बरबर क्षेत्र में कई स्थानों पर गोमती नदी एक-एक बूंद पानी को तरस रही है। नदी के बीच का हिस्सा भी रेत का ढेर बन गया है। अवैध खनन व जलस्तर में आई भारी कमी से अनेकों जगह पर गोमती नदी सूख गई है। ऐसे में क्षेत्रीय लोगों के सामने विकराल समस्या उत्पन्न हो गई है। नदी का पानी सूख जाने से जानवर हर एक बूंद के लिए तरस रहे हैं। लगातार घट रहा जल स्तर चिंतनीय है।
मौसम की मार ने गोमती के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है। वहीं दूसरी ओर नेशनल हाइवे की रफ्तार बढ़ाने के लिए राजधानी की लाइफलाइन गोमती की प्राकृतिक धारा को परिवर्तित कर दिया गया। ऐसे में केंद्र सरकार की नमामि गंगे योजना हासिये पर आ गई। बरेली से सीतापुर के मध्य नेशनल हाइवे 24 के चौड़ीकरण कार्य को कार्यदायी संस्था द्वारा खीरी-हरदोई जिला सीमा पर हैरामखेड़ा गांव के निकट गोमती नदी पर पुल निर्माण के लिए बड़े-बड़े पत्थर डालकर जलप्रवाह का बेग कम करने के साथ ही प्राकृतिक जलधारा को मोड़ दिया गया था।
महीनों चले पुल निर्माण कार्य के बाद इन पुलों पर वाहन भी दौड़ने लगे, लेकिन कार्यदाई संस्था द्वारा नदी का प्रवाह कम करने को लेकर डाले गए पत्थर अब तक नहीं हटाए जा सके। जिस वजह से पुल के एक तरफ पानी न पहुंचने के कारण जलस्तर घट गया। सिल्ट जमा होने के साथ नदी ने तालाब का रूप ले लिया है। पानी का बहाव थमने से आदि गंगा के नाम से विख्यात गंगा नदी की सहायक व राजधानी लखनऊ की लाइफलाइन गोमती दलदल बन गई है।
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