Breaking News

आवश्यकता है “बेखौफ खबर” हिन्दी वेब न्यूज़ चैनल को रिपोटर्स और विज्ञापन प्रतिनिधियों की इच्छुक व्यक्ति जुड़ने के लिए सम्पर्क करे –Email : [email protected] , [email protected] whatsapp : 9451304748 * निःशुल्क ज्वाइनिंग शुरू * १- आपको मिलेगा खबरों को तुरंत लाइव करने के लिए user id /password * २- आपकी बेस्ट रिपोर्ट पर मिलेगी प्रोत्साहन धनराशि * ३- आपकी रिपोर्ट पर दर्शक हिट्स के अनुसार भी मिलेगी प्रोत्साहन धनराशि * ४- आपकी रिपोर्ट पर होगा आपका फोटो और नाम *५- विज्ञापन पर मिलेगा 50 प्रतिशत प्रोत्साहन धनराशि *जल्द ही आपकी टेलीविजन स्क्रीन पर होंगी हमारी टीम की “स्पेशल रिपोर्ट”

Saturday, May 10, 2025 7:41:12 PM

वीडियो देखें

लोकसभा चुनाव में NOTA को NO कहना सिखाएगा संघ,घर-घर जाकर करेगा प्रचार

लोकसभा चुनाव में NOTA को NO कहना सिखाएगा संघ,घर-घर जाकर करेगा प्रचार

राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ (आरएसएस) की ओर से हमेशा दावा किया जाता रहा है कि वो राजनीतिक दल नहीं है. 2014 के चुनाव में भी आरएसएस ने किंगमेकर की भूमिका ही निभाई थी. लेकिन इस बार के चुनाव में स्थिति थोड़ी सी अलग होगी. संघ ने इस चुनाव में 'खुलकर' मैदान में उतरने का मन बनाया है. लोकसभा चुनाव के लिए RSS के स्वंयसेवक भी मैदान में प्रचार के लिए उतरेंगे. स्वयंसेवकों लोगों को 100 फीसदी मतदान के लिए जागरूक करेंगे और नोटा के खिलाफ नहीं करने के बारे में बताएंगे.

दरअसल जिस बात को बीजेपी अभी समझी है उसे RSS के सरसंघचालक मोहन भागवत पहले ही समझ चुके थे. 3 राज्यों के चुनाव से पहले ही वो नोटा का विरोध कर रहे थे. अब लोकसभा चुनाव में मोहन भागवत और उनके स्वयंसेवक NOTA के लिए NO कहना सिखाएंगे. संघ प्रमुख मोहन भागवत ने विजयदशी के मौके पर दिए भाषण दो अहम मुद्दे उठाए थे. पहला उन्होंने राम मंदिर के लिए कानून बनाने की मांग की और दूसरा उन्होंने लोगों से चुनाव में नोटा ना चुनने की बात भी कही थी. संघ अब इसी मुद्दे को लेकर मैदान में उतरने की तैयारी कर रहा है.

जानकारी के मुताबिक तीन राज्यों के चुनाव के बाद संघ को फीडबैक मिला है कि नोटा के इस्तेमाल की वजह से बीजेपी को काफी नुकसान हुआ. कई स्वयं सेवक इस बात को मानते हैं कि मध्यप्रदेश में बीजेपी को कांग्रेस ने नहीं बल्कि नोटा ने हराया. इसी स्थित को देखते हुए आरएसएस प्रमुख ने शत प्रतिशत मतदान के साथ नोटा के विरोध प्रचार का भी फैसला लिया है. नोटा के विरोध के पीछे एक और लॉजिक दिया जा रहा है कि ये उस गुस्से है जो आज के सांसदों के खिलाफ है. लेकिन इतना ज्यादा भी नहीं कि विरोधी को वोट दे दिया जाए. पिछले चुनाव परिणाम को देखें तो नोटा से सबसे ज्यादा नुकसान होने के आसार बीजेपी के ही हैं.

इसीलिए संघ अब नोटा के खिलाफ खुला आवाहन करेगा, इसके साथ ही लोगों को बताएगा कि कैसे नोटा की वजह से अनुचित व्यक्ति का चुनाव हो जाता है. संघ प्रचारक और स्वयंसेवक ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिलकर ये बात समझाने की कोशिश करेंगे.

राजस्थान में 15 ऐसी सीटें रहीं, जिनमें जीत-हार का अंतर नोटा को मिले वोट से कम था. मध्यप्रदेश में ऐसी 11 सीटें रहीं, जहां नोटा ने जीत-हार के अंतर से अधिक वोट हासिल किए. छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां 2.1% करीब वोट नोटा को मिले. यहां 20 सीटों पर काफी कम अंतर से हार-जीत का फैसला हुआ.

चुनाव आयोग ने दिसंबर 2013 के विधानसभा चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में इनमें से कोई नहीं अर्थात नोटा (None of the above, or NOTA ) बटन ईवीएम पर दिया. नोटा उम्मीदवारों को खारिज करने का एक विकल्प देता है. ऐसा नहीं है कि वोटों की गिनती की समय उनके वोटों को नहीं गिना जाता है. बल्कि नोटा में कितने लोगों ने वोट किया, इसका भी आकलन किया जाता है.

चुनाव के माध्यम से पब्लिक का किसी भी उम्मीदवार के अपात्र, अविश्वसनीय और अयोग्य अथवा नापसन्द होने का यह मत केवल यह सन्देश मात्र होता है कि कितने प्रतिशत मतदाता किसी भी प्रत्याशी को नहीं चाहते हैं. चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि नोटा के मत गिने तो जाएंगे पर इसे रद्द मतों की श्रेणी में रखा जाएगा. इस तरह से स्पष्ट ही था कि इसका चुनाव के नतीजों पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

व्हाट्सएप पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *