योग सर्वांगीण विकास की प्राचीन साधना है -मुनि सिद्धप्रज्ञ
युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के शिष्य मुनि पारस कुमार के सानिध्य एवं मुनि सिद्धप्रज्ञ के निर्देशन में जयाचार्य भवन में प्रातः 7:00 से 8:00 तक योग दिवस भिक्षु विहार संस्थान एवं तेरापंथ सभा की ओर से आयोजित किया गया।
योग का प्रशिक्षण 22 देशों की यात्रा का अनुभव करने वाले मुनि सिद्ध प्रज्ञ ” समण” द्वारा किया गया। योग का अर्थ केवल योगासन ही नहीं है। योग का अर्थ है – अप्राप्त की प्राप्ति। प्राप्त को ही पर्याप्त मानना योग है। आसन योग का तीसरा अंग है। आसन अध्यात्म प्रवेश का प्रथम द्वार है। प्रेक्षा ध्यान साधना में आसन के साथ ध्यान, प्राणायाम ,कायोत्सर्ग, मुद्रा ,अनुप्रेक्षा आदि सर्वांगीण विकास के प्रयोग कराएं जाते हैं। योग प्राचीन साधना है। इस अवसर पर सिद्धप्रज्ञ ने योगिक क्रिया, आसन,प्राणायाम ,कायोत्सर्ग, श्वास प्रेक्षा, ज्योति केंद्र प्रेक्षा,संकल्प,हास्य योग आदि के प्रयोग कराएं।
कार्यक्रम का प्रारंभ तेरापंथ महिला मंडल भीलवाड़ा द्वारा प्रेक्षा ध्यान गीत से हुआ। आचार्य भिक्षु सेवा संस्थान के अध्यक्ष दिलीप मेहता ने स्वागत एवं मंत्री दिनेश गोखरू ने आभार ज्ञापित किया। सभी ने अच्छी रूचि से भाग लिया। और नियमित क्लास चलाने का निवेदन किया l प्रेषक मंत्री दिनेश गोखरू भीलवाड़ा
व्हाट्सएप पर शेयर करें
No Comments






