जब एक वरिष्ठ और जुझारू पत्रकार के बेटे की मौत सिर्फ इलाज के आभाव से हो सकती है तो फिर एक आम इंसान का क्या ? जबकि मैजूदा सरकार तो सीना ठोंक ठोंक कर कहती है कि हम है पत्रकारों के सबसे बड़े हितैषी और हमने ही बनाई है एक बेहतर चिकित्सा व्यवस्था को।
बहराइच के वरिष्ठ पत्रकार दीप प्रकाश श्रीवास्तव ने न जाने कितने पीड़तों की आवाज को खबर का रूप देकर उसे बुलंद किया है और न जाने कितने लोगो को इंसाफ दिलाने में सफल भी हुए है किन्तु ये सब प्रशासन को शायद न गवार गुजरा। नहीं तो क्या ऐसे ही क्षेत्रीय पत्रकारिता में अपनी अहम् भूमिका निभाने वाले पत्रकार का एक नौजवान बेटा सिर्फ इस लिए तड़प तड़प कर मर सकता है क्योंकि DM साहब जाँच करवाने में व्यस्त रहे।
जानकारी के अनुसार पीड़ित पत्रकार ने DM से लेकर CM तक को पात्र लिखकर अपने बेटे स्नेहिल को बचने की गुहार लगाईं थी लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
निडर और निर्भीक होकर जो कल दूसरों को न्याय दिलाने की लड़ाई लड़ता था प्रशासन ने उसे एक गहरा घाव दिया है।
बहराइच के मोहल्ला घसियारीपुरा निवासी दीप प्रकाश श्रीवास्तव एक दैनिक समाचार पात्र के जिला संवाददाता और मान्यता प्राप्त पत्रकार हैं तीन पुत्र सहित पांच सदस्यों का ये परिवार खुशहाल जीवन जी रहा था कि जनवरी माह 2020 में मंझले बेटे स्नेहिल श्रीवास्तव को पेट की गंभीर बीमारी हुई और घर की जमा पूंजी इलाज में खर्च हो गई ।
बीमारी से परिवार जूझ ही रहा था की कोरोना महामारी ने दस्तक दी और आय के सभी स्रोत बंद हो गए बेबस होकर दीप प्रकाश श्रीवास्तव ने 4 अप्रैल 2020 को जिलाधिकारी शंभू कुमार को प्रार्थना पत्र देकर मदद की गुहार लगाई। डीएम ,एडीएम, एसडीएम के कार्यालयों के चक्कर काट काट कर थक जाने के बाद पीड़ित ने मुख्यमंत्री को मदद के लिए पात्र लिखा।
जिस पर DM साहब ने गहनता से जाँच शुरू की लेकिन जाँच के परिणाम आने से पहले ही 30 नवंबर 2020 की सुबह स्नेहिल ने दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। पत्रकार ने डीएम साहब को भी बेटे की मौत की सुचना दी लेकिन साहब ने दो शब्द अंतिम श्रद्धांजलि के भी नहीं कहे ।
अब ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्यों पत्रकार को सहायता नहीं मिली ? क्या जानबूझ कर प्रशासन ने पत्रकार की सहायता नहीं की ?
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