Breaking News

आवश्यकता है “बेखौफ खबर” हिन्दी वेब न्यूज़ चैनल को रिपोटर्स और विज्ञापन प्रतिनिधियों की इच्छुक व्यक्ति जुड़ने के लिए सम्पर्क करे –Email : [email protected] , [email protected] whatsapp : 9451304748 * निःशुल्क ज्वाइनिंग शुरू * १- आपको मिलेगा खबरों को तुरंत लाइव करने के लिए user id /password * २- आपकी बेस्ट रिपोर्ट पर मिलेगी प्रोत्साहन धनराशि * ३- आपकी रिपोर्ट पर दर्शक हिट्स के अनुसार भी मिलेगी प्रोत्साहन धनराशि * ४- आपकी रिपोर्ट पर होगा आपका फोटो और नाम *५- विज्ञापन पर मिलेगा 50 प्रतिशत प्रोत्साहन धनराशि *जल्द ही आपकी टेलीविजन स्क्रीन पर होंगी हमारी टीम की “स्पेशल रिपोर्ट”

Thursday, April 17, 2025 12:30:12 PM

वीडियो देखें

राजनैतिक व्यंग्य-समागम

राजनैतिक व्यंग्य-समागम

रिपोर्ट  : राजेंद्र शर्मा*

 

इन मोदी विरोधियों को तो बस मोदी जी कुछ भी करें, विरोध करने से मतलब है। अब मोदी जी सौग़ात दे रहे हैं और वह भी ईद की, तो इन्हें उनका सौग़ात देना भी नहीं पच रहा है। कह रहे हैं कि ये तो पाखंड है।

 

जो मोदी जी हर चुनाव के पहले मुसलमानों को कपड़ों से पहचनवाते हैं, उनकी वजह से हिंदुओं की बहन-बेटियों को खतरे में बताते हैं, उनके मंगलसूत्र तक के लिए खतरा दिखाते हैं और अपनी पार्टी के छोटे-बड़े नेताओं से पूरे साल मुसलमानों को गाली दिलवाते हैं, वही मोदी जी अब ईद पर मुसलमानों को सौग़ात भिजवा रहे हैं!

 

मीठी सिवइयां बनाने के लिए सूखी सिवइयों के साथ घी और शक्कर और मर्दों तथा औरतों के लिए नया कुर्ता-पायजामा/ कुर्ता-सलवार। त्योहार की मिठाई भी और त्योहार पर नये कपड़े भी। वाह मोदी जी वाह! पर यह तो आप को राज करते हुए, ग्यारहवीं ईद है। दस ईदें आयीं और गुजर गयीं, तब तो आप को ईद की सौग़ात देने की याद नहीं आयी। फिर ग्यारहवीं ईद पर ही ये सौग़ात क्यों?

 

पता नहीं, मोदी जी के राज की ये ग्यारहवीं ईद ही इतनी खास क्यों है? इस ईद में सौग़ाते मोदी है, तो इसी ईद पर आघाते मोदी भी है, बल्कि आघात पर आघात-ए मोदी।

 

होली के नाम पर मस्जिदों पर तिरपाल के आघात से मुसलमान उबरे भी नहीं थे कि फिल्म छावा के आघात ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। संभाजी पर औरंगजेब के अत्याचारों का बदला लेने के लिए, उसकी तीन सौ साल पुरानी कब्र खोदने की मांग को लेकर, नागपुर में सफलता के साथ दंगा होकर चुका भी नहीं था कि, ईद से पहले के जुमे की नमाज़ पर पाबंदियों का आघात-ए-योगी उर्फ डबल इंजन शुरू हो गया। एलान कर दिया गया कि सड़कों पर कोई नमाज़ नहीं पढ़ेगा। रोक लगाने के बाद भी अगर किसी ने सड़क पर नमाज़ पढ़ी, तो उसका पासपोर्ट जब्त कर लेंगे, उसका लाइसेंस जब्त कर लेंगे, वगैरह, वगैरह। फिर आर्डर आया कि अपने घर की छत पर भी कोई नमाज़ नहीं पढ़ेगा। छत पर नमाज पढ़ने वालों को पकड़ने के लिए पुलिस ड्रोन से निगरानी करेगी। फिर एक और डबल इंजन चालू हुआ और हरियाणा सरकार ने एलान कर दिया कि पिछली दस ईदों पर हुई तो हुई, इस ईद पर सरकारी छुट्टी नहीं होगी। इतने ताजा-ताजा आघातों के बाद, अब सौग़ाते मोदी का एलान आया है। बल्कि आघाते-हरियाणा तो ठीक उसी दिन आया था, जिस दिन एलान ए सौग़ात आया था। सौग़ाते मोदी भी और आघाते मोदी भी। सब का दाता एक है, सौग़ात भी और आघात भी।

