नई दिल्ली। हरिशंकर परसाई का लेखन हमारे समय और समाज के लिए आज भी सर्वथा प्रासंगिक बना हुआ है। नियमित लिखने और दैनिंदिन दबावों के बावजूद उनके लेखन में प्राय: दुहराव नहीं मिलता। “परसाई का मन” उनके लेखन और विचार को गहराई से समझने में महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगी। विख्यात आलोचक पुरुषोत्तम अग्रवाल ने प्रगति मैदान में चल रहे विश्व पुस्तक मेले में राजपाल एंड संज के स्टाल पर प्रसिद्ध कवि-कथाकार विष्णु नगर के द्वारा संपादित पुस्तक ‘परसाई का मन’ का लोकार्पण करते हुए अपने विद्यार्थी जीवन के संस्मरण भी सुनाए जब परसाई जी उनके कालेज में आए थे। पुस्तक के संपादक विष्णु नागर जी ने पुस्तक के बनने की प्रक्रिया का उल्लेख किया तथा परसाई के जीवन के अनेक प्रसंगों का अपने वक्तव्य में ज़िक्र किया। नागर ने बताया कि परसाई से लिए गए साक्षात्कारों की यह पहली किताब है जिसका प्रकाशन उनके शताब्दी वर्ष में होना और भी सुखद है। इससे पहले प्रकाशक मीरा जौहरी ने राजपाल एंड संज की सवा सौ साल की पुस्तक यात्रा के बारे में बताते हुए कहा कि विष्णु नागर जैसे महत्त्वपूर्ण लेखक की कृति को प्रकाशित करना उनके लिए सम्मान की बात है।
चर्चा में युवा आलोचक पल्लव ने कहा कि परसाई को स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा गद्य लेखक कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी। उन्होंने कहा कि परसाई की रचना प्रक्रिया को समझने और उनके लेखन को विश्लेषित करने में यह पुस्तक बहुत मददगार होगी। लोकार्पण व परिचर्चा में महेश दर्पण, लीलाधर मंडलोई, ओम निश्चल सहित अनेक युवा लेखक भी उपस्थित रहे। अंत में राजपाल एंड संज के सुभाष चंद्र ने आभार व्यक्त किया।
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