों के लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। यहां मां वागेश्वरी के दर्शनार्थ के लिए भारतीय क्षेत्रों भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मां वागेश्वरी मंदिर भारत नेपाल के हिंदुओ का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बन चुका है। हिंदुओ के अलावा बुद्धिष्ठ व सिख समुदाय के लोग भी मंदिर में श्रद्धा पूर्वक माथा टेकते हैं। ईसाई व मुस्लिम भी मंदिर के भीतर न जाकर बाहर से फल फूल व प्रसाद अंदर भेजते रहते हैं। इस मंदिर में शारदीय व चैत्र नवरात्रों में नव दिन तक मेले जैसा माहौल रहता है। दर्शनार्थी प्रसाद चढ़ाने के लिए लंबी लाइन लगाकर प्रतीक्षा करते देखे जाते हैं।

इस वागेश्वरी मंदिर के स्थापना के संबंध में कई जनश्रुतियां नेपाली साहित्य में बिखरी पड़ी हैं। कुछ लोग नेपाल के रोल्पा जिले से इस मंदिर का संबंध जोड़ते हैं। सूत्र बताते हैं कि रोल्पा निवासी कुमाई विष्ट को नौ मूर्तियां मिली। लोगो के देखते ही ये पुतलियों के रूप में परिवर्तित हो गयी। यह घटना विक्रमी संवत 1411 की है।पहली पुतली नेपाली जिला बाजुरा में गढ़ीमलिका भगवती के रूप में, दूसरी जुम्ला में कनक सुंदरी, तीसरी जाजरकोट, चौथी सल्यान के खैराबांग में भुवनेश्वरी, पांचवी अर्घाखाँची व छठी, नेपालगंज में वागेश्वरी नाम से पूजित हुई। शेष तीन देवियां बाल, त्रिपुरा व सुंदरी डोल्पा में स्थापित हुईं।

रुपईडीहा कस्बे के भवानी भक्त डॉ सनत कुमार शर्मा कई वर्षो से व्रत रखकर सुबह शाम माता वागेश्वरी के दरबार मे जाते हैं। अटूट श्रद्धा रखने वाले डॉ शर्मा मां वागेश्वरी की महिमा का गुणगान करते हुए बताते हैं कि इस समय जहां मां वागेश्वरी का स्थान है यह स्थान पूर्व में बहुत बड़ा वीरान जंगल था और यहां एक छोटा सा मंदिर था यहां एक शेर रहता था। उन्होंने बताया कि दुर्गासप्तशती देवी कवच के 33वे श्लोक-रोम कूपेषु कौबेरी त्वचंवागेश्वरी तथा, के अनुसार-वाक् अर्थात वाणी ईश्वरी संधि करने पर वागेश्वरी शब्द बनता है। यही माता सरस्वती के रूप में पूजित है। उन्होंने कहा कि मां वागेश्वरी मंदिर का बहुत पुराना इतिहास है। जितना भी इनकी महिमा बताई जाय वह कम है।

मां वागेश्वरी के ऐतिहासिक जनश्रुति के अनुसार चौदहवी शताब्दी में जुम्ला जिले से गुरु शिष्य भारतीय तीर्थो के दर्शनार्थ रात में इस स्थान पर रुके थे। गुरु जी को रात में माता ने दर्शन देकर यहीं मंदिर बनवाने के आदेश दिया। गुरु शिष्य मिट्टी खोदकर कर दिनभर मंदिर बनाते रात में गिर जाता। सांतवे दिन मां के आदेश से गुरु जी ने यहां जीवित समाधि ले ली थी। गुरु के आदेशानुसार शिष्य ने इन्हें पाट दिया था। उन्ही चेला गुरु की परंपरा के 24वी पीढ़ी के महंत हरिहर नाथ गिरी व चंद्रनाथ गिरी कनफटे महंत वर्तमान में मां की सेवा कर रहे हैं।

मां वागेश्वरी मंदिर नेपाली पैगोडा शैली में निर्मित है। नेपाल के बांके, बर्दिया, कंचनपुर व कैलाली जिले भारतीय भू भाग था। तत्कालीन ब्रिटिश शासकों का युद्ध मे नेपाली राणा शासकों ने साथ दिया था। उपहार स्वरूप ये जिले आज नेपाली भूभाग हैं। बुजुर्ग नेपाली आज भी इस क्षेत्र को नया मुलुक भी कहते हैं। इसके पूर्व ये क्षेत्र बलरामपुर स्टेट की जागीर था। सन 1267 में तत्कालीन बलरामपुर स्टेट के महाराज दिग्विजय सिंह दर्शनार्थ यहां आए थे। उन्होंने यहां बास, लकड़ी व खर पतवार व मिट्टी से बने मंदिर को सुर्खी चुना से पक्का बनवा दिया था। धीरे धीरे इसका विकास होता गया। यही नही उन्होंने नेपाल के बांके जिले के करमोहना गांव में मूर्ति की पूजा के लिए भूमि भी दान कर दी थी। बांके जिले के नेपालगंज स्थित भू लेख विभाग में यह राजपत्र 2025/03/19/3 पत्र संख्या2/32/79/1678परिपत्र अनुसार 99-05-14 मूलरूप में मौजूद है। इसे देखा गया तो इस भू लेख पर सन 1267 भद्रसुदी पंचमी अंकित है। यहां अहर्निश ज्योति जलती है। बुझने पर देवी पाटन से ज्योति लायी जाती है।

आस्था की पराकाष्ठा यह है कि यहां पंच बलि के साथ मनौती पूरी होने पर भक्ति अपनी जीभ छेद कर मंदिर की परिक्रमा करते देखे जाते हैं। दशकों से दोनो नवरात्रों में व्रत रखकर रुपईडीहा से मंदिर जाने वाले देवी भक्त डॉ शर्मा कहते हैं कि भगवती त्वरित फल देने वाली व सारे मनोरथों को पूर्ण करने वाली है। रुपईडीहा कस्बे के रामकुमार वैश्य नंगे पैर 7 किलोमीटर दूर वर्षो से पैदल दर्शनार्थ सुबह जाया करते हैं। आस्था के अनुसार विवाह, मुंडन, यग्योपवीत, हवन आदि धार्मिक संस्कार कराने वाले लोग विशेष कर नवरात्रों में बहराइच, गोण्डा, बाराबंकी, लखनऊ, श्रावस्ती, लखीमपुर, सीतापुर व बलरामपुर आदि भारतीय जिलो तथा नेपाल के कई जिलों से श्रद्धालुओं मां वागेश्वरी के दर्शनार्थ व प्रसाद चढ़ा कर अपनी इच्छा पूरी करते हैं।

 

 

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