 

आघात और सौग़ात, तीता और मीठा, एक साथ, यही तो है अपने मोदी जी की खास बात। सिर्फ मीठा भी नहीं और सिर्फ तीता भी नहीं ; दोनों स्वाद अदल-बदल कर।

 

मोदी जी नहीं चाहते कि उनकी सरकार को लेकर कोई कम्फर्ट जोन में चला जाए। वह पब्लिक को हमेशा चुनौती का सामना करने के मोड में रखना चाहते हैं, जैसे कि उनके कहे के हिसाब से वह खुद भी रहते हैं।

 

मुसलमानों को अगर लगेगा कि मोदी जी की सरकार उनका ख्याल रखेगी, और बार-बार सरकार के कदमों से ऐसा लगेगा, तब क्या होगा? मुसलमान निश्चिंत हो जाएंगे और कम्फर्ट जोन में चले जाएंगे। वे सरकार से चुनौती लेना और देना ही बंद कर देंगे। फिर विकास कैसे होगा?

 

लेकिन, मोदी जी यह भी नहीं चाहते कि मुसलमानों को यह लगे कि उनकी सरकार कभी मुसलमानों की भलाई का कोई काम करेगी ही नहीं। वर्ना यह भी तो एक तरह से विरोध वाले कम्फर्ट जोन में जाना ही हो जाएगा। सो, मोदी जी अपनी सरकार के टोकरे में से मुसलमानों के लिए सिर्फ तीता ही नहीं, मीठा भी निकालकर दिखा रहे हैं, जो ग्यारह साल बाद ही सही, मुसलमानों के लिए सौग़ात की शक्ल में सामने आ रहा है। यही तो सब का साथ सब का विकास है।

 

हम तो कहते हैं कि कम से कम मोदी जी की ईद की सौग़ात के बाद तो, इसकी शिकायतें बंद हो ही जानी चाहिए कि मोदी जी के राज में हिंदू-मुसलमान के बीच भेद-भाव होता है। हर्गिज नहीं। जैसे मोदी जी का राज मुसलमानों के लिए तीता और मीठा दोनों है, वैसे ही हिंदुओं के लिए भी वह सिर्फ मीठा-मीठा ही नहीं, तीता भी है। बल्कि ज्यादातर मामलों में तो यह तीतापन सबके लिए है, बिना किसी अंतर के। भयंकर बेरोजगारी क्या सिर्फ मुसलमानों के लिए है, हिंदुओं के लिए नहीं है? कमरतोड़ महंगाई किस के लिए है, क्या सिर्फ मुसलमानों के लिए? जीएसटी और दूसरे टैक्सों की मार क्या हिंदुओं पर किसी और से कम पड़ती है? उल्टे हिंदू क्योंकि तादाद में ज्यादा हैं और खाने-पीने में भी मुसलमानों से बेहतर हैं, उन पर ये सारी मारें कुछ न कुछ ज्यादा ही पड़ रही होंगी, कम नहीं।

 

औरंगजेब से अब्दुल तक से बदला दिलवाने की जो भी मिठास है, उसका जायका बदलने के लिए ये सब मारें भी जरूरी हैं। वर्ना हिंदुओं को शुगर की बीमारी से कैसे बचाया जाएगा?

 

कुछ लोग सौग़ात की तुक ख़ैरात से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, जो बिल्कुल ही गलत है। सिर्फ इसलिए कि जैसे ख़ैरात वाले राशन के थैले पर मोदी जी की तस्वीर है, वैसे ही सौग़ात-ए-मोदी के थैले पर भी जाहिर है कि मोदी जी की ही तस्वीर है, सौग़ात को ख़ैरात से नहीं मिलाया जाना चाहिए। जब राज मोदी जी का है, तो ख़ैरात करें या सौग़ात दें, दाता तो एक मोदी जी ही होंगे। वैसे भी पब्लिक की डिमांड पर वन नेशन, वन तस्वीर का टैम चल रहा है। फिर ख़ैरात वाले थैले में लाभार्थी का धर्म नहीं देखा जाता, जबकि सौग़ात वाला थैला तो छांट-छांटकर 32 लाख मुसलमानों को दिया जा रहा है और वह भी सिर्फ ईद के लिए। इतनी सी ख़ैरात से मोदी जी का क्या बनेगा, सो यह तो सौग़ात ही होनी चाहिए। वैसे भी ख़ैरात अपनी प्रजा को दी जाती है, जबकि सौग़ात अक्सर दूसरों को दी जाती है यानी जिनसे कुछ दूरी हो!

