रुपईडीहा बहराइच। बांके जिले के नेपालगंज में स्थित बागेश्वरी माता मंदिर सदियों से भक्ति व आस्था का केंद्र रहा है। यहां नवरात्र शुरू होते ही प्रतिदिन विधि पूर्वक पूजा की जा रही है। घंटा- घड़ियाल की धुन के साथ मंदिर का वातावरण देवीमय हो रहा है। मंदिर में हर रोज देवी भक्तों की भीड़ बढ़ती जा रही है। बागेश्वरी मंदिर के संबंध में अनेकों जनश्रुतियां व किंवदंतियां प्रचलित है।
बांकेश्वरी मंदिर के पुराने इतिहास के बारे में 50 वर्षों से मंदिर के प्रति आस्थावान व देवी भक्त डॉ सनत कुमार शर्मा बताते हैं कि बागेश्वरी मां के प्रति आस्था रखने वाले व मन्नत मांनने वालो की हर इच्छा पूरी होती है। मंदिर की पैराणिकता के बारे में रुपईडीहा कस्बा के प्रसिद्ध डा0 सनत कुमार शर्मा ने बताया कि दुर्गा सप्तशती के देवी कवच 33 वे स्लोक में रोम कूपेश कौवेरी त्वचं बांकेश्वरी से सिद्ध है कि यहां माता सती की जीभ व अन्य अंग गिरने से बागेश्वरी नाम पड़ा। उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में देवी दर्शन मूर्ति हटाकर पुजारी कराते है। इसके लिए रसीद भी काटी जाती है। वर्तमान समय में मंदिर का स्वरूप बदल गया है निरंतर निर्माण जारी है मंदिर के सामने खंडेश्वर महादेव की तालाब के बीच में प्रतिमा स्थित है इसका भी प्रथक इतिहास है। यहां माता बागेश्वरी के दर्शन के लिए बहराइच, लखीमपुर, सीतापुर, गोंडा, बलरामपुर, श्रावस्ती, बाराबंकी, लखनऊ आदि भारतीय जिलों के श्रद्धालु आते है। मार्कंडेय पुराण के अनुसार दुर्गा सप्तशती ने मैं वर्णित दिव्या कवच के अंदर बागेश्वरी का वर्णन निम्न है। रोम कूपेश कौमारी त्वचं वागेश्वरी। जिंदा बलि प्रथा के कारण आज भी मंदिर में बलि प्रथा कायम है। बागेश्वरी मंदिर के ठीक सामने खंडेश्वर महादेव भगवान शंकर की मूर्ति है जो नवरात्र के दिनों में यह शक्ति पीठ देश-विदेश श्रद्धालुओं को अपनी और आकर्षित करता है। चैत्र माह के नवमी तक पूजा अर्चना के बाद दसवीं को बहुत बड़ा मेला लगता है। नेपाल के प्रतिष्ठित नरहरि नाथ योगी ने देवभूमि भारत व आध्यात्मिक नेपाल नामक पुस्तक में विस्तार से इस मंदिर के बारे में बताया है। मंदिर निर्माण के संबंध में नेपाली साहित्य के प्रतिष्ठित साहित्यकार सनत रेग्मी बताते हैं कि सन 1268 में बलरामपुर स्टेट की जागीर थी। समझौते के अनुसार नेपाल के जिला बांके, बर्दिया, कंचनपुर, कैलाली, को अंग्रेजों ने नेपाली राणा शासकों को को दे दिया था। उसके पूर्व लगभग 800 साल पहले भ्रमण करने व अपनी जागीर देखने तत्कालीन बलरामपुर स्टेट के महाराजा दिग्विजय सिंह इस क्षेत्र में आए थे। उन्होंने यहां छप्पर के नीचे माता मंदिर देखा तो उन्होंने बागेश्वरी मंदिर के नाम बांके जिले की जानकी गांव सभा के करमोहना गांव में 78 बीघा जमीन मंदिर के नाम कर दी थी। जो आज भी बांके जिले के भूलेख विभाग में दर्ज है। नेपाल सरकार ने बलि के लिए 3996 रुपये भी प्रति नवरात्र निर्धारित कर रखा है। वर्तमान समय में नाथ संप्रदाय के 24 वीं पीढ़ी के महंत यहां बागेश्वरी मंदिर की पूजा करते आ रहे हैं। मंदिर के संबंध में स्वामी नरहरि दास ने अपने ग्रंथ देवभूमि भारत व आध्यात्मिक नेपाल में लिखा है कि वाणी ही अधिष्ठात्री माता सरस्वती का रुप यहां देदीप्यमान है।
इस माता मंदिर में परंपरा रूप मंदिर में पूजा विधि प्रतिदिन सुबह 3:00 बजे से 4:30 तक पुजारी मुख में पट्टी बांधकर तांत्रिक व वैदिक विधि से माता का पूजन करता है। अंदर पूजा करते समय मंदिर के चारों कपाट बंद हो जाते हैं। उस समय मंदिर में प्रवेश वर्जित रहता है। पूजा के बाद कपाट खोल दिए जाते हैं। पूजा करते समय मंदिर में डंका व घंटा बचता रहता है। मंदिर में मान्यता के तौर पर बकरा, मुर्गा, भेड़ा, बतख आदि जानवरों की बलि दी जाती है। दोनों नवरात्रों में भारी भीड़ होती है। मां बागेश्वरी के भक्त व आस्था रखने वाले रुपईडीहा कस्बा निवासी अर्जुन कुमार अमलानी बताते हैं कि हर नवरात्र में उनके साथ एडवोकेट घनश्याम दीक्षित, मनोज पाठक, सुनील कुमार जायसवाल, के पी सिंह,नमन कुमार शर्मा, शिक्षक अमित कुमार श्रीवास्तव, विनोद कुमार वैश्य,अजीता शर्मा,अभिगीता शर्मा,आदि देवी भक्त माता के दरबार प्रतिदिन पहुंचकर पूजा अर्चना करते हैं।
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