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Friday, March 21, 2025 3:24:57 PM

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सामाजिक एवं शैक्षिक क्रांति के जनक महान दार्शनिक ज्योतिबा फुले को उनकी जयंती पर कोटिशः नमन एवं श्रद्धांजलि:शिक्षिका सोनिया

सामाजिक एवं शैक्षिक क्रांति के जनक महान दार्शनिक ज्योतिबा फुले को उनकी जयंती पर कोटिशः नमन एवं श्रद्धांजलि:शिक्षिका सोनिया
से बेखौफ खबर के लिए स्वतंत्र पत्रकार जगदम्बा जायसवाल की रिपोर्ट

राजकीय कन्या इंटर कॉलेज खलीलाबाद संतकबीरनगर की व्यायाम शिक्षिका सोनिया ने कहा
की सामाजिक एवं शैक्षिक क्रांति के जनक, महान दार्शनिक ज्योतिबा फुले को उनकी जयंती पर कोटिशः नमन एवं श्रद्धांजलि

महिला शिक्षा के अग्रदूत ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल, 1827 को पुणे, महाराष्ट्र में एक माली परिवार में हुआ था. इनके परिवार को पेशवा राजाओं का आशीर्वाद मिला हुआ था क्योंकि इनका परिवार राजदरबार में फूल देता था. उनका पूरा नाम ज्योतिराव गोविंदराव फुले था। ज्योतिबा फुले समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक और क्रांतिकारी के रुप में जाने जाते हैं।
महात्मा ज्योतिबा फुले ने जाति भेद, वर्ण भेद, लिंग भेद, ऊंच नीच के खिलाफ बड़ी लड़ाई लड़ी। यही नहीं उन्होंने न्याय व समानता के मूल्यों पर आधारित समाज की परिकल्पना प्रस्तुत की। वे महिला शिक्षा की खूब वकालत करते थे।

1840 में जब इनका विवाह सावित्रीबाई फुले से हुआ तो, उन्होंने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले को पढऩे के लिए प्रेरित किया। सावित्रीबाई फुले आगे चलकर देश की पहली प्रशिक्षित महिला अध्यापिका बन कर महात्मा ज्योतिबाफुले के जीवन के उद्देश्यों को पूरा करने की पुरजोर कोशिश की।
सन 1852 में उन्होंने तीन स्कूलों की स्थापना की, लेकिन 1858 में फंड की कमी एवं सामाजिक असहयोग के कारण ये बंद कर दिए गए।

ज्योतिबा फुले ने सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करते हुए शोषित बहुजनों में जागृति के लिए एक पुस्तक लिखी जिसका नाम था “गुलामगिरी.”
सत्यशोधक_समाज
24 सितंबर 1873 को फुले साहब ने एक सामाजिक संगठन बनाया जिसका नाम “सत्यशोधक समाज” था.
बाबासाहब का प्रेरणास्रोत
बाबा साहब के भी प्रेरणा स्रोत थे. बाबा साहब ने कहा था कि- “महात्मा फुले आधुनिक भारत के महानतम शुद्र थे जो अंग्रेजी तंत्र से भी अधिक सामाजिक लोकतंत्र को महत्व देते थे.”
#मृत्यु
28 नवंबर, 1890 को भारतीय समाज में अमर हो गए ।
डाक टिकट एवं महात्मा शब्द द्वारा सम्मानित किया गया।
भारत सरकार महात्मा फुले के सराहनीय एवं अनुकरणीय कार्यों को सम्मान देने के लिए 1977 में डाक टिकट निकाला.
1888, मुंबई में एक आम जनसभा द्वारा महात्मा की उपाधि से विभूषित हुए.

ऐसे महामानव को नमन के साथ श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं। ओर आप के पद चिन्हों पर चल कर समाज में अपना हर स्तर का योगदान देने की संकल्प लेती हूं

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