बहराइच 29 जनवरी। सही समय पर निमोनिया के लक्षणों को पहचान कर बचपन को सुरक्षित किया जा सकता है। बैक्टीरिया, वायरस या धुएं के संक्रमण से होने वाली इस बीमारी से पांच साल तक की आयु के बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। सही समय पर इलाज न होने पर यह घातक हो सकता है। जन समुदाय को इसके बारे में जागरूक कर इसे कम किया जा सकता है। इसमें मीडिया की बड़ी भूमिका है।े
यह बातें मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ सतीश कुमार सिंह ने सेव द चिल्ड्रन के सहयोग से होटल ग्राण्ड पैलेस में आयोजित मीडिया कार्यशाला में कही। उन्होंने बताया कि संस्था जनपद में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में दो ब्लाकों पयागपुर और हुज़ूरपुर में निमोनिया प्रबंधन पर काम कर रही है। इसमें आशाओं को गृह भ्रमण के दौरान निमोनिया के लक्षणों की पहचान और उपचार के बारे में सहयोग किया जाता है। इस मौके पर जिला स्वास्थ्य शिक्षा एवं स्वास्थ्य अधिकारी बृजेश सिंह ने बताया कि जनपद में आशाएं गृह भ्रमण के दौरान जन्म से 42 दिन तक के शिशुओं में निमोनिया की पहचान, उपचार एवं सन्दर्भन का काम करती हैं। डॉ अजीत चंद्रा ने बताया कि नोमोनिया से बचाव के लिए पीसीवी वैक्सीन लगाई जाती है। उन्होंने बताया कि आशाएं गृह भ्रमण के दौरान नवजात शिशुओं में सांस की गिनती कर निमोनिया की पहचान करती हैं। सांस तेज होने पर शिशु को एएनएम के सहयोग से दवा व इंजेक्शन देकर उसे आगे अस्पताल में रेफर करती है।
मीडिया के सवाल कि एक माँ कैसे इस बात को पहचाने कि उसके बच्चें को निमोनिया हुआ है। इसके जवाब में एसीएमओ डॉ योगिता जैन ने बताया कि निमोनिया का पहला लक्षण नवजात शिशु दूध पीना छोड़ देता है, उसकी सांस तेज हो जाती है और पसली धंसने लगती है। इनमें से कोई भी लक्षण होने पर तुरंत अस्पताल जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि तेल मालिश निमोनिया का इलाज नहीं है बल्कि लक्षण होने पर जितनी जल्दी हो सके उसे अस्पताल ले जाना चाहिए।
इस मौके पर एसीएमओ डॉ जयंत कुमार, डॉ राजेश कुमार, मंडलीय कार्यक्रम प्रबंधक सिफ़सा, एनएचएम राहुल पटेल, सेव द चिल्ड्रेन से अभिषेक मिश्रा, डीसीपीएम मो0 राशिद, आर.के.एस.के. जिला सलाहकार राकेश गुप्ता, आर.बी.एस.के. समन्यवक गोविंद रावत , सीफार के मंडलीय समन्वयक सुशील वर्मा सहित मीडिया प्रतिनिधि उपस्थित रहे।
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