तुम न अगर होती तो क्या था, पात्र हाथ से गिर जाना था, एक दिन मधुकर पीते-पीते। मुझे एक दिन मर जाना था, आखिर कुछ दिन जीते-जीते’, ‘झकोरों में पड़ा जीवन तुम्हारा गीत गाता है, भंवर का डर नहीं मुझको तुम्हारी आंख के आगे’, ‘असो आइल महुआबारी में बहार सजनी’ व ‘हम चले लम्बे सफर को अलबिदा ऐ दोस्तों, मौज-ए दरिया में बहो तुम अलबिदा ऐ दोस्तों…।’ अपने इन गीतों के माध्यम से कवि मंचों पर धूम मचा देने वाले महाकवि मोती बी.ए. भोजपुरी गीतों को फिल्मी दुनिया में प्रतिष्ठित करने वाले पहले शख्स हैं।
एक अगस्त 1919 को बरहज तहसील के ग्राम बरेजी के सोधी मिट्टी में राधाकृष्ण उपाध्याय के पुत्र रूप में जन्मे मोतीलाल उपाध्याय को दुनिया में मोती बी़ ए़ के नाम से ही ख्याति मिली। तभी तो उन्होंने अपने परिचय में लिखा है कि ‘कहने को एम़ ए़, बी़ टी़, साहित्य रत्न सदनाम, लेकिन पहली ही डिग्री पर दुनिया में बदनाम’। वर्ष 1934 में हाईस्कूल की शिक्षा बरहज के किंग जार्ज कॉलेज (हर्ष चंद), 1936 में नाथ चन्द्रावत इण्टरमीडिएट कालेज गोरखपुर से इण्टर तथा 1939 में स्नातक की शिक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से प्राप्त की। वर्ष 1935 में मोती जी ने अपनी प्रथम कविता ‘रे सखि घूंघट का पट खोल, है मेरा उद्विग्न हृदय सुनने को तेरा बोल…’ से कवि जगत में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई।
पहली बार सेलुलाइड पर उतारी थी भोजपुरी बोली
अस्सी से अधिक फिल्मों में गीत लिखने वाले मोती बी. ए. 1947 में किशोर साहू की फिल्म ‘नदिया के पार’ जो अभिनेता दिलीप कुमार व अभिनेत्री कामिनी कौशल को लेकर बनाई गई थी, उसमें मीती जी ने सबसे पहले भोजपुरी गीत ‘कठवा के नइयां, बनइहे रे मलहवा, नदिया के पार दे उतार’ देकर भोजपुरी बोली को सेलुलाइड पर लाने वाले प्रथम व्यक्ति थे। इसी फिल्म में उनकी एक गजल खासी चर्चित हुई थी, जिसका बोल था ‘हमको तुम्हारा ही आसरा, तुम हमारे हो न हो…।’
इसके अलावा फिल्म साजन, कैसे कहूं, राजपूत, राम विवाह, गजब भइले रामा, वीर घटोत्कच जैसी फिल्मों में अभिनय के साथ गीत भी लिखे। उनका जीवन गीत सागर में ही डूबता-उतराता रहा। तभी तो उन्होंने लिखा है ‘आंसुओं के पार से गाकर मुझे किसने पुकार, गीत जीवन का सहारा।’ आज ऐसे भोजपुरी चलचित्र जगत के महानायक और कवि को शत-शत नमन…।
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