बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में बीजेपी/वीएचपी के बड़े नेताओं पर चल रहा मुकदमा 9 महीने में निपटाया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई कर रहे लखनऊ के विशेष जज एस के यादव को सेवा विस्तार देते हुए केस के निपटारे की समय सीमा तय कर दी है. यादव 30 सितंबर को रिटायर होने वाले थे. कोर्ट ने यूपी सरकार को निर्देश दिया है कि वो उन्हें सेवा विस्तार देने का औपचारिक आदेश जारी करे. साथ ही साफ किया कि इस अवधि में जज सिर्फ इसी केस की सुनवाई करेंगे. अप्रैल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार समेत 14 नेताओं पर इस मामले में आपराधिक साजिश की धारा बहाल की थी. सीबीआई ने मूल अपील 21 नेताओं के खिलाफ थी. लेकिन 7 नेता अब इस दुनिया में नहीं हैं. जबकि कल्याण सिंह को फ़िलहाल राजस्थान का राज्यपाल होने के चलते मुक़दमे से छूट हासिल है. 2017 में दिए आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि सिर्फ कुछ तकनीकी कारणों से मुकदमा लखनऊ और रायबरेली की अदालतों में अलग-अलग चल रहा है. इसी वजह से बड़े नेताओं से पर साज़िश की धारा भी नहीं लग सकी है. जस्टिस पी सी घोष और रोहिंटन नरीमन की बेंच ने इस अड़चन को दूर करते हुए दोनों मुकदमों को एक साथ लखनऊ में चलाने का आदेश दिया. 6 दिसंबर 1992 को हुई घटना का मुकदमा 25 साल तक खिंचने पर सवाल उठाते हुए कोर्ट ने 2 साल के भीतर इसे निपटाने का आदेश दिया था. रायबरेली में जिन नेताओं पर मुकदमा चल रहा था उन पर आईपीसी की धारा- 153A (समाज में वैमनस्य फैलाना), 153B (राष्ट्रीय अखंडता को खतरे में डालना) और 505 (अशांति और उपद्रव फ़ैलाने की नीयत से झूठी अफवाहें फैलाना) के आरोप हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इसमें धारा 120B (आपराधिक साज़िश) भी जोड़ दी गई थी. अगर नेताओं पर पहले से चल रही धाराओं में दोष साबित होता है तो 120बी की मौजूदगी के चलते उन्हें अधिकतम 5 साल तक की सज़ा मिल सकती है.
व्हाट्सएप पर शेयर करें
No Comments