 

सौग़ाते मोदी में कई लोगों को मोदी जी का हृदय परिवर्तन दिखाई दे रहा है। दिमाग को तगड़ा झटका लग जाए, तो हृदय परिवर्तन भी हो सकता है। बाल्मीकि के डाकू से साधु बनने की कथा तो सब ने सुनी ही होगी। आम चुनाव का झटका क्या इतना ही परिवर्तनकारी था! मोदी जी तुष्टिकरण करने का भी इल्जाम झेल रहे हैं, अब्दुल तेरे लिए।

 

इन बेचारों ने ‘नया भारत’ बनाने का जुमला तो फेंक दिया, पर इन्हें पता नहीं है कि नया क्या होता है और पुराना क्या? इन्हें तो भारत क्या है, इसकी भी खबर नहीं। फिर भी जुमला फेंका है तो कुछ न कुछ ‘नया ‘ कर‌ना है और इसका सबसे आसान, सबसे पुराना और सबसे नया नुस्खा है – हिंदू-मुस्लिम करना। पिछले सौ साल से ये यही कर रहे हैं और इसी के ये ‘विश्व विशेषज्ञ’ हैं! दुनिया कहां से कहां आ गई मगर ये ‘गर्व से कहो, हम हिन्दू हैं’ में लिथड़े हुए हैं और मस्त हैं। भगवान तो है नहीं, मगर वह इनका भला जरूर करे!

 

नया करने के नाम पर इन्होंने मुस्लिम नामों पर हिन्दू नाम चस्पां करने का मिशन लांच किया है। इलाहाबाद‌ कितना खूबसूरत नाम था और इनकी खूबसूरती से दुश्मनी है। इन्हें लगा कि यह तो इस्लामी नाम है, तो उसे बदलकर प्रयागराज कर दिया। फैजाबाद को अयोध्या कर दिया। मुगलसराय रेलवे स्टेशन को पंडित दीनदयाल उपाध्याय रेलवे स्टेशन कर दिया। इसी क्रम में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री जी ने अभी चार जिलों के मुस्लिम नाम बदले हैं। चांदपुर में ‘चांद’ शब्द उन्हें संस्कृत मूल का नहीं लगा,(कुछ पढ़ा होता, तो लगता), उर्दू का लगा, तो उसे ज्योतिबा फुले नगर कर दिया। मियांवाला का रामजीवाला कर दिया। उधर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री जी को 65 गांवों के मुस्लिम नाम बदलने से संतोष नहीं हुआ। उन्हें लगा, कुछ और नया, कुछ निराला कर मोदी जी की नजरों में ऊंचा उठना चाहिए, तो उन्होंने बेरोजगारों को नया नाम ‘आकांक्षी युवा’ दे दिया। संघियों के साथ बढ़िया बात यह है कि इनकी अक्ल पर तरस खाओ, तो ये गर्व से और ज्यादा फूल जाते हैं। इन्होंने अपने गृहनगर उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय का नाम सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय कर दिया है। और तो और, अपनी ही पार्टी के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का दिया नाम भी बदल दिया! चौहान जी ने कुछ विशिष्ट सरकारी स्कूलों का नाम ‘सीएम राइज स्कूल ‘ रखा था। नये मुख्यमंत्री जी को उसमें अंग्रेजीयत की बू आने लगी और उन्होंने इनका नाम सांदीपनि स्कूल कर दिया। मुख्यमंत्री जी उज्जैन के हैं तो कालिदास, सांदीपनि और विक्रम के अलावा कुछ जानते नहीं। जिस गति से वह नाम बदल रहे हैं, एक दिन पता चलेगा कि उन्होंने अपना नाम ही बदल लिया है!

 

भाजपा ‘नाम बदलू योजना’ में इतनी अधिक फंस जाने वाली है कि कम से कम मोदी काल में तो निकल नहीं पाएगी! उत्तराखंड के मुख्यमंत्री जी ने हरिद्वार के पास एक छोटी सी जगह का नाम औरंगजेबपुर से शिवाजी नगर कर दिया। बधाई हो उन्हें इस ‘महान उपलब्धि’ के लिए, पर महाशय जी, आपके राज्य में दो और जगहों के नाम भी औरंगजेब के नाम पर हैं। दिलचस्प है कि जिसे सबसे दुष्ट- इन लोगों से भी दुष्ट- माना जाता है, वह भारत के इतने गांवों-कस्बों-शहरों में छाया हुआ है कि उसका नाम बदलते-बदलते इनका दम निकल जाएगा और मज़ा यह है कि जिन मुसलमानों को चिढ़ाने के लिए ये यह धतकरम कर रहे हैं, उन्हें इससे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा!

