यूपी में सपा-बसपा के गठबंधन का एलान हो गया है। लखनऊ के एक होटल में बसपा सुप्रीमो मायावती व सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस कर इसकी घोषणा कर दी। प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए मायावती शुरू से ही आक्रामक रहीं। पहली लाइन में ही कहा कि सपा-बसपा की ये संयुक्त प्रेस वार्ता भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों 'गुरू-चेला' की नींद उड़ा देगी।
उन्होंने कहा कि आज से 25 साल पहले भी सपा-बसपा के एक होने की कोशिशें हुई थीं। जिसका अंत गेस्ट हाउस कांड की घटना के रूप में हुआ। लेकिन देश व समाज के हित को देखते हुए हमने उस घटना को पीछे छोड़ दिया है। मायावती ने कहा कि भाजपा व कांग्रेस की नीतियां एक जैसी हैं। कांग्रेस के शासनकाल में घोषित इमरजेंसी थी जबकि भाजपा के शासन काल में अघोषित इमरजेंसी है। बोफोर्स घोटाले के कारण कांग्रेस की सरकार चली गई। राफेल के कारण भाजपा की सरकार चली जाएगी।
मायावती ने कहा कि भाजपा, सपा-बसपा गठबंधन से बुरी तरह डर गई है। इसलिए अखिलेश यादव के पीछे सीबीआई लगा दी है। लेकिन उन्हें ये पता होना चाहिए कि ऐसी किसी भी कोशिश से ये गठबंधन मजबूत ही होगा। बसपा सुप्रीमो ने एलान किया कि आगामी लोकसभा चुनाव में सपा व बसपा 38-38 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी जबकि कांग्रेस के लिए गठबंधन न होते हुए भी अमेठी व रायबरेली की सीट छोड़ दी गई है। दो सीटें अन्य दलों को दी जाएंगी।
इस मौके पर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि गठबंधन के लिए मायावती जी का धन्यवाद और इसे स्वीकारने के लिए जनता का भी आभार। उन्होंने कहा कि पूरे देश में अराजकता का माहौल है। भाजपा के पांच साल के शासन काल में दलितों, पिछड़ों और महिलाओं पर अत्याचार किया गया। इसलिए भाजपा के अत्याचारों को रोकने के लिए यूपी में सपा-बसपा ने गठबंधन करने का फैसला लिया है।
अखिलेश ने कहा कि मैंने पहले ही बोला था कि अगर भाजपा को रोकने के लिए हमें दो कदम पीछे भी हटना पड़े तो हम हटेंगे, लेकिन मायावती जी ने बराबरी का समझौता कर हमें सम्मान दिया है। अगर मेरी आवाज भाजपा के लोगों तक पहुंच रही है तो वह ये सुन लें कि सपा-बसपा ने भाजपा का सफाया करने का एलान कर दिया है।
अखिलेश ने कहा कि सपा-बसपा गठबंधन की नींव मेरे दिल में उसी दिन पड़ गई थी जब सत्ता के अहंकार में चूर भाजपा नेताओं ने मायावती जी पर अशोभनीय टिप्पणी की थी और भाजपा ने ऐसे असंस्कारी लोगों को बड़े मंत्रालय देकर उनका हौसला बढ़ाया था। अब सपा-बसपा मिलकर भाजपा के अत्याचारों से लड़ेंगे।
अखिलेश ने सपा कार्यकर्ताओं को संदेश देते हुए कहा कि सपा कार्यकर्ता सुन लें कि आम चुनाव जीतने के लिए मिलकर काम करें और ये याद रखें कि मायावती जी का अपमान मेरा अपमान होगा। भाजपा के लोगों से सावधान रहें क्योंकि ये लोग चुनाव जीतने के लिए दंगा भी करवा सकते हैं। वहीं, मायावती के प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी का सवाल पूछने पर अखिलेश यादव ने कहा कि यूपी ने देश को पहले भी प्रधानमंत्री दिए हैं। मुझे पूरी उम्मीद है कि एक बार फिर देश को प्रधानमंत्री देने का काम यूपी ही करेगा।
लगभग पच्चीस वर्षों बाद सपा और बसपा मिलकर चुनाव लड़ेंगे। लोकसभा चुनाव में पहली बार दोनों पार्टियां परस्पर गठबंधन करके मैदान में उतरने जा रही हैं। इससे पहले 1993 में दोनों पार्टियों ने विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन किया था। उस समय यह गठबंधन बसपा के तत्कालीन सर्वेसर्वा कांशीराम और सपा के उस समय मुखिया मुलायम सिंह यादव के बीच बातचीत के बाद हुआ था।
हालांकि मायावती भी उस समय सक्रिय राजनीति में आ चुकी थीं और कांशीराम के बाद बसपा में महत्वपूर्ण भूमिका में थीं। संयोग यह है कि तब भी भाजपा को रोकने के लिए दोनों दल एक साथ आए थे और इस बार भी गेस्ट हाउस कांड की दुश्मनी भुलाकर भाजपा को रोकने के लिए ही दोनों दल एक साथ आ रहे हैं।
– लोकसभा चुनाव 1989 में पहली बार बसपा के दो सदस्य जीते थे। यह संख्या बढ़कर 2009 में 21 तक पहुंच गई। 2014 में बसपा को 19.60 प्रतिशत वोट मिले लेकिन सीट एक भी नहीं मिल पाई। सपा को 22.20 प्रतिशत वोट मिले और इसे लोकसभा की सिर्फ पांच सीटों पर जीत मिली। सपा और बसपा के वोट प्रतिशत को जोड़ दिया जाए तो यह 41.80 प्रतिशत पहुंच जाता है।
– एनडीए गठबंधन में शामिल अपना दल का वोट प्रतिशत छोड़ भी दें तो भाजपा को 42.30 प्रतिशत वोट मिले थे और वह 71 सीटों पर जीती। इसके बाद विधानसभा 2017 के चुनाव में भी सपा को 21.8 प्रतिशत और बसपा को 22.2 प्रतिशत वोट मिले। मतलब सपा का तो वोट प्रतिशत कुछ घटा लेकिन बसपा का बढ़ गया। यह मिलकर 44 प्रतिशत हो जाता है। इसके बावजूद सपा और बसपा को क्रमश: 47 व 19 सीटें ही मिलीं।
– भाजपा को 39.7 प्रतिशत वोट ही मिले। मतलब लोकसभा चुनाव के मुकाबले लगभग 2.10 प्रतिशत कम। बावजूद इसके भाजपा के 312 विधायक जीते। संभवत: इसी गणित ने सपा को कांग्रेस के बजाय बसपा के साथ गठबंधन करने को मजबूर किया है तो बसपा को भी लग रहा है कि सपा को साथ लिए बिना आगे बढ़ पाना मुश्किल है।
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