रिपोर्ट : सिराज अहमद खान
देश बदल रहा है और इस बदलते देश में पत्रकारों का अहम रोल माना जा रहा है । आज जब देश अपना 77वां स्वतंत्रता दिवस मना चूका है तब ये जानना और भी जरूरी हो जाता है कि इस बदलते देश में आख़िरकार पत्रकारों का क्या रोल है?
कहा जाता है कि देश के विकास की कहानी में पत्रकारिता का अहम रोल होता है क्यूंकि एक पत्रकार ही है जो देश के आम लोगों के दर्द को शब्दों की माला में पिरोकर जिम्मेदारों को जनता के दर्द का एहसास करता है साथ ही जनता के साथ शासन व प्रशासन को जोड़े रहता है लेकिन आज अगर किसी से ये पूछा जाए कि क्या पत्रकार अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है? तो शायद हममें से अधिकांश लोग यही कहेंगे कि नहीं ।
कारण यह है कि जैसे झोला छाप डाक्टर हुआ करते थे जो बिना पढ़े लिखे ही किसी डाक्टर के पास काम करके अपने गांव व मोहल्लों में सर्दी, जुखाम,सरदर्द ,बुखार आदि से पीड़ित लोगों से सहायता शुल्क लेकर उनका इलाज करके खुद को डॉक्टर कहलाते थे जिन्हे पत्रकारों ने नाम दिया था “झोला छाप डॉक्टर” ठीक उसी तरह आज के इस बदलते देश में पत्रकार व झोलाछाप पत्रकारों का अलग – अलग रोल है ।
पहले हम बात करते है पत्रकार की जो अपने लेख में देश के चौथे स्तंभ होने का हमेशा ही एहसास कराता है । कभी सत्ता में बैठे लोगों को संविधान का पाठ पढ़ा कर तो कभी प्रशासन के भ्रष्टाचारी कारनामों को उजागर करके ये साबित करता है उसका उद्देश्य बस आम लोगों की सहायता करना भर है।
वही दूसरी ओर अगर हम बात करें झोला छाप पत्रकारों की तो इसमें बिरयानी वाले से लेकर रिक्शा चालक तक और सोना बेचने वाले से लेकर दवाई बेचने वाले तक व स्मैक बेचने वाले से लेकर नेता तक भी खुद को पत्रकार कहते है। और इन्हे पैदा करने वाले मीडिया संसथान महज 1000 – 2000 रुपये लेकर इन्हे आईडी कार्ड दे देते है जिसे लेकर ये पुरे क्षेत्र में चौथे स्तंभ का मजाक बनाये हुए है।
इतना ही नहीं इन मीडिया संस्थानों ने एक-एक जिले में कोई एक या दो लोगों को नहीं बल्कि लगभग 70 से भी अधिक लोगों से पैसे लेकर कार्ड जारी किये हुए है जिसकी आड़ में कोई स्मैक बेच रहा है तो कोई बगैर टैक्स के सोना । इन झोलाछाप पत्रकारों का एक मात्र उद्देश्य होता है की स्वंय फायदा करना।
प्रशासन भी ऐसे झोलाछाप पत्रकारों के सपोर्ट में रहता है तभी तो उच्चाधिकारियों सहित दरोगा साहब के साथ स्मैक कारोबारियों की भी तस्वीरें सोशल मीडिया पर दिखाई देती है। जिसे देखकर अब आम लोगों का भरोसा भी मीडिया से दूर होता जा रहा है।
बात इतने पर ही ख़त्म हो जाती तो और बात थी क्यूंकि ये झोलाछाप पत्रकार भ्रस्टाचार को भी बढ़ावा दे रहे है कभी थानों में बैठकर खुलेआम घूंस की रकम तय करते है और पीड़ित की गर्दन पर पैर रखकर अवैध वसूली करते देखे जा रहे है। किन्तु इन दलालों की भीड़ को देख कर भी प्रशासन अनजान बना रहता है क्यूंकि घूंस की लेनदेन जब समाचार लिखने वाला खुद ही करता है तो खबर कौन लिखेगा ?
अब ऐसे में यदि कोई RTI कार्यकर्त्ता इन मीडिया संस्थानों से ये पूछे की एक जिले में 70 से भी अधिक रपोर्टरों की टीम ने कितनी खबर प्रकाशित की और कितने का विज्ञापन प्राप्त किया जिसका GST टैक्स जमा किया गया है तो शायद इन झोलाछाप पत्रकारों व इन्हे पैदा करने वाले मीडिया संसथान की हकीकत सामने आ जाये ।
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