 

गूगल ने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की एक पुरानी रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि 2011 की जनगणना के अनुसार देश में कम से कम 177 कस्बों और गांवों के नाम औरंगजेब के नाम पर हैं। औरंगाबाद नामक दो बड़े शहर महाराष्ट्र तथा बिहार में हैं, मगर कहानी इतनी ही नहीं है। देशभर में कुल 63 औरंगाबाद हैं, जिनमें से 48 बदकिस्मती से महान् हिंदुवादी योगी जी के उत्तर प्रदेश में अवस्थित हैं। इस प्रदेश में औरंगजेब के नाम से 114 कस्बे और गांव हैं। औरंगाबाद के अलावा देश में 35 औरंगापुरा हैं, तीन औरंग नगर हैं, 13 औरंगजेबपुर हैं, सात औरंगपुर हैं और एक औरंगाबर है। 38 गांवों का नामकरण भी औरंगजेब के नाम पर है — जैसे औरंगाबाद खालसा, औरंगाबाद डालचंद आदि। महाराष्ट्र में, जहां औरंगजेब के नाम पर हाल ही में नागपुर में ‘सफल’ दंगा करवाया चुका है, उसकी कब्र तोड़ने की मुहिम चल चुकी है, वहां भी 26 कस्बों और गांवों के नाम औरंगजेब पर हैं। और अभी वहां केवल एक औरंगाबाद का नाम संभाजी नगर हुआ है। बिहार में 12 जगहों के नाम औरंगजेब पर हैं। आंध्र प्रदेश में चार, गुजरात में दो, हरियाणा और मध्य प्रदेश में सात- सात, राजस्थान में एक, उत्तराखंड में तीन और पश्चिम बंगाल में एक जगह औरंगजेब के नाम पर है। यानी पश्चिम बंगाल को छोड़कर औरंगजेब भाजपा और एनडीए को परेशान करने का काफी इंतजाम पहले ही करके इस दुनिया से गया है। यह कह के गया है कि लड़ो मुझसे? कितना लड़ोगे और कहां-कहां लड़ोगे? मैं तो सर्वव्यापी टाइप हूं। और सुनो, मैं तो मुगल खानदान का केवल एक बादशाह हूं। सुनाम कम, बदनाम ज्यादा हूं। मेरे अलावा बाबर, हुमायूं , अकबर, जहांगीर और शाहजहां से लेकर कुल 19 मुगल बादशाह थे। इनके नाम पर भी शहरों-कस्बों-गांवों और मोहल्लों के नाम हैं, कहां- कहां इनके नाम पर चूना फेरोगे?

 

जब एक औरंगजेब इतना पसीना ला सकता है, तो सोचो, ये‌ सब मिलकर क्या करेंगे? मुगलों को भारत पर राज करने के लिए तीन सौ साल से अधिक मिले थे और तुम अभी कुल ग्यारह साल के बच्चे हो!हद से हद पंद्रह के हो जाओगे, इसलिए तुम्हारी भलाई इसमें है कि अपने नाम बदलना शुरू कर दो!

 

जैसे अमित शाह के साहेब का नाम नरेन्द्र मोदी है। इन्हें अगर पता न हो, तो बता देना एक भारतीय के नाते मेरा फ़र्ज़ बनता है कि मोदी सरनेम केवल हिन्दुओं में नहीं होता, मुसलमानों और पारसियों में भी होता है। क्या मोदी जी इस बात को बर्दाश्त कर सकते हैं और क्या जिनके सरनेम मोदी हैं, उन्हें बदलने को बाध्य कर सकते हैं? कभी नहीं।

 

यही नहीं, नीरव तथा ललित जैसे कुख्यात मोदी भी हैं, जो पक्के जालसाज हैं, जबकि नरेन्द्र मोदी इतने अधिक ‘सच्चरित्र’ हैं कि उन्होंने तो बीए और एमए की डिग्री लेने तक में जालसाजी नहीं की, इसलिए उन्हें अपने ‘सुकीर्ति’ की रक्षा के लिए सरनेम बदल देना चाहिए, वरना अभी तक तो नेहरू ही ‘मुसलमान’ हुए हैं, कल ऐसा न हो कि यही मोदी जी के साथ भी हो!

 

यही सुझाव मैं माननीय अमित शाह जी को भी देना चाहता हूं। जिन मुसलमानों से उन्हें बेहद नफ़रत है, उन्हीं ने सबसे पहले शाह नाम ग्रहण किया था। शाह उपनाम ईरान से आया है और उस देश के इस्लाम अपनाने के बाद आया है। बुल्लेशाह, नसरुद्दीन शाह तो बड़े नाम हैं, मगर नादिर शाह भी एक हुआ है, इसलिए नादिर से संबंध विच्छेद करने के लिए उन्हें भी अपना सरनेम बदलने पर गहराई से विचार करना चाहिए। लोग अभी से मोदी-शाह निज़ाम को नादिरशाही निज़ाम कहने लगे हैं!

 

शेष शुभ है और जब तक आप दोनों गुज्जू भाई हैं,

सब ‘शुभ’ ही रहेगा!

व्हाट्सएप पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *