लखीमपुर खीरी| साथियों लोग बात बात में जिस रामराज की चर्चा करने लगते हैं उस रामराज की रचना करने वाले उस काल के रचनाकार शिक्षकों की भूमिका निभाने वाले ऋषि गुरु परंपरा के संवाहक गुरुजनों यानी शिक्षकों की शिक्षा पद्धति पर गौर करना जरूरी है। जब तक हम रामराज की शिक्षा देने वाले गुरुजनों शिक्षकों की कार्यशैली को आत्मसात नहीं कर लेते हैं तब तक रामराज्य की कल्पना करना एक कोरा सपना ही हो सकता है। किसी भी राष्ट्र के लिए वहां के नागरिकों का शिक्षित होना जरूरी एवं गौरव की बात होती है। एक समय था जबकि अखंड भारत को विश्वगुरु कहा जाता था इसका मतलब की हमारी शिक्षा व्यवस्था इतनी व्यहारिक एवं संस्कारित थी कि दुनिया हमको अपना गुरु मानती थी। अगर आज रामराज की परिकल्पना की जा रही है तो उसके लिए हमें अपनी शिक्षा के बुनियादी स्तर को सुधारकर रामराज्य की शिक्षा पद्धति का अनुसरण करना होगा। आज के बदलते समय में हमारी सरकार द्वारा शिक्षा को बच्चे के मौलिक अधिकार से जोड़ दिया गया है लेकिन सवाल मौलिक अधिकार से जोड़ने का नहीं है बल्कि आधार काल की शिक्षा को संस्कारित व्यवहारिक राष्ट्रप्रेम से परिपूर्ण बनाना है। आज सरकार जन-जन तक शिक्षा का उजियारा फैलाने के लिए करोड़ों अरबों खरबों रुपया खर्च कर रही है इसका काफी लाभ भी मिलता दिखाई दे रहा है और ग्रामीण क्षेत्र तक के छात्र मेधावी बनकर सामने आने लगे हैं लेकिन हमारी बुनियादी शिक्षा का पूरा लाभ अभी नहीं मिल पा रहा है। सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद भी ग्रामीण क्षेत्र के तमाम तरह की दिक्कतें प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा स्तर पर आ रही है जब तक हम अपने प्राथमिक शिक्षा को संस्कारित व्यवहारिक देश प्रेम से ओतप्रोत कर आने वाली भावी पीढ़ी में समाहित नहीं करेंगे तब तक रामराज की कल्पना तक नहीं कर सकते हैं। आज हमारी शिक्षा दो खंडों में विभाजित हो गई है और एक सरकार चला रही है तो दूसरी व्यवसायिक बन गई है जिसे हम गैर सरकारी कह सकते हैं। हांलाकि शिक्षा के विस्तार में गैर सरकारी विद्यालयों की अहम भूमिका है लेकिन इन विद्यालयों में बच्चों को पढ़ाना हर व्यक्ति के वश की बात नहीं होती है। फीस आदि के नाम पर हर माह एक मोटी रकम देनी पड़ती है जिसे आम आदमी नहीं दे सकता है। एक तरफ तो हमारे बच्चों को शिक्षक मुहैया नहीं हो पा रहे हैं और किताबी शिक्षा भी समुचित नहीं मिल पा रही हैं वहीं दूसरी तरफ बच्चों को उच्च स्तर के प्रशिक्षित शिक्षको से यथार्थ पर आधारित शिक्षा दी जा रही है। सरकारी शिक्षा व्यवस्था में खामियों के कारण मजबूरी में लोगो को ग्रामीण स्तर के संस्थागत एवं प्राइवेट स्कूलों का सहारा लेना पड़ रहा है बदले में मुंहमांगी रकम अदा करनी पड़ती है। हमारी लचर सरकारी शिक्षा व्यवस्था का लाभ गैर सरकारी स्कूलों को मिल रहा है और वह सरकारी स्कूलों की जगह इन स्कूलों में अपने बच्चे का दाखिला कराना पसंद कर रहे हैं। यही कारण है कि हर साल सरकार की तमाम सहूलियतों इमदादों के बावजूद सरकारी स्कूलों में स्कूल चलो अभियान चलाकर हर साल लोगों से अपने बच्चों का दाखिला कराने का अनुरोध करना पड़ रहा है फिर भी लोग अपने बच्चों का सरकारी स्कूलों में दाखिला कराना पसंद नहीं कर रहे हैं। सरकार को सोचना चाहिए कि इतनी सुविधाओं के बावजूद आखिर कौन सी ऐसी कमियाँ है जिससे लोग अपने बच्चों का दाखिला वहाँ न दिलाकर महंगे खर्च के बावजूद गैर सरकारी स्कूलों को तरजीह एवं प्राथमिकता दे रहे हैं। सरकार द्वारा गांव गांव प्राथमिक व माध्यमिक विद्यालय भवनों का निर्माण तो करवा दिया गया है लेकिन शिक्षा देने वाले शिक्षकों की कमी बनी हुई है। शिक्षकों की कमी एवं उनकी मनमानी सरकार के सारे भगीरथी प्रयासों पर पानी फेर रही है और लोग मुफ्त खाना कपड़ा किताब को नजरअंदाज कर रहे हैं। आज हमारी किताबी शिक्षा वैज्ञानिक इंजीनियर तो बना