नई दिल्ली। भारतीय भाषाओं के कवियों पर अपने ढंग की यह पहली महत्त्वपूर्ण शृंखला माधव हाड़ा के संपादन में आई है जिसका स्वागत होना चाहिए। सुविख्यात आलोचक हरीश त्रिवेदी ने विश्व पुस्तक मेले में लेखक मंच पर ‘कालजयी कवि और उनका काव्य’ शृंखला पर परिसंवाद में कहा कि माधव हाड़ा के मीरा संबंधित पुस्तक ने मीरा अध्ययन की दिशा ही बदल दी है। इस शृंखला में मध्यकाल के कवियों पर विशिष्ट किताबें आई हैं जो सभी सहज एवं बोधगम्य हैं।
परिसंवाद में आलोचक डॉ. बलवंत कौर ने कहा कि इन बारह पुस्तकों का प्रभाव एकदम अलग है क्योंकि इनमें एक साथ लोक और शास्त्र केंद्र में है। शृंखला में गुरु नानक और बुल्लेशाह के काव्य चयन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। सूफ़ी एवं संत दोनों एक साथ इस शृंखला में शामिल किये गए हैं जो इसे खास बनाता है। समाज विज्ञानी डॉ. हिलाल अहमद ने कहा कि इन पुस्तकों में सृजनात्मकता, रचनाधर्मिता और सरसता का संगम है। इन पुस्तकों में संपादक ने अपने चिंतन का प्रस्तुतीकरण बेहद खास अंदाज में किया है। भाषा के स्तर पर भी इन्हें उल्लेखनीय कहा जाएगा क्योंकि भाषा का ऐसा सहज प्रयोग कम संपादक कर पाते हैं। हाड़ा जी ने इन कवियों के आधार स्रोतों का भी उल्लेख कर अकादमिक पारदर्शिता का परिचय दिया है। शृंखला संपादक माधव हाड़ा ने कहा कि सभी संत भक्त कवियों की अपने एक लोक भाषा है, इनकी वाणी श्रुत एवं स्मृति परंपरा वाली थी। लोक में इनका विकास अपने ढंग से हुआ। भक्ति एक वचन नहीं बल्कि बहुवचन है। कबीर, रैदास, दादू, गुरु नानक आदि की वाणी बहुवचन है।
परिसंवाद का आकर्षक संयोजन दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में सहायक आचार्य डा धर्मेंद्र प्रताप सिंह ने किया। अंत में प्रकाशक मीरा जौहरी ने आभार व्यक्त किया।
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