सन्त कबीर नगर। पूर्वी उत्तर प्रदेश व बिहार में धूमधाम से मनाए जाने वाले छठ महापर्व बृहस्पति वार से शुरू हो गया है। इस पर्व को लेकर दिल्ली समेत पूरे भारत में भी तैयारियां जोर-शोर से है। यह महापर्व नहाय-खाय से शुरू होकर 3 नवंबर को सूर्योदय के अर्घ्य देने के साथ समाप्त होगा। छठ महापर्व बृहस्पति वार को नहाए खाए के साथ शुरू हुआ है। इस पर्व का मुख्य प्रसाद ठेकुआ जो आटे से बनता है वहीं खजूर आटे और मैदा दोनों से तैयार किया जाता है। व्रतधारी पूजा सामग्री के लिए नए बर्तन और कपड़े खरीदने में मशगूल हैं। साड़ियों की दुकानों पर भी रौनक है। व्रती नई साड़ी पहनकर ही अस्तांचल व उदय होते सूर्य को अर्घ्य देती हैं। पूजन सामग्री के लिए धर्मसिंहवा बाजार में रौनक बढ़ गई है। कोशी, पीतल का सूप, बांस का सूप, दउरा, केला, संतरा, अनार, सेब, पानी फल, गागल, पानी वाला नारियल, अंगूर, गन्ना, कच्ची हल्दी, मूली, अदरक, सूथनी आदि की दुकानें सज कर तैयार है घाटों की साफ-सफाई पहले कर ली गई है। ताकि अर्घ्य देने के लिए महिलाओं को परेशान न होना पड़े। प्रशासन की तरफ से भी सुरक्षा के विशेष इंतजाम किए गए है। भगवान सूर्य को समर्पित इस पूजा को कठिन व्रतों में से माना जाता है। व्रती दो दिनों तक निर्जला रहते है। कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को यह व्रत बृहस्पति वार से आरंभ होकर दूसरे दिन शुक्रवार को खरना पूरे दिन व्रत करने के बाद शाम को व्रती प्रसाद ग्रहण किया। मुख्य प्रसाद ठेकुआ, टिकरी है। शनिवार को खष्ठी को व्रती अर्घ्य देंगे। सप्तमी को प्रात: सूर्योदय के समय अर्घ्य देंगे व विधिवत पूजा कर प्रसाद वितरित करेंगे। व्रत में इन चीजों की महत्ता
सूप, डाला-अर्घ्य में नए बांस से बने सूप व डाला का प्रयोग किया जाता है। सूप को वंश की वृद्धि और वंश की रक्षा का प्रतीक माना जाता है। ईख को आरोग्यता का प्रतीक माना जाता है। ठेकुआ-आटे और गुड़ से बना ठेकुआ समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। ऋतुफल-छठ पूजा में ऋतुफल का विशेष महत्व है।
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