हिंदी अकादमी के उपाध्यक्ष और हिंदी साहित्य के प्रखर विद्वान और मूर्धन्य लेखक अनुवाद और पत्रकार विष्णु खरे का गुरुवार को निधन हो गया. विष्णु खरे को तकरीबन दो हफ्ते पहले मयूर विहार स्थित उनके घर में ब्रेन हेमरेज हुआ था, जिसके बाद वे दिल्ली के जीबी पंत सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में भर्ती थे.ब्रेन हेमरेज की वजह से उनके शरीर का एक भाग पैरालेसिस से ग्रस्त था और वे कोमा में भी थे. उनकी हालत नाजुक बनी हुई थी. अस्पताल प्रबंधन के अनुसार, विष्णु खरे के ट्रीटमेंट में कई सीनियर डॉक्टर तैनात थे और न्यूरो सर्जरी डिपार्टमेंट के दो सीनियर ऑफिसर उनकी हालत पर नजर बनाए हुए थे.सुप्रसिद्ध कवि और पत्रकार विष्णु खरे दिल्ली में मयूर विहार के हिंदुस्तान अपार्टमेंट में अकेले रह रहे थे वे हिंदी अकादमी का उपाध्यक्ष बनने के बाद मुंबई से दिल्ली आए थे और देर कुछ दिन पहले ही उन्हें देर रात ब्रेन हेमरेज हुआ था. बाद में उन्हें दिल्ली के ही जीबी पंत हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया, जहां वे आईसीयू में थे. डॉक्टरों की टीम लगातार उनकी निगरानी कर रही थी और अगले 48 घंटे उनके लिए काफी चुनौतीपूर्ण बताए गए थे.विष्णु खरे की निधन की सूचना से साहित्य जगत में शोक है. विष्ण खरे हिंदी साहित्य की प्रतिनिधि कविताओं की सबसे अलग और प्रखर आवाज थे. विष्ण खरे को हिंदी साहित्य में विश्व प्रसिद्ध रचनाओं के अनुवादक के रूप में भी याद किया जाता है.विष्णु खरे हिंदी साहित्य के नाइट ऑफ द व्हाइट रोज सम्मान, हिंदी अकादमी साहित्य सम्मान, शिखर सम्मान, रघुवीर सहाय सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान से सम्माजनित थे.मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में जन्में विष्णु खरे को हिंदी साहित्य में बतौर अनुवादक भी याद किया जाता है. उन्होंने श्रीकांत वर्मा तथा भारतभूषण अग्रवाल के पुस्तकाकार अंग्रेजी अनुवाद. समसामयिक हिन्दी कविता के अंग्रेजी अनुवादों का निजी संग्रह ‘दि पीपुल एंड दि सैल्फ’. लोठार लुत्से के साथ हिन्दी कविता के जर्मन अनुवाद ‘डेअर ओक्सेनकरेन’ का संपादन भी किया.’यह चाकू समय’ (आत्तिला योझेफ़), ‘हम सपने देखते हैं’ (मिक्लोश राद्नोती), ‘काले वाला’ (फ़िनी राष्ट्रकाव्य), डच उपन्यास ‘अगली कहानी’ (सेस नोटेबोम), ‘हमला’ (हरी मूलिश), ‘दो नोबल पुरस्कार विजेता कवि’ (चेस्वाव मिवोश, विस्वावा शिम्बोरर्स्का) आदि का उल्लेखनीय अनुवाद भी किया.विष्णु खरे की प्रमुख कृतियों में टी.एस., एलिअट का अनुवाद ‘मरुप्रदेश और अन्य कविताएं (1960), ‘विष्णु खरे की कविताएं’ नाम से अशोक वाजपेयी द्वारा संपादित पहचान सीरीज की पहली पुस्तिका, ख़ुद अपनी आँख से (1978), सबकी आवाज़ के पर्दे में (1994), पिछला बाक़ी (1998) और काल और अवधि के दरमियान (2003)। विदेशी कविता से हिन्दी तथा हिन्दी से अंग्रेजी में सर्वाधिक अनुवाद कार्य.
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