लोकतंत्र बचाओ आंदोलन समिति ने मौन रह कर व मुंह पर काली पट्टी बांधकर किया प्रतिरोध
लोकतंत्र बचाओ आंदोलन समिति के कार्यकर्ताओं ने भारत की केंद्रीय सत्ता की संविधान और जनतंत्र को बल पूर्वक समाप्त किए जाने की अधिनायक वादी नीतियों के विरुद्ध प्रातः 11 बजे से अदालत चौराहे पर स्थित बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा के समक्ष प्रांगण में मौन रह कर तथा मुंह पर काली पट्टी बांध कर अपना प्रतिरोध व्यक्त किया। मौन प्रतिरोध समागम में नगर के प्रबुद्ध जनों, लेखकों, श्रमिकों, कर्मचारियों, दलितों, महिलाओं और युवकों ने शामिल हो कर देश के जनतंत्र और संविधान के प्रति अपना गहरा विश्वास प्रकट किया।
आंदोलन समिति के अध्यक्ष अजय चर्तुवेदी ने कहा कि चूंकि वर्तमान सरकार द्वारा संसद के अंदर और बाहर दोनों जगह जनता के प्रतिनिधियों की अवहेलना कर जन सुनवाई के सभी रास्ते बंद कर दिए हैं तो हमारे पास शांतिपूर्ण ढंग से महात्मा गांधी के मार्ग पर चल कर असहयोग आंदोलन करने के सिवा कोई अन्य रास्ता नहीं बचा। समिति के संयोजक यशवंत सिंह चौधरी ने कहा कि वर्तमान सरकार ने दबाव द्वारा सभी स्वायत्त संस्थानों पर नियंत्रण कायम कर लिया है। चुनाव आयोग की निष्पक्षता समाप्त कर के चुनाव परिणामों को प्रभावित किया जा रहा है तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पाबन्दी लगाई जा रही है।
साहित्यकार महेन्द्र नेह ने कहा कि वर्तमान केंद्रीय सत्ता जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी जवाब देही से विमुख हो गई है। विकास के नाम पर भूख, बेरोज़गारी और मंहगाई की मार से जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। वामपंथी नेता दुलीचंद ने कहा कि यह सरकार कॉरपोरेट घरानों को देश की संपदा सौंप कर करोड़ों आम लोगों को ग़रीबी की रेखा के नीचे धकेल रही है।
इन नेताओं ने भी किया संबोधित
मौन प्रतिरोध की समाप्ति पर शिक्षक नेता ईश्वर सिंह, गांधीवादी नेता फतेह चन्द बगला, युवा नेता रूपेश चड्ढा, दलित नेता जेलिया एवं घनश्याम वर्मा, किसान नेता अब्दुल हमीद गौड़, नन्दलाल सिंह, हंसराज चौधरी, साहित्यकार नागेंद्र कुमावत, दिनेश राय द्विवेदी, संजय चावला एवं श्रमिक कर्मचारी नेता महेन्द्र पांडेय, शब्बीर अहमद, हबीब भाई आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
विकल्प की तरफ़ से लगाई गई किताबों सी स्टॉल
मौन समागम स्थल पर साहित्यिक संस्था विकल्प की ओर से रंगकर्मी नारायण शर्मा ने पुस्तक प्रदर्शनी लगाई। जिसमें भगतसिंह, महात्मा गांधी और बाबा साहब अंबेडकर की पुस्तकों की बिक्री की गई।
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