रही है लेकिन राष्ट्र भक्ति, पितृ मातृ भक्ति सेवाभाव से दूर भाग रही है फलस्वरूप आज वृद्धाश्रम खुलने लगे हैं और लोग खुद अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन न करके अपने वृद्ध माता पिता को उसमें भेजने लगे है। इतना ही नहीं आधुनिक किताबी शिक्षा ग्रहण करने के बाद लोग अपराधिक, असमाजिक, भ्रष्ट, राष्ट्र एवं समाज विरोधी मानसिकता के बनने लगे हैं। रामराज्य में सभी वर्गों के बच्चे एक साथ एक समान गुरूकुल में गुरु के सानिध्य में रहकर शिक्षा ग्रहण करता थे जिससे जातिपाँति ऊँच नीच की भावना नही पैदा होती थी और राम कृष्ण सुदामा जैसे चरित्र का निर्माण होता था। कहते हैं शिक्षक राष्ट्र का निर्माता होता है जो राष्ट्र के हित में समाज का निर्माण करता है अगर वह रामराज्य जैसा शिक्षक बन जाए तो देश में फैले भ्रष्टाचार धर्म संप्रदायवाद माता पिता समाज द्रोही एवं राष्ट्र विरोधी समस्याओं का स्वता निराकरण हो सकता है। उत्तर प्रदेश में सरकार शिक्षा व्यवस्था को गुरु शिष्य परंपरा के अनकूल लाकर विद्यालयों को गुरुकुल बनाने का प्रयास तो कर रही है लेकिन सरकार को सारे प्रयासों के पहले उसे हर विद्यालय में रोजाना अपने समय से आने और जाने वाले शिक्षकों की व्यवस्था करनी होगी तभी उसके प्रयास मूर्ति रूप ले सकते हैं। आज भी तमाम विद्यालय से हैं जिनमें मानक के अनुरूप शिक्षक नहीं है और जो हैं भी तो वह सभी विद्यालय समय से आते नहीं हैं। ऐसे लोग प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर की शिक्षा के भविष्य के दुश्मन बने हुए हैं। सरकार को अगर प्राथमिक माध्यमिक स्तर की शिक्षा में सुधार लाना है तो उसे हर विद्यालय में हर शिक्षक की रोजाना समय से उपस्थिति निश्चित रूप से तय करनी होगी। उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था में पिछले काफी दिनों से शिक्षा क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे शिक्षा मित्रों अनुदेशकों एवं शिक्षकों की उतनी व्यवस्था करनी होगी जितनी कक्षाएं विद्यालयों में चल रही है। सरकारी स्कूलों की बेपटरी होती शिक्षा को पटरी पर लाने के लिए विद्यालयों में कम से कम हर विषय एवं घंटा वार शिक्षकों की तैनाती करनी होगी ताकि बच्चों के स्कूल आने के उद्देश्य की पूर्ति हो सके। इस समय सरकार शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए जहां बच्चों को खाना कपड़ा कॉपी किताब तक उपलब्ध करा रही है साथ ही साथ शिक्षकों की विद्यालयों में उपस्थिति के लिए प्रयत्नशील है वही हमारे को शिक्षा के जिम्मेदार अधिकारी इसमें बाधक बने हुए क्योंकि बिना उनके मिले प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालय के शिक्षक स्कूल न आकर गैरहाजिर रहने की जुर्रत नहीं कर सकता है। आज भी तमाम शिक्षक ऐसे हैं जो अपने अधिकारियों की मिलीभगत से यदा-कदा ही विद्यालय जाते हैं और हर महीने सरकार का खजाना खाली करते रहते हैं। इसके बावजूद हमारी सरकारी शिक्षा का दूसरा पहलू बहुत ही सुंदर प्रंसनीय एवं संस्कारित भी है और हमारे तमाम सरकारी प्राथमिक व माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षक शिक्षामित्र आज के बदलते समय में विद्यालय के शैक्षिक कलेवर को बदलकर शिक्षा विभाग एवं सरकार को गौरवान्वित कर रहे हैं। आज उन विद्यालयों को मॉडल विद्यालय भी कहा जाता है। जहां कि शिक्षकों ने अपने लग्न परिश्रम दिमाग एवं अपने प्रयास से विद्यालय को प्राइवेट गुरुकुल जैसा स्कूल बना रखा है और हर शिक्षक गुरु परंपरा को गौरवान्वित कर रहा है। हम ऐसे तमाम अपने कर्तव्यनिष्ठ शिक्षक गुरुजनों को कर्तव्य पालन करने के लिए नमन करते हैं और हम आशा करते हैं कि हमारे अन्य प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालय भी आदर्श विद्यालय की तरह गुरु शिष्य परंपरा के संवाहक बन जाएंगे।
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