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Sunday, February 16, 2025 6:31:25 PM

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उपभोक्ता न्यायालय के दायरे में आते हैं डाक्टरों की सेवाओं में कमी के मामले: ज्ञान प्रकाश तिवारी

उपभोक्ता न्यायालय के दायरे में आते हैं डाक्टरों की सेवाओं में कमी के मामले: ज्ञान प्रकाश तिवारी
_____________ से स्वतंत्र पत्रकार _____________ की रिपोर्ट

 

बहराइच 03 जनवरी। उपभोक्ता के कल्याणार्थ 19 जुलाई 2020 से सम्पूर्ण भारत में लागू उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 अन्तर्गत सेवा में कमी (डिफिसिएन्सी ऑफ सर्विस) से सम्बन्धित मामलांें को देखा जाता है। अधिनियम अन्तर्गत व्यथित पक्ष चिकित्सा सेवा में उपेक्षा के मामले भी उपभोक्ता कोर्ट में ले जा सकते है। अधिनियम अन्तर्गत मरीज़ को उपभोक्ता की श्रेणी में रखा गया है। इंण्डियन मेडिकल एशोसिएशन बनाम बी.पी. शान्ता 1994 में मा. उच्चतम न्यायालय के पांच न्यायधीशों की पीठ ने तय कर दिया है कि डाक्टरों की सेवाओं में कमी के मामले उपभोक्ता न्यायालय के दायरे में आते है।

यह जानकारी देते हुए अध्यक्ष, जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, बहराइच ज्ञान प्रकाश तिवारी ने बताया कि इस दायरे में सभी चिकित्सक एवं अस्पताल आते है। अस्पताल डाक्टर्स, नर्स, टेक्नीशियन आदि अपने सेवा में कमी के लिए अलग-अलग जिम्मेदार होते है। नेशनल मेडिकल कमीशन द्वारा निर्धारित मानदण्डों को न पूरा किया जाना भी मेडिकल नेगलीजेन्स है।

चिकित्सक द्वारा मेडिकल साइंस में उल्लिखित उपबन्धों के अनुसार चिकित्सा नही किया जाना जैसे गलत डायग्नोसिस, दवा की साइड इफेक्ट, मात्रा से अधिक ऐनेस्थीशिया देना, गलत तरीके से इलाज करना, गलत इंजेक्शन देना, प्रीटेस्ंिटग न कराना, सर्जरी से अपंगता अथवा मृत्यु होना, आपरेशन के समय शरीर के अन्दर काटन अथवा कैचीं छूट जाना, सम्बंधित रोग के गैर विशेषज्ञ से इलाज किया जाना, अस्पताल में आक्सीजन न होना, आपरेशन के समय लाइट चला जाना, इमरजेन्सी में मरीज को भर्ती न किया जाना, 72 घण्टे के अन्दर मेडिकल रिकार्डस मरीज को न देना आदि मेडिकल नेगलीजेन्स में शामिल है।

श्री तिवारी ने बताया कि सरकारी अस्पताल एवं चिकित्सक मेडिकल नेगलीजेन्स के लिए जिम्मेदार नही होते है क्योंकि मरीज द्वारा सरकारी अस्पताल में इलाज हेतु शुल्क नहीं दिया जाता है, परन्तु उस दशा में सरकारी अस्पताल जिम्मेदार होगें जब मरीज प्राइवेट वार्ड लेकर शुल्क अदा करता है, अथवा ऐसे कर्मचारी के लिए सरकारी अस्पताल जिम्मेंदार है। जिसका भुगतान नियोक्ता अथवा बीमा कम्पनी से सरकारी अस्पताल प्राप्त करता है। उन्होंने बताया कि प्रत्येक चिकित्सा सेवा मेडिकल नेगलीजेन्स नही होता है। मेडिकल नेगलीजेन्स साबित करने का भार उपभोक्ता पर होता है। प्रत्येक मामले में विशेषज्ञ की राय लिया जाना अनिवार्य नही है। विशिष्ट मामले में कोर्ट क्षतिपूर्ति निर्धारित हेतु विशेषज्ञ रिर्पाेट (एक्सपर्ट ओपिनियन) मेडिकल मॉग सकती है।

अध्यक्ष श्री तिवारी ने बताया कि जहॉं अस्पताल में चिकित्सक चिकित्सा के पूर्व मरीज अथवा उनके रिश्तेदारों से प्रिन्टेड सहमति पत्र पर अस्पताल द्वारा हस्ताक्षर लिया जाता है उसके लिये यह आवश्यक है कि संबंधित अस्पताल अथवा चिकित्सक सहमति पत्र में उल्लिखित शर्तों को स्पष्ट रूप से बताये और चिकित्सा से होने वाले दुष्परिणाम की जानकारी संबंधित मरीज अथवा उसके संबंधियों को देवे। ऐसा न किये जाने पर संबंधित अस्पताल (अनफेअर ट्रेड प्रैक्टिस) के लिये जिम्मेदार होगें। मरीज मेडिकल नेगलीजेंस के मामले में परिवाद अपने निवास स्थान पर दायर कर सकता है जैसे यदि मरीज ने दिल्ली में इलाज कराया और मरीज लखनऊ में रहता है तो वह दिल्ली में हुये मेडिकल नेगलीजंेस संबंधी परिवाद लखनऊ अथवा दिल्ली के किसी भी उपभोक्ता आयोग में दाखिल कर सकता है। पांच लाख की क्षतिपूर्ति के लिये उसे कोई न्यायशुल्क नही देना रहता है।

श्री तिवारी ने बताया कि मेडिकल नेगलीजेंस मामले में जो अस्पताल अथवा चिकित्सक बीमित रहते है उन्हे ऐसे विवाद में संबंधित बीमा कम्पनी को पक्षकार बनाना चाहिये जिससे बीमित पक्ष को बीमित धनराशि प्राप्त करने में सुबिधा होगी। उन्होंने बताया कि यदि डाक्टर अथवा अस्पताल के विरूद्ध कोई मामला नेशनल मेडिकल कमीशन, सिविल कोर्ट, क्रिमिनल कोर्ट में लम्बित है तो उस दशा में पीड़ित पक्ष उपभोक्ता आयोग में परिवाद प्रस्तुत करके अतिरिक्त रिलीफ प्राप्त कर सकेंगे। उपभोक्ता को आयोग के समक्ष अस्पताल अथवा डाक्टर के विरूद्ध मेन्सरिया साबित करना आवश्यक नहीं है।

अध्यक्ष प्रतितोष आयोग ने बताया कि उपभोक्ता आयोग द्वारा मेडिकल नेगलीजेंस साबित होने पर क्षतिपूर्ति मामले की गंभीरता को दृष्टिगत रखते हुये तथ्यों एवं परिस्थितियों के आधार पर तय किया जाता है परिवाद के पैरवी में उपभोक्ताओं को अधिवक्ता रखने की अनिवार्यता नही होती है। यदि उपभोक्ता आयोग मेडिकल नेगलीजेंस के मामले में परिवादी को क्षतिपूर्ति अथवा मानसिक कष्ट के लिये कोई धनराशि दिलाता है तो उस धनराशि का आधा हिस्सा जमा करने पर ही अस्पताल अथवा चिकित्सक अपीलीय न्यायालय में अपील दाखिल कर सकेगा। उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित आदेश के अनुपालन करने में यदि अस्पताल व चिकित्सक विफल होते है तो उस दशा में उपभोक्ता आयोग मु. 25000/- रू. से कम अथवा एक माह से कम की सजा नहीं कर सकता है।

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