आधा दर्जन परिवारों का पैतृक कारोबार है। सालभर ताशों के बनाने का काम कुटीर उद्योग के रूप में करते हैं जबकि ढोल मेरठ की बाजार से लाकर बेचे जाते हैं। मुहल्ला बुखारी टोला निवासी लईक अहमद बताते हैं यह उनका पुश्तैनी पेशा है। बाबा के समय से चल रहा है। उसी वरासत को समेटे हुए हैं। खीरी के बने ताशे दो सौ से ढाई सौ रुपये में बेचे जाते हैं जबकि मेरठ के बने ढोल छह सौ रुपये से लेकर सात सौ रुपये में बिक्री होते हैं। पिछले कुछ वर्षों में दुकाने बढ़ी हैं लेकिन बिक्री में गिरावट आई है। …
लखीमपुर: मुहर्रम के महीने में बजने वाली ढोल ताशों की मातमी धुन माहौल को संजीदा करती है। मुहर्रम के महीने में ढोल व ताशों की जमकर बिक्री होती है। नक्कारों पर पड़ने वाली चोब खुशी के मौके पर दिलो में गुदगुदाहट पैदा करती है। वही धुन मुहर्रम के महीने में आंखों में आंसू बहाने का भी काम करती है। मुहर्रम का चांद दिखते ही पहली तारीख से पूरे महीने बजने वाली मातमी धुन माहौल को संजीदा करती है। कस्बा खीरी में बाजार और सैय्यदवाड़ा मस्जिद के पास मुहर्रम के महीने में ताशों और ढोलों की लगभग एक दर्जन दुकानें बिक्री के लिए सज चुकी हैं। ढोल व ताशों का कारोबार करने वालों ने अपनी अपनी दुकाने लगा दी हैं। ताशों के बनाने का काम कस्बा खीरी के मुहल्ला सेखसराय में लगभग आधा दर्जन परिवारों का पैतृक कारोबार है। सालभर ताशों के बनाने का काम कुटीर उद्योग के रूप में करते हैं जबकि ढोल मेरठ की बाजार से लाकर बेचे जाते हैं। मुहल्ला बुखारी टोला निवासी लईक अहमद बताते हैं यह उनका पुश्तैनी पेशा है। बाबा के समय से चल रहा है। उसी वरासत को समेटे हुए हैं। खीरी के बने ताशे दो सौ से ढाई सौ रुपये में बेचे जाते हैं जबकि मेरठ के बने ढोल छह सौ रुपये से लेकर सात सौ रुपये में बिक्री होते हैं। पिछले कुछ वर्षों में दुकाने बढ़ी हैं, लेकिन बिक्री में गिरावट आई है।
व्हाट्सएप पर शेयर करें
No Comments






