एक तरफ जहां पाँच राज्यों में चुनावी सरगर्मियां तेज़ हैं वहीं हम बात करने जा रहे हैं आज एक अन्य राज्य के लोकल चुनाव के बारे में. पिछले कुछ महीनों से आपने न्यूज़ में सबरीमाला मंदिर का नाम सुना होगा. सबरीमाला केरल में स्थित है और इस मंदिर को लेकर के सियासी पारा भी ख़ूब ऊपर रहा है. सबरीमाला में पिछले दिनों उपचुनाव हुआ था जिसके परिणाम आ गए हैं. यहाँ भाजपा ने उम्मीद लगाई थी कि वो मंदिर मुद्दा उठा कर वोट हासिल कर पाएगी परन्तु ऐसा कुछ भी होता नहीं दिखा है.एक बार फिर यहाँ माकपा ने बाज़ी मार ली है. इस निकाय उपचुनाव में भाजपा को एक बार फिर झटका लगा है. केरल में 39 निकाय सीटों के लिए उपचुनाव हुए थे. एक बार फिर एलडीएफ ने दिखाया है कि वो क्यूँ केरल की जनता के दिलों पर राज करती है. LDF ने यहाँ 21 सीटों पर जीत दर्ज की है. वहीं, कांग्रेस के यूडीएफ को 12 सीटें मिली है. लगातार प्रचार करने के बाद भी यहाँ भाजपा को महज़ २ सीटों पर सफलता प्राप्त हुई है. इस परिणाम को देखने बाद यह साफ हो गया कि जिस सबरीमला मामले पर भाजपा और कांग्रेस ने जमकर राजनीति की, उससे उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ.स्टूडेंट्स डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया (एसडीपीआई ) को दो सीटों पर जीत मिली। जबकि बाक़ी तीन सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार विजयी रहे हैं। सबसे ज़्यादा नज़रें यहाँ पथनमथीट्टा सीट पर थी। यही वह जगह है जहाँ साबरीमाला मंदिर स्थित है। यहाँ से बीजेपी प्रत्याशी के जीतने की उम्मीद जताई जा रही थी। लेकिन यहाँ भी उसे हार का सामना करना पड़ा है। सबसे हैरान करने वाली ख़बर पांडलम कदक्कण से आयी है। यहाँ बीजेपी प्रत्याशी को सिर्फ 12 वोट मिले हैं। जबकि यह साबरीमाला मंदिर विवाद के बाद हिन्दू संगठनों के विरोध का केंद्र रहा है। यहाँ से एसडीपीआई को सफलता मिली है। जानकारों के मुताबिक़ सीपीएम अभी भी जनता की नब्ज़ से वाकिफ है और जानती है कि जनता के हित के मुद्दे ही उसे कामयाबी दिलाएंगे. यही वजह है कि लोगों ने एक बार फिर उसे जीत दिलाई है. LDF को हराने के लिए भाजपा के अलावा कांग्रेस ने भी सबरीमाला मंदिर का मुद्दा उठाया था लेकिन उसे भी इसमें कोई ख़ास कामयाबी मिलती नहीं दिख रही है. लोकसभा चुनाव से पहले लेफ्ट पार्टी को केरल में ये कामयाबी मिलना बड़ा है.उल्लेखनीय है कि साबरीमाला विवाद के बाद यहाँ यह पहला चुनाव था। उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद साबरीमाला मंदिर मे हर आयु की महिलाओं को जाने की अनुमति मिल गयी थी। लेकिन उच्चतम न्यायालय के इस निर्णय का केरल मे भारी विरोध हुआ था। हिन्दू संगठन इस विरोध मे काफ़ी मुखर थे। वह चाहते थे उच्चतम न्यायालय अपने निर्णय को बदल दे। हिन्दू संगठनों के विरोध को देखते हुए ऐसा माना जा रहा था कि वोटों का ध्रुवीकरण हो जाएगा। जानकर मान रहे थे इसका सबसे ज़्यादा फ़ायदा बीजेपी को होगा। लेकिन चुनाव के नतीजे कुछ और ही कहानी बयान कर रहे हैं। सबरीमाला मंदिर पे आए निर्णय से नारज़ हिन्दुओं ने भी बीजेपी का साथ नहीं दिया। यह एक तरह से धार्मिक और संप्रदायिक मुद्दों की राजनीति की हार है।
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