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Thursday, April 24, 2025 12:26:24 AM

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हम इस सदी के सबसे कठिन दौर में जी रहे हैं: प्रो. चंडालिया 

हम इस सदी के सबसे कठिन दौर में जी रहे हैं: प्रो. चंडालिया 

संवैधानिक लोकतंत्र और तानाशाही के खतरे विषय पर आयोजित सेमिनार सम्पन्न

 

एक ध्रुवीय विश्व के इस काल में आज अमेरिका विश्व पर आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और सैन्य स्तर पर एक छत्र प्रभाव रखता है। 1991 के बाद तो अधिकांश लोकतान्त्रिक राष्ट्रों का चरित्र ही बदल गया है। उन्होंने नग्न पूंजीवाद को स्वीकार कर लिया है। इंसानियत के हर मोर्चे पर मौत और हिंसा का ताण्डव हो रहा है। तो वैश्विक स्तर पर हम इस सदी के सबसे कठिन दौर में जी रहे हैं।

यह बात केन्द्रीय विश्वविद्यालय हरियाणा के पूर्व कुलपति तथा जनार्दन राय नागर विश्वविद्यालय उदयपुर के प्रोफ़ेसर डॉ. हेमेन्द्र चंडालिया ने लाला लाजपत राय भवन में लोकतंत्र बचाओ आन्दोलन समिति द्वारा संवैधानिक लोकतंत्र और तानाशाही के खतरे विषय पर आयोजित सेमिनार में मुख्य वक्ता के तौर पर कही। उन्होंने कहा कि अमेरिका हथियारों का सबसे बड़ा उत्पादक देश है और भारत सबसे बड़ा आयातक देश है। इसलिये अंतरराष्ट्रीय राजनीति भी वर्तमान शासन को बरकरार रखना चाहती है। लोकतान्त्रिक देश बहुमत के आधार पर निरंकुश होना चाहते हैं। 400 पार की बात इसीलिए की जा रही है, ताकि मनमर्जी चलाने का उन्हें पूर्ण अधिकार मिल जाए‌। विपक्षी दल ईवीएम हैक की बात कर रहे हैं, पर वास्तव में लोगों के दिमाग ही हैक कर लिए गए हैं। देश को धर्म के नशे में झोंक दिया गया है। यह दिमाग का राजनीतिक हाईजैक है। मीडिया भी इस राजनीतिक अभियान का सहभागी बन चुका है।

आईटी इंजिनियर भी शोषित मजदूर बन गए हैं।

उन्होंने कहा कि बड़ी-बड़ी इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर कॉर्पोरेट जगत में काम करने वाले हमारे बच्चे भी शोषित मजदूर की तरह काम कर रहे हैं। उनके काम के घंटों की कोई सीमा नहीं है। 45 की उम्र तक आते आते तो वे अपने आप को बूढा समझने लगते हैं। उच्च शिक्षा में पीएचडी डिग्रीधारी छात्रों को घंटों के आधार पर काम दिया जा रहा है, जो बेहद शर्मनाक है। इधर लोकसभा के उम्मीदवारों की सूची यदि हम देखें तो उसमे अधिकांश करोड़पति हैं। तो प्रश्न उठता है कि वे कॉर्पोरेट हितों की रक्षा करेंगे या आमजन की?

स्वागत भाषण करते हुए किसान नेता दुलीचंद बोरदा ने कहा कि नोटबंदी और लॉकडाउन जैसे विनाशकारी निर्णय भी एक व्यक्ति द्वारा लिए गए‌। कॉर्पोरेट जगत में भी प्रतिस्पर्धा समाप्त कर दी गई है। केवल कुछ ही पूंजीपतियों की मोनोपोली है। इसलिए अपनी सेवाओं की कीमतें भी वे मनमर्जी से निर्धारित करते हैं। अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए अजय चतुर्वेदी ने कहा कि लोकतंत्र बचेगा तभी देश की सम्पदा और प्रकृति को नष्ट होने से बचाया जा सकेगा। लोकतंत्र बचाने की जिम्मेदारी चुनाव परिणाम के बाद भी जारी रहेगी। उन्होंने देश की जनता को शासक वर्ग की तानाशाही नीतियों के विरुद्ध एकजुट होकर जन आन्दोलनों की लहर चलाने का आह्वान किया। इससे पूर्व रुपेश चड्डा ने लोकतंत्र बचाओ समिति के उद्देश्यों और अब तक की गई गतिविधियों पर प्रकाश डाला।

 

हम कॉर्पोरेट तानाशाही के शिकार हैं

 

विषय प्रवर्तन करते हुए जनकवि तथा सामाजिक कार्यकर्त्ता महेंद्र नेह ने कहा कि हम कॉर्पोरेट तानाशाही के शिकार हैं। पहले हम चुप थे पर अब आवाज़ें उठने लगी हैं।

 

जनता अब बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है

 

धन्यवाद ज्ञापित करते हुए संयोजक यशवंत सिंह ने कहा कि अब जनता बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है। आमजन में वैचारिक क्रांति भी आवश्यक है। इसके लिए ऐसे आयोजन नियमित रूप से किया जाना ज़रूरी हो गया है। कार्यक्रम का संचालन प्रो. संजय चावला ने किया। सेमिनार में नगर के श्रमिक, कर्मचारी, शिक्षक, दलित, जनतंत्र प्रेमी प्रबुद्धजन और साहित्यकार बड़ी संख्या में उपस्थित हुए।

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