रुपईडीहा बहराइच। भारत नेपाल सीमावर्ती क्षेत्र रुपईडीहा कस्बे में महिलाओं ने गणगौर पर्व श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया।
बताया जाता है कि गणगौर पर्व राजस्थानी परंपरा का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस त्योहार को कुंवारी व विवाहित महिलाएं दोनो ही समान रूप से मनाती हैं। भगवान शिव को इसर जी व पार्वती की गौरी मानकर दोनो की एक साथ पूजा करती हैं। नवविवाहिताएं होली का रंग खेलने से दूसरे दिन से गणगौर की अपने घरों में स्थापना कर नित्य पूजन करती हैं। इस परंपरा के अनुसार राजस्थान परिवार की नवविवाहिताएं पहली होली पीहर में ही मनाती हैं। इस संबंध में विशेष जानकारी देते हुए अनिल अग्रवाल व सुशील कुमार बंसल ने बताया कि जयपुर व राजस्थान के बड़े शहरों में चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को गणगौर पर्व पर भारी मेला लगता है। कुंवारी लड़कियां मनपसंद वर की कामना करती हैं। विवाहिताएं अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं। प्रमुख रूप से राजस्थानी भाषा मे- गौर ये गणगौर माता खोल किवाड़ी, बाहर ऊबी थारी पूजण वारी। आदि गीत गाकर भगवान शिव व पार्वती को मनाती हैं। सोमवार की सुबह जिन जिन मारवाड़ी परिवार के घरों में 15 दिनों तक पूजा होती रही। सोमवार की शाम स्थानीय श्री राम जानकी मंदिर के बड़े कुएं में इन प्रतिमाओं का श्रद्धा व भक्ति के साथ विसर्जन किया गया। महिलाओं ने एक दूसरे को प्रसाद वितरित किया। प्रमुख रूप से इस अवसर पर गौण ब्राह्मण परिवार की शालिनी, मीना, बेबी, रीता, अग्रवाल परिवार की सीमा, ऋचा, कोमल, अमिता, सुषमा, प्रिया, ज्योति, लवली व श्वेता सहित दर्जनों महिलाओं मौजूद रही।
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