केंद्र की मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वो व्यभिचार कानून के नाम से चर्चित आईपीसी की धारा 497 को कमजोर करने की याचिका को खारिज कर दे क्योंकि ये धारा विवाह संस्था की सुरक्षा करती है और महिलाओं को संरक्षण देती है. इससे छेड़छाड़ करना भारतीय संस्कृति के लिए हितकारक साबित नहीं होगा.गौरतलब है कि याचिकाकर्ता द्वारा सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा गया है कि आईपीसी की धारा-497 के तहत व्यभिचार के मामले में पुरुषों को दोषी मिलने पर सजा का प्रावधान है जबकि महिलाओं को इससे छूट दी गई है. ऐसे में यह कानून लैंगिक भेदभाव वाला है इसलिए इस कानून को गैर-संवैधानिक घोषित किया जाए. जनवरी में इस मामले की सुनवाई को पांच जजों की संविधान पीठ को भेज दिया गया था.याचिका पर कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. कोर्ट ने कहा जब संविधान महिला और पुरुष दोनों को बराबर मानता है तो आपराधिक मामलों में ये अलग क्यों? कोर्ट ने कहा कि जीवन के हर तौर तरीकों में महिलाओं को समान माना गया है, तो इस मामले में अलग से बर्ताव क्यों? जब अपराध महिला और पुरुष दोनों की सहमति से किया गया हो तो महिला को संरक्षण क्यों दिया गया?
केंद्र ने अपने जवाब में जस्टिस मलिमथ कमेटी की रिपोर्ट का भी जिक्र किया है. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस धारा का उद्देश्य विवाह की पवित्रता को संरक्षित करना है. व्यभिचार की सजा के विलुप्त होने से वैवाहिक बंधन की पवित्रता कमजोर हो जाएगी और इसके परिणामस्वरूप वैवाहिक बंधन को मानने में लापरवाही होगी.केंद्र ने कहा है कि वर्तमान समाज में चुनौती के तहत कानून का प्रावधान विशेष रूप से विधायिका द्वारा अपने विवेक से विवाह की पवित्रता की संरक्षा और सुरक्षा के लिए और भारतीय समाज की अद्वितीय संरचना और संस्कृति को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है. केंद्र ने कहा है कि धारा 497 आईपीसी में संशोधन के संबंध में विधि आयोग की अंतिम रिपोर्ट का उसे इंतजार है.कोर्ट ने कहा कि सामाजिक प्रगति, लैंगिक समानता, लैंगिक संवेदनशीलता को देखते हुए पहले के सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर फिर से विचार करना होगा. कोर्ट ने कहा कि 1954 में चार जजों की बेंच और 1985 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से वो सहमत नहीं हैं, जिनमें कहा गया कि आईपीसी की धारा 497 महिलाओं से भेदभाव नहीं करती.
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