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Sunday, July 6, 2025 12:43:47 PM

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क्या है भारतीय पत्रकारिता की दास्तान, कैसे मिले पत्रकारों को न्याय

क्या है भारतीय पत्रकारिता की दास्तान, कैसे मिले पत्रकारों को न्याय

भारतीय पत्रकारिता की कहानी भारतीय राष्ट्रीयता के विकास की कहानी है। दोनों एक-दूसरे के सहायक रहे हैं। यदि पत्रकारिता को राष्ट्रीयता ने प्रज्वलित किया है तो पत्रकारिता ने भी राष्ट्रीयता को उज्वलित कर राष्ट्रीयता के विकास की अनुकूल भूमि तैयार की है। भारतीय पत्रकारिता का उदय राष्ट्रीय आन्दोलन की पृष्टभूमि में सांस्कृतिक चेतना को जागृत करने के लिए ही हुआ। व्यावसायिक उद्देश्यों से दूर त्याग, तपस्या और बलिदान की भावना इसमें मुख्य रही। संस्कृति पर छाए कोहरे को दूर कर भारतीय पत्रकारिता ने दिशा हीन समाज को दिशा निर्देशित किया तथा अतीत के गौरव से परिचित कराया। निराशा हृदयों में आशा का संचार करने तथा मृतप्राय भावनाओं में क्रान्ति अंकुरित करने में पत्रकारिता का विशिष्ट योगदान रहा है। ‘पयामे आजादी’ इसका एक मुख्य उदाहरण है, अपने नाम के अनुरूप ही यह पत्र आजादी का संदेश लेकर आया और स्वतन्त्रता आन्दोलन के नेता अजीमुल्ला खां ने 8 फरवरी, सन् 1857 को दिल्ली से पयामे आजादी का प्रकाशन शुरू किया। स्वतन्त्रता का शंखनाद करने वाले इस पत्र ने तत्कालीन स्थितियों पर खुलकर लिखा तथा सरकार की नीतियों की निर्भीक आलोचना की। 8 अप्रैल, सन् 1857 को जब युवा क्रान्तिकारी मंगल पाण्डे को फांसी दी गई तो। फलस्वरूप सशक्त जन आन्दोलन ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध उठ खड़ा हुआ। अंग्रेजों से टक्कर लेने के लिये जगह-जगह आजादी के दीवानों की टोलियां निकल पड़ी। सिर पर कफन बांधे निर्भीकता के साथ लोग स्वतन्त्रता यज्ञ में अपनी आहुति देने को तत्पर थे। नवीन राजनैतिक-सामाजिक चेतना का उदय होना प्रारम्भ हुआ। पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित समाचारों तथा लेखों पर जन-सामान्य अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने लगा। ब्रह्म समाज, प्रार्थना सभा, आर्य समाज, थियोसोफिकल सोसायटी जैसे समाज सुधारक संगठनों के सुधारवादी आन्दोलनों ने जनमानस के चिन्तन को व्यापक स्तर पर प्रभावित किया और यह प्रभाव तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं में उभर कर सामने आया। उस युग के लेखकों को उत्साह, जिन्दादिली और साहित्य साधना की उत्कृष्ट ललक थी
गणेश शंकर विद्यार्थी से लेकर महात्मा गांधी, पण्डित जवाहरलाल नेहरू, पण्डित मदनमोहन मालवीय, लाला हरदयाल, चन्द्र शेखर आजाद, सरदार भगत सिंह जैसे देश भक्तों ने पत्रकारिता का सदुपयोग स्वाधीनता के लिए किया। पत्रकारिता लोकतंत्र का एक ऐसा सशक्त माध्यम है जो लोकतंत्र की हिफाजत तो करता ही है साथ ही न्यायपालिका, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका के बीच सामंजस्य व संवाद बनाये रखता है। समस्त संसार के दैनन्दिन घटनाक्रम से मनुष्य को यथाशीघ्र परिचित कराने के प्रयासों की होड़ में पत्रकारिता अपने विविध रूपों में विकसित हुई। आज पत्रकारिता में दैनिक पत्रों से लेकर साप्ताहिक, पाक्षिक, त्रैमासिक, मासिक,अर्द्धवार्षिक, वार्षिक आदि सभी पत्रिकाएं तथा रेडियो, दूरदर्शन, इटंरनेट, वेबसाइट, ईमेल आदि, जनसंचार के विभिन्न विधाएं अस्तित्व में हैं। ज्ञान और विचारों को शब्दों तथा चित्रों के रूप में दूसरे तक पहुंचाना ही पत्रकारिता है। आज अगर पत्रकारों को न्याय दीलाने की बात की जाये तो, सबसे पहले यह जानने की जरूरत है कि आखिर पत्रकार है कौन? वो इन्सान जो भ्रष्ट अधिकारियों व नेताओं के तलवे चाटने में लगा है। या फिर वह इनषान जो निर्भीक और निडर होकर जन समस्याओं पर अपने लेख के जरिये षब्दों की माला पिरो कर जनता का दर्द बयां करता है। सच्च को बयां करने वाले पत्रकारों पर आजादी से पहले भी जुल्म होता रहा है, और आज आजादी के 71 वर्श बीत जाने के बाद भी जारी है। आज सिर्फ जुमले के तौर पर पत्रकारों की सुरक्षा की बात की जाती है, असल में तो सरकार और उनके अधिकारियों को यह तक नही पता कि असल में पत्रकार है कौन?
पत्रकारों का मुखौटा पहेन कर न जाने कितने भ्रष्ट इन्सान पत्रकारों की जमाअत में शामिल हो कर ब्यूरो चीफ और सम्पादक बने बैठे है। जो कि अपने लेख के जरिये नही बल्कि अधिकारी और नेताओं के तलवे चाट कर पहचान बना कर आर्थिक लाभ उठाने में लगे है। यही कारण है कि जब एक सच्चा पत्रकार जनता को हो रही समस्याओं के कारण का खुलासा करता है। तो उसे या तो जेल की हवा खानी पड़ती है या फिर जान से हाथ धोना पड़ता है। वैसे तो पत्रकारों का शोक समारोह मनाने के लिये अनेको पत्रकार दिखाई देतें है। परन्तु जब एक क्षेत्रीय मझौले पत्रकार को किसी भ्रश्टाचारी खेल को उजागर करने के बदले में अवैध मुकदमों में फंसाया जाता है,धमकाया जाता है। तो न कोई पत्रकार और न ही कोई पत्रकारों का संघ उनकी मदद को दिखाई देता है। यहां तक कि ऐसे मामलों देखा गया है कि पत्रकारों का डिपार्टमेन्ट ही उनको नकार देता है। ऐसा ही एक मामला बहराइच के नानपारा क्षेत्र का है जहां खबर लागाने वालो दो पत्रकारों पर फर्जी मुकदमा दर्ज कराया गया है क्षेत्रीय ब्यूरो राशिद अली और उनके कैमरा मैन की माने तो खबर लगाने के बाद उन्हे अनेको धमकियां मिली है और उन पर ही फर्जी मुकदमा दर्ज कराया गया है। यहां तक की उन्हे उनके डिपार्टमेन्ट से भी निकाल दिया गया है। पीड़ित पत्रकारों ने अब न्याय के लिये पीएम नरेन्द्र मोदी से गुहार लगाई है।

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