कैसे ऐसे लोगो का मान करूँ
क्यों ऐसी नारी का सम्मान करूँ
शिशु को जन्म देकर जिसने यूँ कूड़े
में फेंक दिया
और मरने के लिए छोड़ दिया
या तो तुम वासना के अविभूत
रही होगी
या फिर समाज के डर से भागी होगी
तुम इतनी कमजोर तो थी नही
की इस समाज से नही लड़ पाती
या फिर यूँ कहूँ तुमने भी लड़के
की चाह में लड़की का दम घोट दिया
और कुछ भद्र सामाजिक लोगो के विचार
से अपने विचार को जोड़ दिया
जब नौ महीने उसको गर्भ में रख ही
लिया था
तब उसका पालन क्यों तुम नही कर पायी
जब नन्ही सी जान इस दुनिया में
आयी होगी
तब हलकी सी रुदन भरी आवाज़ तुम्हारी
कानो में भी उसकी आयी होगी
पर फिर भी तुम्हारी ममता नही
लजाई होगी
जिस नाड़ी से वो तुमसे जुडी हुई थी
उसी नाड़ी से उसका गला घोट
उसको फ़ेंक दिया
इस कुकर्म में तुम्हारे हाथों ने
कैसे तुम्हारा साथ दिया
संयोग देखो जिसको ममता का
महत्व पता है
उसकी कोख सुनी रह जाती
और जिसको केवल ‘मम’से मतलब
उसको ममता का अधिकार मिल जाता
पुरुषों का क्या गुण गान करूँ
उनकी नीचता का क्या आधार
धरूँ
खुद पे नही काबू इनको हैवानियत
के गुणों से परिपूर्ण हैं वो
तुम लाख उलाहनहे देती रहोगी
पुरुषों ने तुमको दबा दिया
पर मैं तो इतना जानता हूँ
पुरुषों को भी तुमने ही जन्म दिया
यूँ कैसे तुम पुरुषों के आगे हार गयी
नारी शक्ति रूपणि होती है ये कैसे
तुम भूल गयी
करके ये कुकर्म तुमने समस्त नारी
जाती और ममत्व का अपमान किया
प्रणव चंद्र श्रीवास्तव
छात्र -बीएड प्रथम वर्ष
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