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Sunday, April 27, 2025 9:44:30 AM

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हिंदू कालेज में प्रतिबंधित साहित्य पर राष्ट्रीय संगोष्ठी

हिंदू कालेज में प्रतिबंधित साहित्य पर राष्ट्रीय संगोष्ठी
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दील्ली। हिन्दी अकादमी और हिंदू महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में प्रतिबन्धित हिन्दी साहित्य पर प्रो. अंजू श्रीवास्तव, प्राचार्य, हिन्दू महाविद्यालय के सान्निध्य और श्री राजमणि के संचालन में संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उदघाटन हिन्दी अकादमी के उपाध्यक्ष विश्व प्रसिद्ध कवि श्री सुरेंद्र शर्मा द्वारा किया गया। कार्यक्रम को चार सत्रों में आयोजित किया गया । अकादमी के उपाध्यक्ष विश्व प्रसिद्ध कवि श्री सुरेंद्र शर्मा द्वारा ने कहा की आज़ादी से पहले जो प्रतिबंध साहित्य रचा गया वो तो अंग्रेजों ने प्रतिबन्ध किया अपने राज को बचाने के लिए। परन्तु वर्तमान में जो साहित्य रचा जा रहा है जिसके प्रतिबंधन की आवश्यकता हो उसको कौन प्रतिबंध करें। अकादमी के सचिव श्री संजय कुमार गर्ग ने कहा, प्रतिबंधित साहित्य का अर्थ यह नहीं की किसी साहित्य को प्रतिबंधित किया जाये। इसका अर्थ ये है की किसी विशेष समय, काल में उस साहित्य को जनमानस की पहुँच से दूर रखा जाये l 

इससे पहले हिंदू कालेज में सुरेंद्र शर्मा व विद्वानों का स्वागत करते हुए प्राचार्य प्रो अंजू श्रीवास्तव ने कहा कि हिंदू कालेज राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन से जुदा रहा है। वक्ताओं के रूप में प्रथम सत्र में डॉ.प्रदीप जैन, डॉ. नरेन्द्र शुक्ल, डॉ. राकेश पाण्डेय, डॉ. चन्द्रपाल तथा द्वितीय सत्र में प्रो. संतोष भदौरिया की अध्यक्षता में प्रो. चमन लाल, डॉ. राजवंती मान और भैरव लाल दास द्वारा अपने वक्तव्यों में कहा, अंग्रेजी राज के दौरान दो तरह की पुस्तकों पर प्रतिबंधन लगा था जिनमे से कुछ वैचारिक थी और कुछ गांधी, भगत सिंह के आदर्शों पर लिखी गयी रचनाएँ। साहित्यकारों ने कविता, नज्म,ग़ज़ल, लेखों, नाटकों आदि विधाओं में अपने देशप्रेम को व्यक्त किया। इनमें अधिकांश रचनाएं प्रतिबंधित हुई जिस कारण यह पढ़ी कम गई लेकिन गाई ज्यादा गयीं। विरोधी रचनाओं के सृजन के खतरे को जानते हुए भी लेखकों और प्रकाशकों ने अपने नाम और पते के साथ कदम बढ़ाए और उसके बाद गिरफ्तारी, पुलिस अत्याचार, जुर्माने, ज़ब्ती आदि हुए। यह सब हुकूमत के लिए भयभीत करने वाला और असहनीय था। कड़े प्रेस कानून के तहत उन्हें जप्त कर लिया जाता था। जनमानस द्वारा भी अपने देशप्रेम को आल्हा, कज़री, गीतों, शेरों और लोकगाथाओं आदि के माध्यम से प्रदर्शित किया। और उस समय रचा गया ये सारा लेखन प्रतिबंधित था। आज के संदर्भ में हमें अपने अतीत एवं अपने वर्तमान की पहचान करवाना है। प्रथम दिवस की संगोष्ठी के समापन पर अकादमी के उपसचिव श्री ऋषि कुमार शर्मा ने आज के सत्र में उपस्थित सभी विद्वानों का धन्यवाद किया और कहा कल दिनाँक 28/8/25 को तृतीय सत्र में प्रो. चमनलाल की अध्यक्षता में प्रो. आशुतोष पाण्डेय, सुश्री ऋतु शर्मा तथा चतुर्थ सत्र में प्रो. सलिल मिश्रा की अध्यक्षता में प्रो. गोपेश्वर सिंह, प्रो. अमित मिश्रा, डॉ. नितिन गोयल, डॉ. निशांत कुमार द्वारा अपने विचार प्रस्तुत किए जाएँगे।

इस अवसर पर हिन्दी विभाग के प्रो रामेश्वर राय, प्रो रचना सिंह, डॉ विमलेंदु तीर्थंकर, डॉ पल्लव और डॉ नीलम सिंह सैकड़ो छात्र, प्रोफेसर, साहित्यकार, पत्रकार, इतिहासकार और अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे।

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