भ्रष्टाचार पर जीरो टाॅलरेंस का करने वाली बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री खुद पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप पर मौन क्यों हैं? ये सवाल आज क्षेत्र की जनता के मन में घर कर गई है जो की बीजेपी के लिए घातक साबित हो सकती है। मुख्यमंत्री जैसे पद पर बैठे व्यक्ति का घूसखोरी के आरोपों पर इस तरह मौन जनता को कुछ हजम नहीं हो रहा है। समाचार प्लस चैनल के सीईओ उमेश कुमार ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत पर लाखों रूपए की रिश्वत लेने के खुलेआम आरोप लगाए हैं। यही नहीं उमेश कुमार ने उत्तराखण्ड शासन की मुख्यमंत्री हेल्पलाइन 1905 पर भी मुख्यमंत्री के खिलाफ घूस लेने की शिकायत दर्ज कराई, किंतु त्रिवेंद्र रावत ने खुद पर लगे घूसखोरी के इन आरोपों का अब तक कोई जवाब नहीं दिया। सीईओ उमेश कुमार के मुताबिक झारखण्ड में गौसेवा आयोग का अध्यक्ष बनने के लिए किसान मोर्चा झारखण्ड के प्रदेश उपाध्यक्ष रांची निवासी अमृतेश सिंह ने तत्कालीन झारखण्ड भाजपा प्रदेश प्रभारी व उत्तराखण्ड के मौजूदा मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को उत्तराखण्ड में हुए विधानसभा चुनाव से पूर्व उनके परिजनों के बैंक खातों के माध्यम से 25 लाख रूपए दिये। उमेश कुमार के मुताबिक हैरानी वाली बात यह रही कि जिस दौरान यह 25 लाख रूपए जमा कराए गए उसी समय देश के प्रधानमंत्री ने नोटबंदी की कार्यवाही को अमल में लाते हुए 500-1000 के पुराने नोट बंद कर दिए थे और एक खाते में 2 लाख से ज्यादा की रकम जमा नहीं की जा सकती थी। दूसरी तरफ इसी दौरान अमृतेश चैहान द्वारा 25 लाख रूपए, वो भी पुरानी करेंसी में, मुख्यमंत्री से संबंधित लोगों के खातों में जमा करवाए गए (सीईओ उमेश कुमार द्वारा संबंधित दस्तावेज सोशल मीडिया में भी अपलोड किए गए हैं)। खुद पर लगे इस तरह के संगीन आरोपों के बाद भी त्रिवेंद्र रावत का मौन रहना हैरान करने वाला है। आखिर मुख्यमंत्री अपने ऊपर लगे घूसखोरी के आरोपों पर जवाब क्यों नहीं देना चाहते हैं? आखिर मुख्यमंत्री को ऐसे कौन से सच का बेपर्दा होने का डर सता रहा है, जिसके चलते सीएम इन संगीन आरोपों पर चुप्पी साधना बेहतर समझ रहे है, किन्तु मुख्यमंत्री की यह चुप्पी उन्हे ही संदिग्ध बना रही है, मुख्यमंत्री का इस तरह जवाबदेही से बचना उत्तराखण्ड की जनता को नागवार गुजरना स्वाभाविक है। मुख्यमंत्री का इस तरह का रवैय्या उन्हें एक गैर जिम्मेदार नेता साबित करता है। हालांकि मुख्यमंत्री का भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टाॅलरेंस बहुत पहले ही खोखला साबित हो चुका है। यहां बताते चलें भाजपा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में प्रदेश की जनता को वचन दिया था कि उनकी सरकार आने की स्थिति में वे सौ दिन के भीतर एक मजबूत लोकायुक्त कानून लागू करेंगे, लेकिन त्रिवेंद्र रावत ने लोकायुक्त पर जिस तरह से पल्टी मारी उससे साफ हो गया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ वे थोथली बयानबाजी से आगे नहीं बढ़ने वाले। मुख्यमंत्री के जीरो टाॅलरेंस की बची-खुची पोल भी तब खुल गई जब उन्होंने हाईवे घोटाले को लेकर सीबीआई से जांच कराने की घोषणा की थी। बाद में सीबीआई से जांच कराने की खुद की घोषणा से वे मुकर गए और यही नहीं, हाईवे घोटाले में सारे आरोपी जिस तरह से एक के बाद एक बहाल होते गए और पोस्टिंग पाते गए, उसके बाद मुख्यमंत्री के जीरो टाॅलरेंस के बारे में कुछ कहने सुनने के लिए बचा ही नहीं। ऐसे में मुख्यमंत्री से भ्रष्टाचार के खिलाफ किसी भी प्रकार की कार्यवाही की उम्मीद तो नहीं की जा सकती है, पर हां खुद पर लगे घूसखोरी के आरोपों पर उनसे इतनी उम्मीद तो की ही जा सकती है कि वे इस पर प्रदेश की जनता को जरूर जवाब देंगे। अभी भी उम्मीद है देर-सबेर मुख्यमंत्री थोड़ी बहुत अपनी जवाबदेही समझेंगे और घूसखोरी के इन संगीन आरोपों पर अपनी बात जनता के सामने रखेंगे।
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